यूनीवर्सिटी ऑफ़ मिशिगन
Dialogue DG: भाई औरर
बहन
by कुसुम जैन
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बहन : आइये,
भैया, खाना खा लीजिये।
भाई : लो आ गया। तुम नहीं
खाओगे ? या खा
चुकीं ?
बहन : आप खाइये, मैं तो पीछे खाया करती
हूँ।
भाई : तुम भी बैठ जातीं तो क्या
हरज़ था ?
( खाना खाने के बाद )
भाई : अब खाना तो खा
लो, काम तो बाद
में भी हो जाएगा।
बहन : खा लूँगी, मेरे खाने की कौन बात
है ?
भाई : क्यों, तुम्हें खाना अच्छा नहीं लगता
?
बहन : लगता क्यों
नहीं ? बस यूँ ही
नहीं खाता।
भाई : तुम्हारे लिए तो कोई
सब्ज़ी बची ही नहीं।
बहन : ऐसा तो रोज़ ही होता है।
भाई : क्यों ? तब कुछ ज़्यादा क्यों नहीं बना लिया
करतीं ?
बहन : मिले तब ना। यहाँ
सब्ज़ी-वब्ज़ी तो कुछ मिलती
नहीं। कोई आ जाता है तो हम
नीचे से मंगवा
लेते हैं।
भाई : नौकर कोई नहीं है ?
बहन : कोई ठीक मिला नहीं।
शायद एक-दो दिन में
हो जाय।
भाई : बरतन भी तुम्हीं
माँजती हो ?
बहन : औरर कौन ?
( बहन अन्दर जाकर आती है। )
भाई : कहाँ गई थीं
?
बहन : नल को देखने।
भाई : नल को क्या हुआ ? पानी चला गया है ?
बहन : रोज़ ही ऐसा होता
है। आज कोई नई बात नहीं है।
भाई : अब पानी किस वक़्त आएगा ?
बहन : शाम को सात बजे।
भाई : चलो, तुम्हें सात बजे तक छुट्टी
तो हुई।
बहन : अब ग्यारह बजे तक काम करना पड़ेगा,
छुट्टी क्या ख़ाक हुई ?
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Posted 12 May 2001. Corrected 14 May 2001.