यूनीवर्सिटी ऑफ़ मिशिगन

Dialogue dr:  सुनील औरर करुणा
by  कुसुम जैन

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 सुनील :  करुणा,  यह राजीव गांधी के साथ तुम लोगों की फ़ोटो कब खिँची ?
  करुणा :  सुनील,  तुम्हें याद है कि राजीव गांधी के प्रधान मंत्री बनते ही भोपाल में ज़बरदस्त गैस
           दुर्घटना हुई थी।  यूनियन कार्बाईड की कैमिकल फ़ैक्ट्री से रात में गैस निकलकर हज़ारों
           लोग मर गये थे औरर तरह २ की मुसीबतों के शिकार हुए थे।
 सुनील :  उसे कौन भूल सकता है
?  उस साल तो एक के बाद एक ट्रैजेडीज़ हुए जा रही थीं।  पहले
           इन्दिरा गांधी की निर्मम हत्या ने सारे देश को हिला दिया था।  राजीव गांधी अभी अपनी
           माँ की हत्या का सदमा झेल भी नहीं पाया था कि दिल्ली में सिक्खों पर क़यामत टूट पड़ी।
  करुणा :  हाँ
,  हाँ।  राजीव गांधी इलैक्शन में लैंडस्लाइड से प्रधान मन्त्री बना ही था औरर दिल्ली में
           हालत नॉर्मल हो ही पाई थी कि दि॰ १९८४ में भोपाल के गैस कांड ने फिर से सबको
           झकझोर दिया।
 सुनील :  सब लोग छटपटाते हैं कुछ करने के लिए ऐसे में।
 करुणा :  हम भी उन आफ़त के मारे लोगों के लिये कुछ करना चाह रहे थे।  तब मैं औरर मेरे दोस्त
           एक सोशल ग्रुप संस्था के मेम्बर थे।  हमने फिर पैसे ही इकट्ठे किये।
 सुनील :  कितने
?
  करुणा :  यही कोई ३॰,॰॰॰ के क़रीब।  पैसे कहाँ दें या भेजें यह सवाल उठा।  कुछ मैम्बरों ने कहा कि
           सोशल ग्रुप एक फ़ंक्शन करे औरर उसमें राजीव गांधी को बुलाकर पैसे दें।
 सुनील :  कुछ लोगों को एक नेक काम में भी दिखावे औरर नाम की ही पड़ी रहती है।
 करुणा :  मैंने इस सुझाव का विरोध किया।  कहा कि जितने पैसे फ़ंक्शन करने में लगेंगे वो रिलीफ़ फ़ंड
           में ही क्यों न दे दें
?  औरर सिफऱ् पैसे देने के लिए प्रधानमंत्री को बुलाना कोई अक़लमंदी नहीं।
 सुनील :  इससे उनका समय ही बरबाद होगा।
 करुणा :  लेकिन कुछ चौधरी लोग नहीं माने।  दो महीने इंतज़ार के बाद पता चला कि बात नहीं बनी।
           कुछ लोग अपनी जान
-पहचान लगा रहे थे।  मुझसे रहा नहीं गया।  मैंने सीधे राजीव गांधी
           के घर फ़ोन कर दिया।
 सुनील :  बड़ी हिम्मत करी तुमने।  क्या कोई भी ऐसे कर सकता है
?
  करुणा :  क्यों नहीं ?  फ़ोन डाइरैक्टरी में सब के फ़ोन नम्बर दिये होते हैं।  पब्लिक के लिये हैं तो क्या
           पब्लिक को नहीं पता होने चाहियें
?
 सुनील :  तो क्या तुमने सीधे राजीव गांधी से बात की ?
  करुणा :  अरे भाई,  नहीं।  उनके इतने सैक्रेट्री किसलिए होते हैं ?  सैक्रेट्री ने बड़ी अच्छी तरह बात की।
           औरर कहा कि मैं एक चिट्ठी में अपना मक़सद व आने वाले लोगों के नाम लिख कर नॉर्थ
           ब्लॉक के उनके ऑफ़सि में दे दूँ।  चिट्ठी मिलते ही वो एक
-दो दिन में फ़ोन करके बता देंगे।
 सुनील :  उन्होंने फ़ोन किया क्या
?
  करुणा :  ४५ दिन तक फ़ोन ही नहीं आया।  मैंने फिर फ़ोन किया थोड़े ग़ुस्से से कि राजीव गांधी
           ने चुनाव में
"Government that works"  काम करने वाली सरकार बनाने का वायदा किया था।
