यूनीवर्सिटी ऑफ़ मिशिगन

Dialogue dc:  माता औरर पिता में बातें
by  कुसुम जैन

To
unglossed version.
 पिता :  सुनती हो ?  मेरा तौलिया नहीं मिल रहा।
   माँ :  ये सामने खूँटी पर तो टंगा है।  आप अभी तक नहाये भी नहीं
?  मेरा खाना तैयार है।
 पिता :  अभी नहाकर आया दो मिनट में।  आज दाढ़ी बनाने में ज़रा देर हो गई।
          हाँ
,  मेरे कपड़े निकाल दिये क्या ?
      माँ :  हाँ,  सब निकाले हुए रखे हैं।  ज़रा जल्दी कीजिये।  अभी आपको पूजा भी करनी है।
 पिता :  बस
,  अभी निबट कर आया।  तुम इतने कर आया।  तुम इतने थाली लगाओ
                ( थोड़ी देर बाद )
 पिता :   लो मैं निबट कर आ गया औरर तुमने खाना भी नहीं परोसा
   माँ :  सब परोसा हुआ है।  आप बैठिये।
 पिता :  आज शाम को मैं ज़रा देर से आऊँगा।  आफ़सि के बाद एक ज़रूरी मीटिंग है।
   माँ :  आपने शर्मा जी को जो आने के लिये कह दिया है।
 पिता :  तुम इतने उन्हें बैठाना।  चाय
-वाय पिलाना
   माँ :  हाँ
,  दिवाली की मिठाई कब लानी है ?  सब के घर भिजवानी है।
         जैन साहब के यहाँ से तो मिठाई आ भी गई।
 पिता :  कहाँ है
?  मैंने तो चखी भी नहीं।
   माँ :  कल रात।  मैं बताना भूल गई।  यह रहा डिब्बा
 पिता :  मिठाई तो अच्छी भेजी है।  असली घी की है।  दो सेर होगी।
   माँ :  साथ में पाँच रुपये औरर बच्चों के लिये खिलौने भी भेजे हैं।
 पिता :  हमें भी उनके यहाँ अच्छी ही भेजनी होगी।  वो हमें बहुत मानते हैं
   माँ :  हाँ
,  मानते तो बहुत हैं।  लेकिन हम उनकी बराबरी थोड़ी ही कर सकते हैं
         वो बड़े आदमी ठहरे
 पिता :  अच्छा
,  यह मिठाई वग़ैरा का काम तो कल करूँगा।
   माँ :  आज शाम के लिए क्या बनाऊँ
?
 पिता :  कुछ भी बना लेना।  शायद शर्मा जी भी यहीं खायें।
   माँ :  कुछ सब्ज़ी
-वब्ज़ी मिले तो लेते आना।  कल के लिये घर में कोई सब्ज़ी नहीं है।
 पिता :  अरे क्या बज गया
?  मुझे देर हो रही है।
   माँ :  आज तो आपने कुछ खाया ही नहीं।  सब यूँ ही पड़ा है।
 पिता :  नहीं
,  मैं खा चुका।  बस, अच्छा,  अब मैं चलता हूँ।
To unglossed version.
To index of dialogues.
To index of  मल्हार.
Posted 10 May 2001. Glossing function restored by Lawrence Hook 28 Nov 2105.