यूनिवर्सिटी ऑफ़ मिशिगन

बड़े भाई साहब



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            मेरे भाई साहब मुझसे पाँच साल बड़े थे;  लेकिन केवल तीन दरजे आगे। उन्होंने भी उसी उम्र में पढ़ना शुरू किया था जब मैंने शुरू किया;  लेकिन तालीम जैसे महत्व के मामले में वह जल्दबाज़ी से काम लेना पसन्द न करते थे। इस भावना की बुनियाद ख़ूब मज़बूत डालनी चाहते थे,  जिस पर आलीशान महल बन सके। एक साल का काम दो साल में करते थे। कभी-कभी तीन साल भी लग जाते थे।  [5] बुनियाद भी पुख़्ता न हो,  तो मकान कैसे पायेदार बने !
    मैं छोटा था,  वह बड़े थे। मेरी उम्र नौ साल की थी,  वह चौदह साल के थे। उन्हें मेरी तम्बीह औरर निगरानी का पूरी औरर जन्मसिद्ध अधिकार था। औरर मेरी शालीनता इसी में थी कि उनके हुक्म को कानून समझूँ।  [10]
    वह स्वभाव से बड़े अध्ययनशील थे। हरदम किताब खोले बैठे रहते। औरर शायद दिमाग को आराम देने के लिए कभी कापी पर,  कभी किताब के होशियों पर चिड़ियों,  कुत्तों,  बिल्लियों की तस्वीरें बनाया करते थे। कभी-कभी एक ही नाम या शब्द या वाक्य दस-बीस बार लिख डालते। कभी एक शेर को बार-बार सुन्दर अक्षरों में नकल करते।  [15] कभी शब्द-रचना करते,  जिसमें न कोई अर्थ होता,  न कोई सामंजस्य। मसलन एक बार उनकी कापी पर मैंने यह इबारत देखी---  स्पेशल,  अमी ना,  भाइयों-भाइयों,  दर-असल,  भाई-भाई,  राधेश्याम-श्रीयुक्त राधेश्याम,  एक घण्टे तक-  इसके बाद एक आदमी का चेहरा बना हुआ था। मैंने बहुत चेष्टा की कि इस पहेली का कोई अर्थ निकालूँ,  लेकिन असफल रहा। औरर उनसे पूछने का साहस न हुआ। वह नवीं जमात में थे,  मैं पाँचवीं में।  [20] उनकी रचनाओं को समझना मेरे लिए छोटा मुँह बड़ी बात थी।
    मेरा जी पढ़ने में बिलकुल न लगता था। एक घण्टा भी किताब लेकर बैठना पहाड़ था। मौका पाते ही होस्टल से निकलकर मैदान में आ जाता
,  औरर कभी कंकरियाँ उछालता,  कभी कागज की तितलियाँ उड़ाता,  औरर कहीं कोई साथी मिल गया,  तो पूछना ही क्या। कभी चादरीवारी पर चढ़-कर नीचे कूद रहे हैं,  कभी फाटक पर सवार,  उसे आगे-पीछे चलाते हुए मोटरकार का आनन्द उठा रहे हैं,  लेकिन कमरे में आते ही भाई साहब का वह रुद्र-रूप देखकर प्राण सूख जाते !  [25] उनका पहला सवाल यह होता-----  ' कहाँ थे ?' हमेशा यही सवाल,  इसी ध्वनि में हमेशा पूछा जाता था औरर इसका जवाब मेरे पास केवल मौन था। न जाने मेरे मुँह से यह बात क्यों न निकलती कि ज़रा बाहर खेल रहा था। मेरा मौन कह देता था कि मुझे अपना अपराध स्वीकार है औरर भाई साहब के लिए इसके सिवा औरर कोई इलाज न था कि स्नेह औरर रोष से मिले हुए शब्दों में मेरा सत्कार करें।
    
इस तरह अंग्रेजी पढ़ोगे,  तो जिन्दगी भर पढ़ते रहोगे औरर हर्फ न आयेगा।  [30] अंग्रेजी पढ़ना कोई हँसी-खेल नहीं है कि जो चाहे,  पढ़ ले;  नहीं ऐरा-गैरा नत्थू-ख़ैरा सभी अंग्रेजी के विद्वान हो जाते। यहाँ रात-दिन आँखें फोड़नी पड़ती हैं औरर खून जलाना पड़ता है,  तब कहीं यह विद्या आती है। औरर आती क्या है,  हाँ कहने को आ जाती है। बड़े-बड़े विद्वान भी शुद्ध अंग्रेजी नहीं लिख सकते,  बोलना तो दूर रहा। औरर मैं कहता हूँ,  तुम कितने घोंघा हो कि मुझे देखकर भी सबक नहीं लेते।  [35] मैं कितनी मिहनत करता हूँ,  यह तुम अपनी आँखों से देखते हो,  अगर नहीं देखते,  तो यह तुम्हारी आँखों का कसूर है,  तुम्हारी बुद्धि का कसूर है। इतने मेले-तमाशे होते हैं,  मुझे तुमने कभी देखने जाते देखा हैरोज ही क्रिकेट औरर हाकी-मैच होते हैं। मैं पास नहीं फटकता। हमेशा पढ़ता रहता हूँ।  [40] उस पर भी एक-एक दरजे में दो-दो,  तीन-तीन साल पड़ा रहता हूँ;  फिर भी तुम कैसे आशा करते हो कि तुम यों खेल-कूद में वक्त गँवाकर पास हो जाओगेमुझे तो दो ही तीन साल लगते हैं,  तुम उम्र-भर इसी दरजे में पड़े सड़ते रहोगेअगर तुम्हें इस तरह उम्र गँवानी है तो बेहतर है;  घर चले जाओ औरर मजे से गुल्ली-डण्डा खेलो। दादा की गाढ़ी कमाई के रुपये क्यों बरबाद करते हो ?'
