यूनिवर्सिटी
ऑफ़ मिशिगन
" देवता "
a नज़म by
वसीमा शहज़ाद
(with permission of the author)
इक दिन उसने सोचा
क्यों न बुला
कर
अपने प्यार को
क़तल कर दूँ
औरर अमर कर
दूँ
दफ़ना कर ।
बहार के आग़ाज़
में
बड़े ही एहतिमाम
से
सफ़ेद गुलाब
सारे
ईकट्ठा किये झील
किनारे
औरर एक क़बर खोदी ।
उसके
बुलाने से
काँटों के
रासते पै
तलवारों के
साए में
वह चली आई ।
पावों से
ख़ून रिसता रहा
गुलज़ार रसता बनता
रहा
आख़िर वह
पहुँची
देवता के
सामने ।
सर झुकाए वह
खड़ी थी
इक बोसे की वह
मुनतज़िर थी
देवता के
हाथों ने
थाम लिया उसे गरदन
से
इक झटका औरर वह
झुल पड़ी
देवता की
बाहों में
न ख़ून बहा न
आँसू टपका
उठाके देवता ले
चला
पुजारिन को अपनी
दफ़नाने
प्यार की अपने क़बर
बनाने ।
खुली क़बर के पास
जो पहुँचा
भर चुकी थी
आँसुओं से
सज चुकी थी
गुलाबों से ।
एक गुलाब
जो उसने छुआ
तो वह ताज़ा
ख़ून था ।
यह करिश्मा देख कर
पलट गया देवता
लाश वहीं पै
छोड़ कर ।
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वसीमा शहज़ाद
To nastaaliiq version of " देवता "
This nazam was written in 1990. It was posted to मल्हार on 31 Jan 2004. Corrections 2 Feb 2004.
Nastaaliiq version posted on 3 Feb 2004.
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