           लेकिन मुझे एक चिट्ठी का जवाब ही नहीं मिला।
 सुनील :  तुमने ऐसे ही बोल दिया
?
  करुणा :  सुनील,  उन्होंने एक दम माफ़ी माँगी।  कहा कि वो चिट्ठी का पता करके मुझे फ़ोन करते हैं
           अभी।  औरर सच १॰ मिनट में ही फ़ोन आ गया।  कहने लगे कि हम कल सुबह ८ बजे उनके
           घर आ जायें।  मैंने उनसे कहा कि मेरे पास चैक भी नहीं बना था औरर बाक़ी मैम्बरों को भी
           फ़ोन करने के लिए समय नहीं था।
 सुनील :  तुम भी बड़े नख़रे मारती हो।  अच्छा
,  फिर ?
  करुणा :  उन्होंने कहा राजीव गांधी ४५ दिन के लिए दिल्ली से बाहर जा रहे हैं।  अगले हफ़्ते उनके
           आते ही वो मुझे फ़ोन करके दिन बता देंगे।  कहा कि मैं चैक बनवा कर तैयार रखूँ क्योंकि
           वो रात को बताएँगे अगले दिन के लिये।  मैंने उन्हें शाम को बताने की रिक्वैस्ट की।
 सुनील :  वो मान गये
?
  करुणा :  हाँ।  जब हम गये,  क्या देखा कि बाहर बग़ीचे में पेड़ के नीचे हमारे लिए कुर्सियाँ बिछी हुई
           थीं।  राजीव गांधी मुस्कराते हुए हमारे पास आये।  बिलकुल सही टाईम पर।  बड़ी अच्छी
           तरह से मिले।  बड़ी अच्छी तरह हिंदी में बात कर रहा था।  हमारे मैम्बर अँग्रेज़ी में बात
           करने लगे।
 सुनील :  इस फ़ोटो में तो ऐसा लग रहा है कि राजीव गांधी तुम लोगों के साथ फ़ोटो खिँचवा रहा हो।
 करुणा :  सच भी है।  उनमें ज़रा भी हवा नहीं थी कि वो प्रधान मंत्री है।  बड़ा ही मिलनसार स्वभाव
           था।  उसने शुक्रिया किया जब उन्हें चैक दिया।  साथ में एक मैमोरैंडम भी।  उसने अपने
           साथियों से कहा कि हमारी चिट्ठी पर ग़ौर किया जाये।  हमें बताया कि हम औरर दूसरे
           कामों में कैसे मदद कर सकते हैं।
 सुनील :  क्या वहाँ सिफऱ् तुम्हीं लोग थे
?
 करुणा :  नहीं,  औरर भी ग्रुप औरर लोग आये हुए थे अपनी-अपनी फ़रियादें लेकर।
 सुनील :  राजीव गांधी ने जो काम बताया वो किया क्या
?
 करुणा :  कहाँ !  वहाँ तो मेम्बर बड़ा बढ़-बढ़ कर बोल रहे थे।  बाद में सब ठप्प !  मैंने कोशिश की
           लेकिन सब टालमटोल कर गये।  किसी ने साथ ही नहीं दिया।  लोग बिना काम के
           नाम चाहते हैं।
 सुनील :  औरर जो काम करते हैं उन्हें बदनामी मिलती है।  सोचेंगी कि तुम पैसे ही खा गयी होगी
           बीच में।
 करुणा :  मैंने सब पैसे देने वालों की लिस्ट बना कर दी थी
 --  नाम,  पता औरर अमाउन्ट।
 सुनील :  यह तो अच्छा किया।
 करुणा :  उन्होंने भी पूछा कि एक ही रसीद चाहिये या अलग
-अलग ?  मैंने कहा कि अलग-अलग।
 सुनील :  तो क्या सबके नाम की अलग रसीद बना कर दी
?
 करुणा :  जी हाँ।  वह मैंने सबको दे दी। उससे सबको तसल्ली हो गई कि उनके पैसे सही जगह
           पहुँच गये।
 सुनील :  सब हैरान भी औरर ख़ुश भी हो गए होंगे।  तुमने सचमुच कमाल कर दिया।
 करुणा :  कमाल की क्या बात है इसमें
?
 सुनील :  घर बैठे-बैठे मिलने का बन्दोबस्त कर लिया प्रधानमंत्री से।  वो भी बिना किसी जान-पहचान
           के।
 करुणा :  सही काम बिना जान पहचान के होते हैं।

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Drafted 20-24 May 2001. Posted 25 May 2001.