यूनिवर्सिटी ऑफ़ मिशिगन
Date : 2nd August, 2002.
Venue : Greenlawns School, Worli - Bombay, India
AN INTERVIEW WITH Mrs. KUMUD BHARGAVA
शिक्षिका के रूप में अपने
पहले दिन का अनुभव
An interview with Mrs. Kumud Bhargava
Hear Voice of Mrs. Kumud Bhargava
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मेरी
शिक्षा उत्तर प्रदेश में हुई है औरर
मैंने हिन्दी लिटिरिचर में एम॰ए॰ औरर
बी॰ए॰ किया हुआ है।
नौकरी तो मैने बम्बई
आने से पहले भी की थी,
लेकिन यहाँ
जो बीस सालों से मैं लगातार एक
हिन्दी शिक्षिका
के रूप में पढा रही हूँ।
तो जब मै बम्बई आई, मेरा पहला
दिन मेरे लिए यहाँ का वातावरण एक दम
नया- नया था।
उत्तर प्रदेश के हिसाब से
यहाँ
बम्बई का वातावरण एक दम ऐसे जमीन
आसमान का अन्तर जैसा दिखाई दिया, तो
बड़े डरते- डरते जब
मैने पहले दिन हिन्दी शिक्षिका के रूप
में ग्रीन लाँन्स हाई स्कूल में
ज्वाइन किया तो उस समय मेरे मन मे
एक बहुत ही डर था कि पता नहीं इतने बड़े
स्कूल
के मै काबिल हूँ या नहीं, या मैं यहाँ पर ठीक तरक से
हिन्दी की शिक्षा
दे पाऊँगी या नहीं।
यह डर मेरे अन्दर समाया हुआ था।
औरर कैसे लोग थे
क्योकि यहाँ के लोगों से
मिलने का
मेरा पहला मौका था।
लेकिन किसी तरह
डरते- डरते मैने
जब स्कूल में प्रवेश किया तो हमारी
जो पहली प्रधानाध्यापिका थी, मिसिस राईटर, उन्होंने इतने हँसकर हमारा
स्वागत किया, कि उससे
मेरे डर का आधा भाग तो वहीं पर खतम हो
गया।
उसके बाद फिर भी पहला दिन होने
के नाते फिर भी मन में कक्षा में
जाने में डर तो लग ही रहा था।
सभी सिक्षिको से मिले।
सबसे बड़े प्यार भरा व्यवहार लगा।
पहले ही दिन ऐसा महसूस हुआ
जैसे हम इन सभी को पहले से ही
जानते हों।
यह हमारे जीवन का वह पहला दिन था
जिसे मैं आज तक क्या कभी भी नहीं भूल
सकूँगी।
इस स्कूल का वातावरण औरर शिक्षिको
का व्यवहार।
उसके बाद आता
हैं कक्षा में जाने का समय।
उस समय तो मेरा दिल इतनी बूरी
तरह धड़क रहा था, कि जैसे
पता नहीं मैं कौन से युध्द
में प्रवेश करने जा रही थी, या कौन से युध्द का सामना करने जा
रही थी।
किसी तरह हिम्मत करते कक्षा में
प्रवेश किया औरर क्योंकि उत्तर प्रदेश की
हिन्दी तो बहुत ही थोड़ी मुम्बई की हिन्दी से
बहुत ही ज़्यादा ऊँची होती है।
इसलिए जब वहाँ के शब्द जब हमने
बोलने शुरू किये तो यहाँ के
विद्यार्थियों को वह हिन्दी नहीं
बल्कि संस्कृत लगी।
कई विद्यार्थियों ने यह
सोचा कि शायद हम हिन्दी नहीं संस्कृत
पढ़ाने आये हैं।
इसके बाद पहले
दिन तो समझ
में नहीं आया ज़्यादा कुछ।
सही ढ़ंग से कुछ पढ़ाया नहीं।
आधी तो घबराहट थी।
लेकिन फिर भी जो कुछ समझ
में आया, वह पढ़ाया औरर
बीच में मैने एक विध्यार्थी को
कुछ शरारत करने पे खड़े होने के
लिए कहा।
जब वह खड़ा नहीं हुआ तो
हमने उसे थोड़ा औरर ज़ोर से बालकर
कहा, "फौरन" खड़े हो जाओ।
उस " फौरन" का अर्थ उस
विध्यार्थ ने फॉरेन यानि " विदेश" से
लगाया जिसको सुनकर मैं खुदी बहुत
हँसी औरर फिर मुझे यह महसूस हुआ कि
यहाँ पर किस तरह की हिन्दी मुझे पढ़ाना होगी।
तो अपनी उस हिन्दी को मैने
सुधार- सुधार कर थोड़ा
इनके हिसाब से सरल बनाने की कोशिश
की, लेकिन वह पहले दिन का
वह " फॉरन" शब्द मुझे आज भी बहुत अच्छी तरह से
याद है।