यूनिवर्सिटी ऑफ़ मिशिगन
कैसा लगे
?
एक ही ज़मीन पर
सूरज
चमके
औरर बरिश
पड़े
तो कैसा
लगे ?
आँसुओं से
भरी आँखें
कुछ सोच
के मम ही मन में
बरस पड़ें
औरर हँस दें
एक ही वक़्त
में
तो कैसा
लगे ?
क्या झगड़ा है ये मज़ाहिब का
?
फ़ँसाना है सारा राहिब का ।
तुम्हारा ख़ुदा
औरर मेरा ख़ुदा
एक ही हो असल
में
तो कैसा
लगे ?
कुछ जुनून हैं
मशरिक़ में ।
कुछ फ़नून
हैं मग़रब में ।
दोनों की
ज़मीन में न घूमे अगर साथ में
तो कैसा
लगे ?
- वसीमा शहज़ाद
This nazam was written in the Fall of 2003 by Wasima Shehzaad and
posted to मल्हार on 14 February 2004.
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