यूनिवर्सिटी ऑफ़ मिशिगन
अवाञ्छित, a short
story by अन्विता अब्बी
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" किसी को मेरी
ज़रूरत नहीं है।
--- नोबडी नीड्स मी। "
" क्यों, ऐसी
भी क्या मुसीबत है ?"
" किसी को तुम्हारी भी ज़रूरत नहीं
है। "
" हूँ।
[5]
मैं बहुत कुछ कर सकता
हूँ। "
उस में
आत्म-विश्वास था।
" तब न जब तुम से कुछ करने को
कहे। "
" सो जाओ, क्यों बेकार परेशान होती
हो।
देखा जायेगा। "
[10]
" वह उम्र गुज़र गयी जब अनिश्चय की
स्थिति में नींद आ जाया करती थी औरर
भूल जाती थी कि कोई समस्या भी है ज़िन्दगी
में। "
" ऊँ, तुम्हें नींद नहीं आ रही
है ?"
उसने करवट
बदली।
" मतलब कि तुमने मेरी वाक्य नहीं
सुना।
मैं कह रही थी कि वो उम्र
गुज़र.ाम्प्ऌ.ाम्प्ऌ.ाम्प्ऌ । "
[15]
" हाँ, ठीक है।
कोई बात नहीं।
अब सो जाओ। "
" तुम मुझे बच्चे की तरह
ट्रीट करते हो। "
" तो क्या बूढ़ों की तरह ट्रीट
करूँ ?
[20]
बात ही ऐसी कर रही
हो।
सुबह उठना नहीं
है ?"
" उठना सिफऱ् उठने-भर
के लिए है।
उठ के क्या करना है, यह नहीं सोचा ?
कपड़े पहन कर अखबार
खरीद कर लाने औरर उस में सिफऱ्
' वांटेड ' के कालम पढ़ने को तुम काम
कहते हो ?
[25]
उसी के लिए इतनी
तैयारी कि अब सो जायें जैसे
सुबह किसी काम पर जाना है !"
" ऊँ-हूँ।
न सही काम, जल्दी उठ कर कुछ प्लान तो किया जा सकता
है। "
" सिफऱ् प्लानिंग !
प्लानिंग से
तुम बोर नहीं हुए अभी ?"
[30]
" प्लानिंग से अभी बोर नहीं
होना चाहिए। "
" होना चाहिए का क्या मतलब।
जब होओगे तब तक हो
चुकोगे।
होना चाहिए धरा का धरा रह
जायेगा। "
" सुनो, तुम
बहस के मूड में लग रही हो।
[35]
देखो, सारा कम्बल तुमने खींच लिया है
और मुझे सर्दी.ाम्प्ऌ.ाम्प्ऌ.ाम्प्ऌ । "
" मैं क्या करूँ, तुम खुद इतनी करवटें बदलते
हो कि अपने-आप कम्बल के
बाहर निकल जाते हो "
थोड़ी देर बाद : " अब ठीक है ?"
वह उस के औरर पास
खिसक गयी।
" नोबडी नीड्स यू। "
[40]
" नोबडी नीड्स मी। "
" फिर वही। "
" कैसी बातें करती हो,
मुझे तुम्हारी ज़रूरत है।
मैं तुझे चाहता
हूँ। "
" तुम तो चाहते ही हो।
देश नहीं चाहता।
[45]
जानते हो कितनी जगह
मैंने अप्लाई किया है ?
--- तीस जगह।
विश्वास कर सकते हो ?
किसी को मेरी
ज़रूरत नहीं है।
काम क्या है --- सीधा-सादा।
[50]
इतिहास पढ़ाना चाहती हूँ।
कोई बुरी बात तो नहीं कर
रही। "
" कभी सोचा है कि क्यों पढ़ाना चाहती
हो ?"
" हाँ, हाँ,
सोचा क्यों नहीं है।
मन है इस लिए पढ़ाना चाहती
हूँ।
[55]
अपने-आप
को इस काबिल समझती हूँ इस लिए पढ़ाना चाहती
हूँ --- आखिर एम॰ ए॰
किया है, कोई मज़ाक तो
नहीं !"
" सेकण्ड डिवीज़न में। "
" हाँ, लेकिन उनसठ
पाईंट सात परसेंट से।
यह भी कोई बात है ---
सारे स्टेट में सिफऱ्
दो ही फ़स्र्ट क्लास थीं।
" पर इतिहास पढ़ा कर क्या करोगी ?"
