यूनीवर्सिटी ऑफ़ मिशिगन
Dialogue DI: देवर भाभी
by कुसुम जैन
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भाभी : भैया जी, ज़रा मुन्नू को
संभालोगे ? मुझे काम नहीं करने दे रहा।
देवर : भाभी, ज़रा
बच्चों को अच्छी आदतें डालो।
भाभी : आपने ही तो लाड़ कर-करके बिगाड़ा है। हर समय चाचा चाचा की
धुन लगाये रहता है।
देवर : तो लाड़ तो करना
चाहिये। भाभी, कमाल
है। तुमसे एक बच्चा भी नहीं
सँभलता।
भाभी : अब रहने दो। सर पर पड़ेगी
अपने तो मालूम होगा। कहना आसान
है।
देवर : भाभी, नाराज़
क्यों होती हो ? अच्छा, मुन्नू
बेटे, अम्माँ को काम
करने दो। नहीं तो बाबूजी
औरर चाचा को खाना
नहीं मिलेगा।
भाभी : अब पकड़ भी लीजिये।
देवर : लाओ। भाभी, ज़रा सुनो तो। तुम तो
एक-दम जाने लगीं।
भाभी : ज़रा जल्दी कहिये। सारा काम पड़ा हुआ
है अभी।
देवर : आज दफ़्तर में सब स्वेटर की बड़ी
तारीफ़ कर रहे थे।
भाभी : औरर भाभी की नहीं ?
देवर : वाह, क्यों नहीं ? भाभी के तो गुण गा रहे
थे।
भाभी : बस रहने दीजिये। आपको
बातें बनाना ख़ूब आता है।
देवर : तुम्हारा देवर कभी झूठ बोलता
है ? बताओ।
भाभी : मैं कब कहती हूँ।
देवर : अच्छा, भाभी,
एक स्वेटर औरर बुन दो।
भाभी : तो बुन दूँगी।
इसमें कौन सी बड़ी बात है। ऊन ला
दोगे तो बुन दूँगी।
देवर : यह मेरे बस का नहीं।
तुम ही अपनी पसंद का ले आना।
भाभी : मेरा बाज़ार जाना नहीं होता।
लेकिन अपने देवर भैया को तो
ख़ुश करना ही होगा।
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Posted 12 May 2001.