यूनिवर्सिटी ऑफ़ मिशिगन
शहनशाह मुहम्मद
सिराजुद्दीन अबूज़फ़र बहादुरशाह ' ज़फ़र '
ग़ज़ल in -आ
हाल
नहीं कुछ
खुलता
मेरा, कौन
हूँ, क्या हूँ,
कैसा हूँ
मस्त
हूँ या
होशियारों में
हूँ, नादाँ
हूँ
या दाना
हूँ
। । १ । ।
कान
से सब
की सुनता
हूँ औरर मुँह से कुछ नहीं कहता
हूँ
होश
भी
हूँ, बेहोश
भी हूँ,
कुछ जागता
हूँ, कुछ
सोता हूँ । । २ । ।
कैसा
रंज
औरर कैसी राहत
, किस
की शादी
, किस का ग़म
यह भी
नहीं मालूम मुझे मैं जीता
हूँ या मरता
हूँ । । ३ । ।
कार-ए-दीन
कुछ बन नहीं
आता
, दावा
है
दींदारी
का
दुनिया
से
बेज़ार
हूँ लेकिन रखता
ख़ाहिश-ए-दुनिया
हूँ । । ४ । ।
यार
है मेरे दिल में
औरर काबे
में, बुत-ख़ाने
में
घर
में वह मौजूद
है औरर मैं घर घर ढूँढ़ता
फिरता
हूँ । । ५ । ।
कुछ
भी नहीं औरर सब कुछ हूँ, गर
देखो
चशम-ए-हक़ीक़त
से
मैं हूँ ' ज़फ़र ' मसजूद-ए-मलाइक
गरचे
ख़ाक
का पुतला
हूँ । । ६ । ।
To unglossed version of ग़ज़ल in -आ
To index of poetry.
To index of मल्हार.
Keyed in, posted, and proofed 8 Nov 2001.
Glossing function restored by Lawrence Hook 28 Nov 2105.