[60]
" सुनो, तुम
सुनने के मूड में नहीं हो।
तुम साइंस पढ़ा कर क्या
करोगे ?
विज्ञान ने ज़िन्दगी
दूभर कर दी है !"
" मैं विज्ञान पढ़ाना नहीं, उस से कुछ करना चाहता हूँ।
अपने हाथों से कुछ
बनाना चाहता हूँ।
[65]
मैं बहुत काम का व्यक्ति
हूँ।
देश ने अभी मुझे पहचाना
नहीं है। "
" देश को तुम्हारी ज़रूरत नहीं है।
पहचानने-न
पहचानने का कोई सवाल नहीं है।
साले सब अपने पहचानने
वालों को नौकरी देते हैं।
[70]
मुसीबत यह है कि न हमारी किसी
को ज़रूरत है औरर न हमें कोई जानता
है.ाम्प्ऌ.ाम्प्ऌ.ाम्प्ऌ "
" औरर न कोई पहचानने की कोशिश ही
करता.ाम्प्ऌ.ाम्प्ऌ.ाम्प्ऌ "
" कोशिश, हूँ।
मुझे इसी शब्द से चिढ़ हो
गयी है।
कभी न खत्म होने वाला उपक्रम।
[75]
फल की आशा मत रखो, सिर्फ कोशिश किये जाओ
जैसे कोल्हू का बैल.ाम्प्ऌ.ाम्प्ऌ.ाम्प्ऌ "
" सोने की कोशिश करो। "
" सुनो, तुम, तुम ज़रूर
चिढ़ाओगे। "
" तो सो जाओ न !
रात के ढाई बज रहे
हैक्ष्। "
[80]
" जब अगले दिन का पता न हो,
कुछ करना न हो तो ढाई
बजें या छह, उस का क्या
अर्थ है ?
घड़ी की दो
सूइयाँ जो समय बताती हैं उन का
अर्थ किसी न किसी सन्दर्भ में होता है।
जब वह सन्दर्भ ही न हो तो
समय बेकार है। "
" समय भागा जा रहा है। "
उसने करवट ली।
[85]
" कब नहीं भागा था ?
जो भागे वही
समय है।
जो न भागे वह मैं
हूँ।
सोचा था कभी भाग
लूँगी, पर वहीं की
वहीं हूँ।
ठीक उसी स्थिति में जो ब॰
ए॰ के पहले थी।
[90]
मैं रुक गयी हूँ
जैसे ख़राब घड़ी।
चाबी तो भरी हुई है पर
मैं भाग नहीं पा रही हूँ औरर
मेरे साथ सब रुका है --- सब !
तुम भी।
तुम वहीे के वहीं
हो, किसी को तुम्हारी भी
ज़रूरत नहीं है।
नोबडी नीड्स यू। "
[95]
" बिज़नेसमैन को कम से कम य फ़क्रि
तो नहीं होती होगी।
उस को कहीं अप्लाई नहीं करना
होता।
वह ज़रूरतें पैदा करता है
औरर हम ज़रूरतें ढूँढ़ते
हैं। "
" सिफऱ् इतना-सा
फ़र्क ?
चलो, हम भी फ़ैक्टरी खोल लें। "
[100]
" हूँ। "
थोड़ी देर
मौन।
" किस की ?"
" इतिहास, भौतिक
औरर रमायन-शास्त्र के
नोट्स की "
उसने सोचा था
वह उस का वाक्य सुन कर हँसेगा, पर वह गम्भीर हो गया।
काफ़ी देर का मौन !
[105]
" जानती हो, देश
चाहे तो मुझे बहुत यूटिलाइज़ कर
सकता है।
मैं देश की राजनीति बदल
सकता हूँ। "
" बदल सकता हूँ --- जिस को देखो वही समाज को
बदलने को तैयार बैठा है।
मेरे पिता जी भी यही कहते
थे --- " मैं
समाज को बदल डालूँगा। "
हुआ क्या ?
[110]
वह वहीं के
वहीं हैं औरर समाज ?