    मैं यह लताड़ सुनकर आँसू बहाने लगता।  [45] जवाब ही क्या था। अपराध तो मैंने किया,  लताड़ कौन सहेभाई साहब उपदेश की कला में निपुण थे। ऐसी-ऐसी लगती बातें कहते,  ऐसे-ऐसे सुक्ति-बाण चलाते,  कि मेरे जिगर के टुकड़े-टुकड़े हो जाते औरर हिम्मत टूट जाती। इस तरह जान तोड़कर मेहनत करने की शक्ति मैं अपने में न पाता था औरर उस निराशा में ज़रा देर के लिए मैं सोचने लगता--  क्यों न घर चला जाऊँ।  [50] जो काम मेरे बूते के बाहर है,  उसमें हाथ डालकर क्यों अपनी जिन्दगी खराब करूँ। मुझे अपना मूर्ख रहना मंजूर था,  लेकिन उतनी मेहनतमुझे तो चक्कर आ जाता था;  लेकिन घण्टे-दो-घण्टे के बाद निराशा के बादल फट जाते औरर मैं इरादा करता कि आगे से खूब जी लगाकर पढ़ूँगा। चटपट एक टाइम-टेबिल बना डालता। बिना पहले से नक्शा बनाये,  कोई स्कीम तैयार किये काम कैसे शुरू करूँ। टाइम-टेबिल में खेल-कूद की मद बिलकुल उड़ जाती। प्रात:-काल उठना;  छ: बजे मुँह-हाथ धो,  नाश्ता कर,  पढ़ने बैठ जाना। छ: से आठ तक अंग्रेजी,  आठ से नौ तक हिसाब,  नौ से साढ़े नौ तक इतिहास,  फिर भोजन औरर स्कूल। साढ़े तीन बजे स्कूल से वापस होकर आध घण्टा आराम,  चार से पाँच तक भूगोल,  पाँच से छ: तक ग्रामर;  आध घण्टा होस्टल के सामने ही टहलना,  साढ़े छ: से सात तक अंग्रेजी कम्पोजीशन,  फिर भोजन करके आठ से नौ तक अनुवाद,  नौ से दस तक हिन्दी,  दस से ग्यारह तक विविध-विषय,  फिर विश्राम।
    मगर टाइम-टेबिल बना लेना एक बात है,  उस पर अमल करना दूसरी बात।  [60] पहले ही दिन उसकी अवहेलना शुरू हो जाती। मैदान की वह सुखद हरियाली,  हवा के हलके-हलके झोंके,  फुटबाल की वह उछलकूद,  कबड्डी के वह दाँव-घात,  बालीबाल की वह तेजी औरर फुरती,  मुझे अञ्:ात औरर अनिवार्य रूप से खींच ले जाती औरर वहाँ जाते ही मैं सबकुछ भूल जाता। वह जानलेवा टाइम-टेबिल,  वह आँखफोड़ पुस्तकें,  किसी की याद न रहती,  औरर भाई साहब को नसीहत औरर फजीहत का अवसर मिल जाता। मैं उनके साये से भागता,  उनकी आँखों से दूर रहने की चेष्टा करता,  कमरे में इस तरह दबे पाँव आता कि उन्हें खबर न हो। उनकी नज़र मेरी ओर उठी औरर मेरे प्राण निकले।  [65] हमेशा सिर पर एक नंगी तलवार-सी लटकती मालूम होती। फिर भी जैसे मौत औरर विपत्ति के बीच भी आदमी मोह औरर माया के बन्धन में जकड़ा रहता है,  मैं फटकार औरर घुड़कियाँ खाकर भी खेल-कूद का तिरस्कार न कर सकता।

2


