यूनिवर्सिटी ऑफ़ मिशिगन
Dialogue dx: चोरी (6)
by कुसुम जैन
(used with author's permission)
To glossed version.
( इंस्पैक्टर ईश्वर सिंह औरर हवालदार
ज़िल्ले सिंह के जाने के बाद )
समीर : ये छोटू ने
अपना बयान बदल कैसे दिया ?
सीमा : उसे ज़रूर डरा-धमका कर बदलवाया होगा।
मोहन : बाऊजी, आपने देखा नहीं कि कैसे
इसके पेट में मार रहा था वो जल्लाद
ज़िल्ले सिंह ?
समीर : हाँ, छोटू बेचारे से तो
बोला भी नहीं जा रहा था।
मोहन : इसी तरह ये चोरियाँ
करवाते होंगे औरर चोरों
को बचाते होंगे। इतना सब तो
छोटू ने
बताया था आपको औरर मुझे।
सीमा : छोटू ने ही तो
चोरों को पकड़वाया है। तभी तो
वो जेल में बंद हैं।
समीर : तो इसीलिए वो यहाँ से
उसे ले गये होंगे कि छोटू की
गवाही ही बदल दो चोरों को
छुड़वाने के लिए।
लेकिन तुम रो क्यों रही
हो ?
सीमा : कितना धोखा हो रहा
है लोगों के साथ। हम लोग
कितने धोखे में जी रहे हैं।
सारा
विश्वास ही लुट गया,
चीज़ों से ज़्यादा क़ीमती।
मोहन : बीबीजी, छोटू रो रहा है। खाना भी
नहीं खा रहा।
समीर : तुम्हारा रोना समझ आ रहा है
लेकिन इसका नहीं।
सीमा : छोटू, क्या बात
है, बेटा ?
( छोटू चुप )
सीमा : बेटा, बताओ न। तुम तो अब यह कह कर
छूट ही गए कि तुमने कुछ देखा ही नहीं।
अब
तो तुम्हारी कोई ग़लती नहीं।
( छोटू औरर ज़ोर ज़ोर
से रोने लगता है। )
सीमा : ( उसे गले से लगाती है। )
छोटू, बता न। बात क्या है ?
समीर : बताओ, बेटा। अगर तुम नहीं
बताओगे तो हमें कैसे पता
चलेगा ?
छोटू : ( रोते-रोते )
बीबीजी, क्या आपने
हमें मरने के लिए भेजा था ?
सीमा : ये क्या कह रहा
है ? ऐसा कैसे
सोच सकता है ? बाबूजी ने, मैंने तुझे कभी हाथ नहीं
लगाया।
अच्छा पहले खाना खा।
छोटू : मैं
नहीं जीना चाहता।
सीमा : ऐसा नहीं कहते।
बता, बेटा,
बता। उन्होंने क्या किया
तेरे साथ ? यहाँ
बैठ।
छोटू : बीबीजी, उन्होंने बहुत सताया।
मुझे औरर एक औरर मेरे गाँव
के लड़के को कमरे में बन्द
कर दिया। वो
पूछते कि " बोल
तूने क्या देखा ?
तू सब झूठ बोल रहा
है। "
सीमा : देखो,
समीर, इन
जल्लादों को ! हाँ, छोटू, फिर ?
छोटू : अगले दिन फिर
यही किया। एक मोटे-से
ने मेरे हाथ पकड़े, दूसरे ने पैर, औरर तीसरे ने
बाल्टी भर कर पानी डाला
मेरे मुँह पर। मेरा दम
घुटने लगा।
सीमा : अरे बाप रे !
इतना ज़ुल्म सहा तूने ?
छोटू : कहने लगे कि
" सच बोल ! तूने कुछ नहीं देखा।
नहीं तो तेरी आँखों
में मिर्च वाला पानी
डालेंगे। "
अगले दिन भी यही किया।
लातों से मारते। जब मेरे
मुँह से निकल गया कि
मैंने कुछ
नहीं देखा तब कहा, " हाँ, यही याद
रखना ! "
सीमा : छोटू,
मुझे माफ़ कर। भगवान्
का लाख शुक्र है कि तू सही-सलामत आ गया। क्या पाँचों
दिन यही हुआ तेरे
साथ ?
छोटू : बाद के दो
दिन बस धमकियाँ देते रहे। बन्द ही रखा।
बीबीजी, वो तो
मुझे यहाँ ला ही
नहीं रहे थे।
मैंने बार-बार कहा कि
मैं तो बीबीजी के पास ही जाऊँगा।
सीमा : क्यों ? क्यों नहीं ला रहे थे ?
छोटू : कहते
थे, " बीबीजी तुझे
सिखाती हैं। औरर तू वही बोलता
रहता है तोते की तरह। तू क्या
करेगा वहाँ जाकर ? "
मैंने कहा, " मैं तो वहीं जाऊँगा। "
सीमा : ( उसे गले से लगाती है। )
छोटू, तूने बड़ा अच्छा किया। ये
तुझे मेरे ख़िलाफ़ भड़का कर
कहीं भटका देते।
उनकी कोशिश है कि चोरों के
ख़िलाफ़ सबूत ही ग़ायब हो जायें।
छोटू : बीबीजी, चोर उनके ही भाईबन्द होंगे।
मैंने आपको मुसीबत में
डाल दिया।
सीमा : छोटू, तूने तो मेरी आँखें
ही खुलवा दी हैं। अब असलियत सामने आई
है। जो सरकार
जनता के पैसे
से जनता के लिये चलती है वही
लोगों को लोगों के ख़िलाफ़
करती है।
ग़रीबों की ग़रीबी का
इस्तेमाल कर उनसे पैसे वालों के
ख़िलाफ़ ज़ुर्म करवाती है। अमीरों
से कहती है ग़रीब
चोर हैं, ग़रीबों से कहती है अमीर। एक
बड़ी लड़ाई है हमारे सामने।
छोटू : तो अब हम क्या
करेंगे ?
सीमा : क्या तू ये सब
बातें बड़े अफ़सर को बताएगा जो
तेरे साथ हुई हैं ?
छोटू : जी,
बीबीजी।
सीमा : अच्छा अब तू पहले खाना-पीना खा, औरर आराम
से सो।
(to be
continued)
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Drafted 9-10 June 2001. First part posted 11 June 2001. Second part posted
18 June 2001.