वह ज़रूर अपनी धुरी
से खिसका है, पर उस तरफ़
नहीं जिस तरफ़ वह चाहते थे।
हर बदल देने वाला अन्त
में यही रिएलाइज़ करता है कि वह
बदलते-बदलते ख़ुद मर गया
है औरर समाज तो समाज, उस का पड़ौसी भी ब्लैक-मार्केट में डाँलर खरीदता
है। "
" मैं वाकई बहुतकुछ बदल सकता
हूँ, मेरे पास कई
महत्तपूर्ण नुस्खे
हैं.ाम्प्ऌ.ाम्प्ऌ.ाम्प्ऌ "
" नोबडी नीड्स यू।
[115]
तुम तो बहुत कुछ कर
सकते हो, पर किसी को
तुम्हारी ज़रूरत नहीं। "
" किसी संस्था को कभी किसी व्यक्ति की ज़रूरत
नहीं होती, हमेशा
व्यक्ति को संस्था की ज़रूरत रही है। "
" शायद तुम ठीक कहते हो।
मुझे नौकरी की ज़रूरत
है। "
" तुम्हें नौकरी की ज़रूरत है
औरर देश की संस्थाएँ तुम्हें
नौकरी न दें तो क्या उपाय है ?"
[120]
" क्रान्ति, रिवोल्यूशन। "
" क्रान्ति रिवोल्यूशन !
सो
जाओ --- तीन से ऊपर
हो गया है "
एक लम्बी साँस औरर ढेर सारी
चुप्पी !
कम्बल में कुछ
हरकत.ाम्प्ऌ.ाम्प्ऌ.ाम्प्ऌ
[125]
" मेरे पैर बहुत ठंडे हो
रहे हैं --- देखूँ क्या तुम्हारे भी बहुत
ठंडे हो रहे हैं ?
ठंड लग रही
है। "
वह उस के पैर पर
पैर रखते हुए बोला।
" एक कम्बल औरर ले आऊँ ?"
" नहीं, ऐसे
ही ठीक है।
[130]
औरर पास सरक आओ। "
" सब्स्टीट्यूट अच्छा ढूँढ़ा
है। "
" अच्छा, अब सो
जाओ। "
" नींद तुम्हें भी नहीं आ रही
है --- सो
जाओ, सो जाओ
कह-कह कर तुम खुद अपने का भी
सुलाने की कोशिश कर रहे हो। "
" मुझे नींद आ रही थी, सब तुमने भगा दी। "
[135]
" अब मुझे मत दोष दो। "
" तुम्हें दोष नहीं दे रहा
हूँ, ठीक कह रहा
हूँ। "
" तुम हर बात हर समय ठीक कहते
हो। "
" तुम बात-बात प खीझ रही
हो। "
तुम सो जाओ। "
[140]
हाँ, अब हुई न
बात !
इतनी देर से कह रहा
हूँ.ाम्प्ऌ.ाम्प्ऌ.ाम्प्ऌ "
अच्छा ठीक है। "
उसने करवट
बदली।
ढेर सारी चुप्पी औरर फिर "
हम को जीने का कोई हक़ नहीं
हैं।
[145]
नोबडी नीड्स अस। "
हम तो एक-दूसरे
की ज़रूरत हैं।
क्या यह काफ़ी नहीं है ?"
" काफ़ी तो नहीं पर गुज़ारे लायक ठीक
है। "
" गुज़ारा नहीं, इसी कारण अब तक हम जी रहे हैं।
[150]
इतना भी नहीं होता तो अब
तक कभी के टूट गये होते। "
" नींद आ रही है। "
" सो जाओ न !"
औरर वह उस के
बालों को थपककियाँ देने लगा।
" सुनो, मुझे आज भी नहीं हुआ। "
[155]
" अभी औरर इन्तज़ार करो, तुम बहुत जल्दी परेशान हो जाती
हो। "
" नहीं, आज दस दिन
से ऊपर हो गये हैं।
इस तरह हम होनी को टाल नहीं
सकते।
मैं आज ही डाँक्टर से
एपाएंटमेंट लेती हूँ। "
" ठीक है।
[160]
जितनी जल्दी पता चल जाये उतना ही
अच्छा है।
कम से कम अनिश्चय औरर अज्ञान की
स्थिति से तो उबरोगी। "
औरर हुआ भी वही
जिस का उन को अन्देशा था।
" देखों, मैं कह रही थी, मुझे कुछ-कुछ
लग रहा था। "
उसकी आवाज़ में
अनजाने एक भर्राहट थी।
[165]
" तुम क्यों घबरा रही हो।
सब ठीक होगा। "
" पर तुम भली भाँति जानते हो कि
हमने ऐसा प्लान नहीं किया था। "
" क्या दुनिया में हर चीज़ प्लानिंग
से चलती है, या होती
है ?
