यूनिवर्सिटी ऑफ़ मिशिगन
" माँ "
कहने की कहानी
by कुसुम जैन
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हाँ, मैं यह बताना भूल गई कि जब
मैंने उसको " माँ " कहा था,
उस अमरीकन औररत को,
तो उसको यह
सुनकर,
यह शब्द सुनकर, बहुत ख़ुशी मिली।
औरर ख़ुशी से ही उसकी आँखों
में या दुख से आँसू आ गये।
औरर रोते-रोते उसने मुझे अपने
गले से लगाकर कहा कि मैंने - -
कि उ:को यह " माँ " शब्द
सुनकर बहुत अच्छा लग रहा है।
( मैंने
अँगरेज़ी में बोला था " Mother
" । )
तो उसको यह " मदर " शब्द सुनके
बहुत ही अच्छा लगरहा है कि किसी ने उसको इस तरह
कहके पुकारा या बुलाया।
क्योंकि - वह बता रही
थी - कि उसका ब - -
उसका बेटा भी उसको नहीं
बुलाता औरर कभी
उसको फ़ोन भी नहीं करता, बातचीत नहीं हो पाती।
तो वह अकेले में बहुत
महसूस करती है इन चीज़ों को।
तो उसका यह - -
आ - - मैंने " माँ " कहा था
क्योंकि हिन्दुस्तान में हम लोग अक्सर
अजनबियों के साथ भी रिश्ते-नाते जोड़ लेते हैं
इन शब्दों के सहारे।
कि कोई बड़ा होता है तो उसको
माँ, बाबा कह देते
हैं, भाई साहब,
भाभी या दीदी - - दीदी, आँटी . .
.
आँटी तो बहुत ही कॉमन हो चुका
है।
तो हम यह बड़ा नेरली (?) तो बड़ी स्वाभाविकता से किसी को
- - (??)
वह बड़ी थी कि उसको
मैंने " माँ
" कहा।
लेकिन उसको यह सुनकर बहुत ही अच्छा लगा।
तो हम लोग शायद यहाँ
पर हैं कि - - सो
मुझे अहसास हुआ कि शायद यहाँ ये
संबंध भी कुछ बिखर रहे हैं।
धीरे-धीरे ऐसा
अहसास (?) भी हुआ औरर
दुख भी हुआ कि कहाँ तो हम अजनबियों
से भी अपनापन जोड़ते हैं या
अपनों से भी अजनबी बन जाते हैं।
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Recorded in Ann Arbor by कुसुम
जैन on 1 July 2002. Transcribed and posted 6 July 2002.
Audio file created and posted 2 July 2002.