यूनिवर्सिटी ऑफ़ मिशिगन

दिल को दहला देने वाले दिन
by  कुसुम जैन

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                अच्छा,  अब मैं आपको उन्नीस-चौरासी के जो दंगे हुए औरर इन्दीरा गान्धी की हत्या की गई,  उस घटना को याद करके दिल दहलाने वाले क्षणों को याद करके आज ही दिल दहल जाता है,  दहशत से भर जाता है।  औरर दुख ही है कि यह सच्चाई हमारे जीवन में हुई औरर हालाँकि उस सच्चाई को विश्वास करने को मन भी नहीं करता लेकिन हुई है इसको नाकारा भी नहीं जा सकता।
        जिस दिन इन्दीरा गान्धी की हत्या हुई
,  में उस दिन सुबह नई दिल्ली जा - -     जा रही थी औरर मैंने देखा जैसे हम आगे बढ़ते गए कुछ सन्नाटा छाता जा रहा था रास्ते भर।  औरर जब मैं नई दिल्ली की दुकानों में -  मुझे कुछ काम था -  वहाँ पहुँची तो हर दुकान पे एक तरह की बड़ी ही -   -  चुप्पी-सी छा - -     छा जाती थी।  औरर सब लोग दुकान अपनी एक-एक करके बन्द करते चले जा रहे थे।  औरर ? ? ? किसीने इन्दीरा गान्धी को - -     पर आक्रमण किया,  हमला किया है।  अभी यह ख़बर नहीं आई थी कि,  कि वह अब दुनिया में नहीं है।  औरर इस तरह मैंने देखा कि सारा कनॉट प्लेस धीरे-धीरे बन्द हो गया।  में भी घर लौट आई।
       घर लौट आने के बाद शाम को पता चला कि एक घटना घटी
(?) कि एक सिक्ख ने,  औरर वह उसका सुरक्षा करमचारी था,  उसने ही उसप--    उसको बन्दूकों से उसको छलनी-छलनी कर दिया।  औरर हमारे घर के जो मकान-मालिक हैं,  वह सरदारजी हैं,  वह नीचे रहते हैं,  हम ऊपर रहते हैं,  औरर हमारे पड़सा में घर हैं जो सरदार--     जहाँ सरदार लोग रहते हैं आगल-बगल में भी . . .
       तो उस दिन मैंने तो,   हमने देखा कि सारे शहर में सब जगह एक तरह की--   --   दुख-भरी ख़ामोशी छाई हुई थी औरर सबने अपने सारे कार्यक्रम जो ख़ुशियों के थे--  वह शादियों का महीना भी होता है - - सबने सब कुछ बन्द कर दिया था।  उसको -   -  पोस्टपोन,  सब कुछ ख़तम कर दिया था।  कुछ नहीं हो रहा था।
        लेकिन हमारे
. . .  जो नीचे . . .  वह लोग,  सरदार लोग,  वह अपनी ख़ुशियाँ मनाए जा रहे थे।  यह हमने ज़रूर देखा,  उस दिन।  हमें अच्छा भी नहीं लगा लेकिन क्या कर सकते हैं।  उनको वही सही लग रहा था उस समय शायद।  लेकिन यह देखकरके हमें हैरानी बहुत हो रही थी।
        औरर अगले दिन
---  नज़र आया कि यह तो सारे बेचारे सिक्खों पर आफ़त आ गई (???)    कहाँ से आ-आके उनके ऊपर हमले करने लग गये।  औरर ये ख़बरें आने लगीं (?)  फिर अगले दिन आर्मी भी आ गई,  पुलिस भी आ गई।  औरर मैं यह देख रही थी कि ये हमले क्यों हो रहे हैं ?  कुछ सुरक्षा कंट्रोल नहीं हो रही है यहाँ पर।  मुहल्लों-मुहल्लों में क्या हो रहा है ?  हमारे मुहल्ले में भी,  एक सरदारजी थे,  वह अपनी सुरक्षा के लिए छत पर चढ़कर दनादन बन्दूक़ चलाने लगे थे।  औरर इस तरह से . . .    मतलब,  एक हिंसा का माहौल-सा बढ़ने लगा था।
        औरर हमारे घर में जो भी औरर किराएदार थे जो सिक्ख नहीं थे,  वह सब घर छोड़के भाग गए थे,  सब।  हमारे के पीछे के भी,  वह सब।  औरर हमसे भी कहा जा रहा था कि " यहाँ से तुम लोग निकल आओ !  खत--  हालत बहुत खतरनाक हो चुकी है। "
        लेकिन मैंने औरर मेरे पति ने कहा  ( औरर मेरा बच्चा भी था )  कि  " हम यहाँ से घबराकरके,  डरके नहीं जाएँगे।  औरर इस पागलपन के हम लोग हिस्सेदार नहीं होंगे,  बिल्कुल भी।  इसको हमने रोकना है,  ना कि इससे डरके भागना है। "
