यूनीवर्सिटी ऑफ़ मिशिगन
Dialogue e?: राजेश की माळ्ँ
के घर (7)
by कुसुम जैन
To glossed version.
( सुमन घर ढूँढ़ती हुई गली
में राजेश के घर पहुँचती है।
देखती है घर में मातम सा छाया है
गुमसुम। घर में 5 x 5 के छोटे से कमरे
में पाँच बच्चों के साथ
माँ-बाप रहते हैं।
दोनों सफ़ाई कर्मचारी
हैं। )
सुमन : बहनजी मेरा नाम सुमन
है। मैंने आपके बेटे
राजेश पर जो ज़ुल्म हुआ अख़बार में
पढ़ा था। औरर मुझसे रहा
नहीं गया। आपके बेटे राजेश
से कोई ग़लती नहीं हुई। उसपर तो
उल्टे ज़ुल्म हुआ है। सरासर ज़्यादती हुई
है आप पर भी। यह हुआ कैसे ?
हमारी एक संस्था है
पेरैंट्स फ़ौरम फ़ौर
मीनिंगफ़ुल एजुकेशन। औरर हम इस
ज़ुल्म को बंद कराने की कोशिश में
लगे हैं औरर चाहेंगे कि
राजेश को भी न्याय मिले।
शांति : बहनजी, हमें तो शाम को पड़ोस के
बच्चों ने बताया कि राजेश . . .
( आँसू
बहने लगते हैं। )
सुमन : बहनजी, यह
तो आपका ही दुख नहीं, हम सबका है। इस समाज में
हमारे बच्चों के साथ पढ़ाई के नाम पर
बर्बरता हो रही है।
( शांति बोल नहीं पा रही। उसका
बेटा सोनू बोलने लगता है।)
सोनू : कोई दोपहर को ढाई
बजे स्कूल का चौकीदार आया था कि प्रिंसिपल सर
ने बुलाया है। मम्मी, पापा, औरर
मैं जब हम तीनों पहुँचे
तो वो चिल्ला रहे थे . . .
( to be
continued )
To glossed version.
To index of dialogues.
To index of मल्हार.
Drafted late June 2001. Posted 25 Sep 2001.