यूनीवर्सिटी ऑफ़ मिशिगन

Dialogue dt:  विश्वास की दुकानदारी
by  कुसुम जैन

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                     ( कनॉट प्लेस में एक पुरानी जौहरी की दुकान पर )
  कामिनी :  शो केस में रखे गहनों पर नज़र डालती हुई )  भाई साहब,  ज़रा ये हाथ के तोड़े दिखा
            दीजिये।
दुकानदार :  लीजिये
,  अभी निकाल कर दिखाता हूँ।  आप कॉफ़ी पीजिए।  ( एस्प्रैसो का प्याला-प्लेट
            आगे बढ़ाता है।
 )
   कामिनी :  इस तकल्लुफ़ की क्या ज़रूरत थी।
दुकानदार :  यह तो गरम पानी है।  यह देखिए तोड़े।  यह ५॰
६॰ साल से ज़्यादा पुराने हैं।  यह
            किसीने अपने बिकवाने के लिए रखवाए हैं।
  कामिनी :  मेरी माँ के पास भी ऐसे हैं।  इसमें भी बसरे का मोती लगा है।
दुकानदार :  इसमें बर्मा का माणिक औरर छोटे
-छोटे हीरे हैं।
  कामिनी :  सुंदर लग रहे हैं।  इनको पहुँचियाँ भी कहते हैं।  क्या ये आजकल बनवाए जा सकते हैं
?
दुकानदार :  ये आजकल बनने मुश्किल हैं।  न तो कारीगर मिलेंगे बनाने के लिए औरर न ही कारीगरी
            ऐसी होगी।  बनेंगे तो बनवाई भी बहुत महँगी होगी।
  कामिनी :  इनकी क्या क़ीमत होगी
?  क्या इसके साथ की रामरामी भी है ?
दुकानदार :  वो बहनजी ८॰ हज़ार माँग रही थीं।  मैं उन्हें ५५६॰ में राज़ी कर लूँगा।  रामरामी
            औरर बुन्दे बिक गये।
  कामिनी :  अच्छे तो बहुत लग रहे हैं।  अपने पति को लाकर दिखाना चहती हूँ।
दुकानदार :  बहन जी
,  आप इसे साथ ले जाइये।  भाई साहब को दिखाइए।  औररों को भी दिखाइये
            कि यह चीज़
-माल कैसा है।  इस क़ीमत में।  दूसरी दुकानों में भी पता करवा लीजिए।
            ऐसा कितने में बनेगा आज
?
  कामिनी :  नहीं,  भाई साहब।  मैं ऐसा कैसे कर सकती हूँ ?  मैं तो पैसे भी साथ नहीं लाई।  मैं सिफऱ्
            जायज़ा लेना चाहती थी।  मेरे घर में भतीजे की शादी होने वाली है दो महीने में।  मेरी
            सास चाहती हैं कि कुछ अपने लिए ले लूँ।
दुकानदार :  यह तो ख़ुशी की बात है।  आप पहनेंगी तो आपकी जय
-जय होगी।  आप माताजी को
            भी दिखाइए।  उनकी राय भी लीजिये।  पैसे की तो अभी बात ही नहीं है।  पहले आप
            अपनी तसल्ली कर लीजिए पूरी तरह से।  आपको औरर आपके घर वालों को जँचे तो
            रख लीजिये।  पैसे बाद में आते रहेंगे।  नहीं तो लौटा दीजिएगा।
  कामिनी :  लेकिन
,  भाई साहब,  आप मुझ अनजान पर कैसे भरोसा कर सकते हैं ?  इतना क़ीमती
            सामान।
दुकानदार :  बहन जी
,  बस आगे कुछ न कहिये।  यह आपकी दुकान है।  आप मेरे कहने से ले जाइए।
            लो भाई मनमोहन
,  ये बहन जी के लिए पैक कर दो।  यह नीलम का ब्रैसलेट औरर यह
            बसरे के मोती की माला भी ले जाइए।  ऐसी चीज़ें बार
- बार नहीं मिलतीं।  ये भी बिकने
            के लिए हैं।
  कामिनी :  मैं तो कुछ कह ही नहीं पा रही हूँ।  आप मेरा नाम पता तो लिख लीजिए।  टेलीफ़ोन
            नंबर भी।  आजकल जब भाई भाई का विश्वास नहीं करता
 --  आप पुराने ज़माने की याद
            दिला रहे हैं।  जो एक दूसरे पर विश्वास औरर भरोसे का था।
दुकानदार :  आप औरर हम उसी ज़माने के हैं।

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Drafted 28-29 May 2001. Posted 30 May 2001.