        तो हम लोग नहीं गए वहाँ से,  औरर अपने घर में ही रहे।  औरर फिर हम - -   (?)  क्योंकि यह सरदारों का घर था इसलिये यहाँ ज्यादा खतरा भी था तो हमने कहा, " हम इसको बचाएँगे।  इसलिये नहीं के हम सरदार नहीं तो हम इसको जलने देंगे या इसको - -  यहाँ हमला होने देंगे। "
        तो हमारे जो सरदारजी नीचेवाले थे वह सब ऊपर आ गए हमारे पास।  उनके- -  उनका बच्चा भी,  उनकी बूढ़ी माँ भी,  वह भी ऊपर आ गये वहाँ पर।  फिर हमारे पास रहे।
        तो मैं
- -   . . .  लेकिन मुझे बड़ी . . .  हाँ- -  थोड़ा दुख भी होता था कि उनकी माँ जो बूढ़ी थी वह कहती थी कि  " अगर एक इन्दीरा गांधी को मार दिया है तो क्या वह सब को मार देंगे,  सारे सिक्खों को ?"
        मैंने कहा कि " ऐसी बात नहीं है।  ये सब - -  ये - -  पा--  पागलों-- "  समझाते हुए कहा,  " ये सब लोग पागलपन में आ रहे हैं।  अंधे हो रहे हैं,  पागलपन से।  ग़ुस्से में पागल हो रहे हैं। "
        लेकिन उनको . . .
        ज्यादा दुख . . .  दुख तो इस बात का है कि एक सिक्ख जिसके ऊपर ज़िम्मेदारी थी,  इन्दीरा गांधी की सुरक्षा की,  उसने ही कितना बड़ा थोखा  ( = धोखा ? )  कैसे दे दिया ?  इन्दीरा गांधी - -  औरर एक,  एक नहीं ??? औररत को गोलियों से भून डाला।  इसमें कौनसी बहादुरी हुई ?  यह बात तो मुझे समझ में नहीं आती है।  ख़ैर उनको समझाया;  दिलासा दी उनको कि  " सब ठीक हो जाएगा।  आप चिन्ता नहीं कीजिये।  यह पागलपन जल्दी खतम हो जाएगा। "
        हम- -    पुलिस,  वहाँ भी गए,  पुलिस-थाने में भी,  औरर कहा कि,  " यहाँ पर सब लोग इतने डरे-वे हैं,  घबराए-वे हैं,  आप लोग कुछ आकरके करते क्यों नहीं ? "  फिर देखा शाम तक पुलिस क्या करती ?  आर्मी ही पहुँच चुकी थी औरर आर्मी कहीं किसी को आने-वाने-जाने नहीं दे रही थी।
        औरर जहाँ
-जहाँ भी --     हम अपनी छत से देख रहे थे कि कुछ आगें लगी-वी थीं औरर उनके धुएँ उठ रहे थे।
        औरर सरदारजी के बच्चे इतने डरे-वे थे बेचारों की कि बिल्कुल ही भूख-प्यास ग़ायब हो गई थी।  इतने --  मुझे बहुत दुख होता था कि इन बच्चों का इतना --  ऐसा --  सहमा होना,  इतना डरे-वे होना . . .  मुझे बहुत दुख होता था कि यह सब देखके . . .  मैं सोचती थी कि आम सभी स्कूलों में कबीर --   --  गुरु ग्रन्थ साहब --  गुरु नानक की बानियाँ पढ़ते आए हैं।  औरर गुरु नानक के ग्रन्थ साहब में सारा कबीर भरा है,  औरर चीज़ें भरी हैं।  औरर आज हम लोग --  यह नफ़रत कहाँ से आ गई अचानक एकदम ?  यह क्या हो सकती है असली बात ?  अभी हम गुरु नानक के औरर कबीर --  सब उनकी बातें --  कविताएँ पढ़ते थे औरर अचानक नफ़रत कैसे पैदा हो गई ?
        शुकर है कि वह कुछ ही समय के लिये थी वह पागलपन औरर कुछ ही लोगों ने पैदा किया-वा था।  बाक़ी लोगों में नहीं था।  औरर वह जो दर्दनाक औरर शरमनाक हादसा था वह अब इतिहास के पन्नों का ही बनकर रह गया है औरर रह जाएगा यही मेरी उम्मीद है औरर भविष्य की आशा है।

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Recorded in Ann Arbor by  कुसुम जैन on 1 July 2002. Transcribed and posted 6 July and 15 July and 23-26 July 2002. Audio file created and posted 2 July 2002. Some corrections 3 Sept 2002.