यूनिवर्सिटी ऑफ़ विर्जिनिया
मीर तक़ी ' मीर '
ग़ज़ल in -ओता
इब्तिदा-ए-इश्क़ है, रोता है क्या ?
आगे आगे देखिये, होता है क्या !
। । १ । ।
क़ाफ़लिे में सुबह के एक
शोर है,
यानी, ग़ाफ़लि,
हम चले, सोता है क्या ?
। । २ । ।
सब्ज़ होती ही नहीं यह सर ज़मीन
तुख़्म-ए-ख़ाहिश दिल में बोता है क्या
? । । ३
। ।
ये निशान-ए-इश्क़ हैं, जाते नहीं,
दाग़ छाती के अबस धोता
है क्या ?
। । ४ । ।
ग़ैरत-ए-यूसफ़ है यह वक़्त-ए-अज़ीज़,
' मीर ', इसको रैगान खोता है क्या
? । ।
५ । ।
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Keyed in and posted 30 Aug 2002.