यूनिवर्सिटी ऑफ़ मिशिगन
फ़ैज़ अहमद ' फ़ैज़ '
ग़ज़ल in -अम
हम परवरिश-ए-लौह-ओ-क़लम करते
रहेंगे !
जो दिल पे गुज़रती
है रक़म करते रहेंगे !
. . 1 . .
असबाब-ए-ग़म-ए-इश्क़ बाहम करते
रहेंगे !
वीरानी-ए-दौराँ पे करम
करते रहेंगे !
. . 2 . .
हाँ, तलख़ी-ए-अय्याम अभी औरर बढ़ेगी
हाँ, अहल-ए-सितम मश्क़-ए-सितम करते
रहेंगे ! . . 3 . .
मंज़ूर यह तलख़ी,
यह सितम हम को गवारा
दम है तो मुदावा-ए-अलम करते
रहेंगे !
. . 4 . .
मैख़ाना सलामत है
तो हम सूर्ख़ी-ए-मै से
तज़ईन-ए-दर-ओ-बाम-ए-हरम करते रहेंगे !
. . 5 . .
बाक़ी है लहू दिल में
तो हर अश्क़ से पैदा
रंग-ए-लब-ओ-रुख़सार-ए-सनम करते रहेंगे !
. . 6 . .
एक तरज़-ए-तग़ाफ़ुल
है सो वह उन को मुबारक
एक अरज़-ए-तमन्ना है सो हम करते
रहेंगे !
. . 7 . .
To glossed version.
To index of post-Independence poetry.
To index of मल्हार.
Keyed in and posted 11-12 Nov 2001.