प्लान तो हमने
यह भी किया था कि मुझे आज से दो साल
पहले नौकरी मिल जाती औरर
तुम्हें.ाम्प्ऌ.ाम्प्ऌ.ाम्प्ऌ "
[170]
" पर यह बात औरर है, फिर हम अभी अफ़ोर्ड भी नहीं कर सकते।
खुद का पता नहीं, आने वाले का क्या होगा,
कौन पता करेगा ?
बोलो ?"
" कुछ न कुछ होगा। "
" पर क्या तुम उस का स्वागत ' कुछ न कुछ ' से करना चाहोगे ?
[175]
यह जानते हुए भी
कि उसका होना पूर्ण रूप से ग़लत वक्त पर
है ?"
" उस के होने तक वक्त अपने आप ठीक
हो जायेगा। "
" इसी दर्शन के पंजे तो सारी
जनता को जकड़े हुए हैं औरर तुम
भी उसी में फँस रहे हो। "
" मैं फँस नहीं रहा हूँ।
किसी तरह से ग़लत को सही
करने की कोशिश कर रहा हूँ। "
[180]
" जब एक बार तुमने मान लिया कि वह ग़लत
है तो उस को स्वीकारने से वह सहीे
नहीं हो जाता। "
" फिर क्या चाहती हो ?"
" अस्वीकृति।
रिजेक्शन। "
" यानी उस के ' होने ' को ' न
होने ' में बदलना
चाहती हो ?"
[185]
" हाँ, तब तक जब तक
हमें उस का होना सही न लगने लगे।
या तब तक जब तक वह वांछित न
हो। "
" वह बहुत परेशान नज़र आ रहा था।
" पूर्ण रूप से
वह अवांछित भी नहीं है।
कभी न कभी तो होना ही था।
[190]
कुछ पहले ही सही। "
" कभी न कभी तो कोई चीज़ें
होती हैं, पर उस समय
जिस समय तुम चाहते हो उस चीज़ के
होने का महत्त्व अलग है। "
" ठीक है, उस महत्त्व
के बारे में मैं भी जानता
हूँ।
पर यह कोई आसान काम नहीं
है। "
इस बार वह परेशान नज़र आ रही थी।
[195]
" मुझे नहीं मालूम, सब कुछ हमीं लोगों को
क्यों सहना पड़ता है ?
औरर भी तो
बहुत-से लोग हैं
दुनिया में। "
वह रुआँसी हो आयी
थी।
" हम लोग ख़ास हैं, स्पेशल। "
औरर उस के लटके चेहरे पर पीली
मुस्कान दौड़ गयी।
[200]
" चलो, थोड़ा टहल
आते हैं, फिर सोच
लेंगे। "
" फिर का वक्त नहीं है। "
डाँक्टर कह रहा था,
" मिसेज़ वर्मा, यदि निर्णय ' ना ' हो तो
जल्दी से जल्दी बता दीजिएगा, उस
के बाद.ाम्प्ऌ.ाम्प्ऌ.ाम्प्ऌ "
" अच्छा उठो तो, रास्ते में बात
करेंगे। "
" अवांछित, हर चीज़
अवांछित होती जा रही है।
[205]
किसी को किसी की ज़रूरत नहीं है
औरर जब ज़रूरत नहीं है तो क्यों
हो ?
उस को पूरा अधिकार
है एक स्वतन्त्र औरर वांछित जीवन जीने का।
उस को पूरा अधिकार है यह
कहने का कि मेरा अस्तित्व वांछित
है -- चाहा गया था,
उन के द्ववारा
जिन्होंने मुझे रचा है।
उस को कुत्तों की
ज़िन्दगी हम नहीं देंगे।
उस का ' होना ' तभी
होगा जब हम-तुम
दोनों चाहेंगे।
[210]
तब जब तुम उस की बाट
जोहोगे औरर मैं रचनाकार के रूप
में पुलकित हो रही हूँगी। "
" मुश्किल यह है कि तुम जो
कुछ सोच रही हो उस से मैं सहमत
हूँ, पर सहमति का मतलब
है.ाम्प्ऌ.ाम्प्ऌ "
" डेफ़नििट ऐक्शन।
औरर उस से तुम घबरा रहे
हो "
" ठीक कह रही हो। "
[215]
" घबराना मुझे चाहिए औरर घबरा तुम
रहे हो ?"
