यूनिवर्सिटी ऑफ़ मिशिगन
Dialogue da: दो
पड़ोसनों की बातचीत
by कुसुम जैन
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विनोद की माँ : शबनम की
माँ ! घर में हो
क्या ?
शबनम की माँ : अभी दरवाज़ा
खोलती हूँ। ( दरवाज़ा खोलती है। ) आओ, अन्दर
आओ, बैठो।
विनोद की माँ : क्या कर रही थीं
तुम ? खाना तो बना
चुकी होगी ?
शबनम की माँ : हाँ,
खाना तो कर चुकी। बस ऊपर का काम
निबटा रही थी।
विनोद की माँ : मैंने तो
सोचा था कि तुम फ़ुरसत में होगी।
शबनम की माँ : फ़ुरसत-वुरसत कहाँ मिलती है ? अभी थोड़ी देर में बच्चे
स्कूल से आते होंगे।
अभी कपड़े धोने को पड़े हैं।
फिर शाम के खाने का समय हो जाएगा।
बस यूँ ही
चौके-चूल्हे
में, घर के
धंधों में ही दिन बीत जाता है।
तुम निबट चुकीं क्या ?
विनोद की माँ :
हाँ, आज उनका औरर
मेरा तो एकादशी का व्रत है। विनोद
ने अपने लिए दाल-
चावल बना लिये थे। अभी शाम के
लिये आलू की सब्ज़ी चढ़ा कर आई हूँ।
शबनम की माँ : क्या विनोद को
देखने कोई आ रहे हैं ?
विनोद की माँ :
तुम्हें किसने बताया ?
शबनम की माँ : सवेरे
विनोद के बाबूजी इनसे कुछ कह रहे
थे।
विनोद की माँ : हाँ, एक जगह बात तो चल रही है। लड़के
के बाप ने इनसे कहा है कि
पहले वो लड़की देखना चाहते
हैं।
शबनम की माँ : अगर उनकी कुछ राज़ी देखो
तो दिखा दो लड़की। क्या हर्ज़ है ?
विनोद की माँ : कह रहे
थे कि लड़का भी देखना चाहता है।
शबनम की माँ : भई, अब
तो ज़माना बदल गया है। आजकल के लड़के
लड़की देख कर ही
शादी करते हैं।
विनोद की माँ : यही मैं भी
सोचती हूँ। लेकिन इन्हें पसन्द
नहीं।
शबनम की माँ : तुम उन्हें समझाती
क्यों नहीं ?
विनोद की माँ : मैं
तो उनसे बहुतेरा कहती हूँ कि
ऐसी ऊँची नाक वाले बने रहे तो लड़की
को
जन्म भर घर में ही बैठाये
रहोगे।
शबनम की माँ : लड़का क्या करता है ?
कहाँ तक पढ़ा-लिखा है ? देखने सुनने में
कैसा है ?
विनोद की माँ : एम॰ ए॰ पास
है। बैंक में काम करता है।
चार हज़ार रुपये लाता है।
इन्होंने ही देखा है। कह रहे
थे अच्छा है।
शबनम की माँ : लड़का तो अच्छा है।
बैंक में तरक़्क़ी भी जल्दी होती है।
तुम विनोद की फ़ोटो
क्यों नहीं भेज देतीं ?
औरर तुम भी उनसे लड़के
की फ़ोटो माँग लो।
विनोद की माँ : हाँ, यह ठीक रहेगा। देखना, ज़रा उमर निकलने लगती है तो
लोग लड़की को ही
चार ऐब लगा देते हैं।
शबनम की माँ : हाँ, ज़माना बड़ा ख़राब आ गया है।
विनोद की माँ : रात-दिन यही चिन्ता लगी रहती है कि जल्दी से लड़की
के हाथ पीले हों औरर वो
अपने घर जाये। अच्छा अब चलूँ।
सब्ज़ी भी देखनी है। वो भी कचहरी से
आज
जल्दी आयेंगे।
शबनम की माँ : अच्छा, जो बात हो सो बताना।
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Posted 11 May 2001.