" हाँ, क्योंकि
सहन तुम को करना होगा, दर्द तुम्हें होगा ---
औरर तुम्हारा दर्द मैं
सहन नहीं कर पाता। "
" आज तुम बच्चोंवाली बातें कर
रहे हो। "
" यह शुक्र मनाओ कि तुम ऐसे
देश में हो जहाँ तुम्हें
चुनाव की स्वतत्रता है, नहीं तो.ाम्प्ऌ.ाम्प्ऌ.ाम्प्ऌ "
" उसी को भाग्य मान लेते। "
[220]
वह उस को अंक में लेता
हुआ बोला --- " सह
पाओगी ?
हम लोगों
को औरर सतर्क रहना चाहिए था। "
" सतर्कता कम नहीं थी !
जब सारे काम उल्टे
होने हों तब ऐसा ही होता
है। "
" इसी को भाग्य कहते हैं। "
[225]
" भाग्य की संज्ञा दे कर तुम मुझे
कमज़ोर बना रहे हो। "
" कमज़ोर मैं तुम को नहीं
बना रहा हूँ।
खुद कमज़ोर महसूस कर रहा
हूँ। "
औरर वे घूमने जाने के
बजाय देर तक खिड़की के बाहर उड़ते
पत्तों को देखते रहे कि पेड़
सब ठूँठ बने जा रहे थे।
" यह दूसरा पतझड़ है औरर हम वहीं
के वहीं हैं.ाम्प्ऌ.ाम्प्ऌ.ाम्प्ऌ "
[230]
" विद ए लिटल ऐडीशन --- " उसने जोड़ा।
" वह भी ग़ैर-ज़रूरी !"
उसने एक बार उस की ओर देखा।
उसने जल्दी-जल्दी
चप्पलें पहनीं औरर दरबाज़े की ओर
बढ़ा।
" कहाँ जा रहे हो ?"
[235]
वह घबरा-सी गयी।
" डाँक्टर को फ़ोन करने। "
वह गेट हो गया
था।
उस को वार्ड से बाहर
निकलते देख कर उस की जान में जान आयी।
वर्ना वह पिछले एक घंटे
से सिफऱ् दीवार पर लटकी घड़ी की सुइयों की
तरफ़ निगाह किये बैठा था।
[240]
जसे उस की आँखें
सुइयों पर गोंद की तरह चिपक गयी
थीं।
दो अंकों के बीच की
दूरी उसे मीलों की लग रही थी औरर आज
उसे पहली बार लग रहा था कि ज़िन्दगी में समय रुक
गया है।
वह भाग ही नहीं रहा जैसे कि
अक्सर भागा करता है।
समय फिर खिसका है इस का ज्ञान उस
को उस का पीला थका चेहरा देख कर हुआ।
वह उस से लिपट गयी थी।
[245]
" बहुत दर्द हुआ था ?"
वह न चाहते हुए
भी पूछ बैठा।
" बहुत। "
उस की आवाज़ दूर
से आ रही थी।
वह बहुत थकी लग रही थी।
[250]
वह उसे सहारा दे कर बरामदे तक
लाया।
" मैं चलना नहीं चाहती
हूँ। "
" नहीं, चलो
मत, यहीं बैठो।
मैं भाग कर टैक्सी लाता
हूँ। "
" टैक्सी में क्यों पैसे
बरबाद.ाम्प्ऌ.ाम्प्ऌ.ाम्प्ऌ "
[255]
" बालो मत।
अपनी हालत देखो। "
उसका मुँह कड़वा हो रहा था।
टैक्सी में वह
रास्ते-भर उस के कन्धे पर सिर
टिकाये बैठी रही।
घर पहुँचते ही उसने उस से
लेटने को कहा।
[260]
" बहुत थक गयी हूँ।
नींद आ रही है।
ऐसा लगता है कई दिनों
से सोयी नहीं हूँ। "
" सो जाओ न। "
" नोबडी नीडेड हिम। "
[265]
" अब सो जाओ।
हम ने सोच कर ही फ़ैसला किया
था।
अब उस के बारे में मत
सोचो। "
" नहीं, अब अपने
बारे में सोच रही हूँ।
नोबडी नीड्स अस।
[270]
किसी को हमारी ज़रूरत नहीं है।
उस की भी ज़रूरत हमें नहीं थी
औरर बेज़रूरत वाले कभी नहीं होते।
उन का गला घोंट दिया जाता
है।
उन का अस्तित्व ही नहीं
होता। "
To index of post-Independence literature.
To index of मल्हार.
Keyed in by विवेक अगरवाल
26-27 Feb 2002. Posted 3 March 2002.