सालाना इम्तहान हुआ। भाई साहब फेल हो गये,  मैं पास हो गया औरर दरजे में प्रथम आया। मेरे औरर उनके बीच में केवल दो साल का अन्तर रह गया।  [70] जी में आया,  भाई साहब को आड़े हाथों लूँ--  आपकी वह घोर तपस्या कहाँ गयीमुझे देखिए,  मजे से खेलता भी रहा औरर दरजे में औरवल भी हूँ। लेकिन वह इतने दुखी औरर उदास थे कि मुझे उनसे दिली हम्दर्दी हुई औरर उनके घाव पर नमक छिड़कने का विचार ही लज्जास्पद जान पड़ा। हाँ,  अब मुझे अपने ऊपर कुछ अभिमान हुआ औरर आत्मसम्मान भी बढ़ा। भाई साहब का वह रोब मुझ पर न रहा।  [75] आजादी से खेलकूद में शरीक होने लगा। दिल मजबूत था। अगर उन्होंने फिर फजीहत की,  तो साफ कह दूँगा--  आपने अपना खून जलाकर कौन-सा तीर मार लिया। मैं तो खेलते-कूदते दरजे में औरवल आ गया। जबान से यह हेकड़ी जताने का साहस न होने पर भी मेरे रंग-ढ़ंग से साफ जाहिर होता था कि भाई साहब का वह आतंक मुझ पर नहीं था।  [80] भाई साहब ने इसे भाँप लिया---  उनकी सहज-बुद्धि बड़ी तीव्र थी औरर एक दिन जब मैं भोर का सारा समय गुल्ली-डण्डे की भेंट करके ठीक भोजन के समय लौटा तो भाई साहब ने मानो तलवार खींच ली औरर मुझ पर टूट पड़े--  देखता हूँ,  इस साल पास हो गये औरर दरजे में औरवल आ गये,  तो तुम्हें दिमाग हो गया है;  मगर भाईजान,  घमण्ड तो बड़े-बड़ों का नहीं रहा,  तुम्हारी क्या हस्ती हैइतिहास में रावण का हाल तो पढ़ा ही होगा। उसके चरित्र से तुमने कौन-सा उपदेश लियाया यों ही पढ़ गयेमहज इम्तहान पास कर लेना कोई चीज नहीं,  असल चीज है बुद्धि का विकास।  [85] जो कुछ पढ़ो,  उसका अभिप्राय समझो। रावण भूमण्डल का स्वामी था। ऐसे राजों को चक्रवर्ती कहते हैं। आजकल अंग्रेजों के राज्य का विस्तार बहुत बढ़ा हुआ है;  पर इन्हें चक्रवर्ती नहीं कह सकते संसार में अनेकों राष्ट्र अंग्रेजों का आधिपत्य स्वीकार नहीं करते,  बिलकुल स्वाधीन हैं। रावण चक्रवर्ती राजा था,  संसार के सभी महीप उसे कर देते थे।  [90] बड़े-बड़े देवता उसकी गुलामी करते थे। काम औरर पानी के देवता भी उसके दास थे। मगर उसका अन्त क्या हुआघमण्ड ने उसका नामो-निशान तक मिटा दिया,  कोई उसे एक चुल्लू पानी देनेवाला भी न बचा। आदमी औरर जो कुकर्म चाहे करे;  पर अभिमान न करे,  इतराये नहीं।  [95] अभिमान किया,  औरर दीन-दुनिया दोनों से गया। शैतान का हाल भी पढ़ा ही होगा। उसे यह अभिमान हुआ था कि ईश्वर का उससे बढ़कर सच्चा भक्त कोई है ही नहींअन्त में यह हुआ कि स्वर्ग से नरक में ढकेल दिया गया। शाहेरूम ने भी एक बार अहंकार किया था।  [100] भीख माँग-माँगकर मर गया। तुमने तो अभी केवल एक दरजा पास किया है,  औरर अभी से तुम्हारा सिर फिर गया,  तब तो तुम आगे पढ़ चुके। यह समझ लो कि तुम अपनी मेहनत से नहीं पास हुए,  अन्धे के हाथ बटेर लग गयी। मगर बटेर केवल एक बार हाथ लग सकती है,  बार-बार नहीं लग सकती। कभी-कभी गुल्ली-डण्डे में भी अन्धा-चोट निशाना पड़ जाता है।  [105] इससे कोई सफल खिलाड़ी नहीं हो जाता। सफल खिलाड़ी वह है,  जिसका कोई निशाना खाली न जाये। मेरे फेल होने पर मत जाओ। मेरे दरजे में आओगे,  तो दाँतों पसीना आ जायगा,  जब अलजबरा औरर जामेट्री के लोहे के चने चबाने पड़ेंगे,  औरर इंगलिस्तान का इतिहास पढ़ना पड़ेगा। बादशाहों के नाम याद रखना आसान नहीं।  [110] आठ-आठ हेनरी ही गुजरे हैं। कौन-सा काण्ड किस हेनरी के समय में हुआ,  क्या यह याद कर लेना आसान समझते होहेनरी सातवें की जगह आठवाँ लिखा औरर सब नम्बर गायबसफाचट। सिफर भी ना मिलेगा,  सिफर भी !  [115] हो किस खयाल में। दरजनों तो जेस्म हुए हैं,  दरजनों विलियम,  कोड़ियों चाल्र्सदिमाग चक्कर खाने लगता है। आँधी रोग हो जाता है। इन अभागों को नाम भी न जुड़ते थे।  [120] एक ही नाम के पीछे दोयम,  सोयम,  चहारुम,  पंचुम लगाते चले गये। मुझसे पूछते,  तो दस लाख नाम बता देता औरर जामेट्री तो बस खुदा की पनाहअब ज की जगह अजब लिख दिया औरर सारे नम्बर कट गये। कोई इन निर्दयी मुमतहिनों से नहीं पूछता कि आखिर अबज औरर अजब में क्या फर्क है,  औरर व्यर्थ की बात के लिए क्यों छात्रों का खून करते हो। दाल-भात-रोटी खायी या भात-दाल रोटी खायी,  इसमें क्या रखा है,  मगर इन परीक्षकों को क्या परवाह।  [125] वह तो वही देखते हैं जो पुस्तक में लिखा है। चाहते हैं कि लड़के अक्षर-अक्षर रट डालें। औरर इसी रटन्त का नाम शिक्षा रख छोड़ा है। औरर आखिर इन बे-सर-पैर की बातों के पढ़ने से फायदाइस रेखा पर वह लम्ब गिरा दो,  तो आधार लम्ब से दुगुना होगा।  [130] पूछिए,  इससे प्रयोजनदुगुना नहीं,  चौगुना हो जाय,  या आधा ही रहे,  मेरी बला से;  लेकिन परीक्षा में पास होना है,  तो यह सब खुराफात याद करनी पड़ेगीकह दिया--  ' समय की पाबन्दी ' पर एक निबन्ध लिखो,  जो चार पन्नों से कम न हो। अब आप कापी सामने खोले,  कलम हाथ में लिये उसके नाम को रोइए। कौन नहीं जानता कि समय की पाबन्दी बहुत अच्छी बात है,  इससे आदमी के जीवन में संयम आ जाता है,  दूसरों का उस पर स्नेह होने लगता है औरर उसके कारोबार में उन्नति होती है;  लेकिन इस ज़रा-सी बात पर चार पन्ने कैसे लिखें।  [135] जो बात एक वाक्य में कही जा सके,  उसे चार पन्नों में लिखने की जरूरतमैं तो इसे हिमाकत कहता हूँ। यह तो समय की किफायत नहीं;  बल्कि उसका दुरुपयोग है कि व्यर्थ में किसी बात को ठूँस दिया जाय। हम चाहते हैं,  आदमी को जो कुछ कहना हो,  चटपट कह दे,  अपनी राह ले। मगर नहीं,  आपको चार पन्ने रँगने पड़ेंगे;  चाहे जैसे लिखिए।  [140] औरर पन्ने भी पूरे फुलसकेप के आकार के। यह छात्रों पर अत्याचार नहीं तो औरर क्या हैअनर्थ तो यह है कि कहा जाता है,  संक्षेप में लिखो। समय की पाबन्दी पर संक्षेप में एक निबन्ध लिखो,  जो चार पन्नो से कम न हो। ठीक। संक्षेप में तो चार पन्ने हुए नहीं शायद सौ-दो-सौ पन्ने लिखवाते। तेज भी दौड़िए औरर धीरे-धीरे भी है।  [145] उलटी बात है या नहींबालक भी इतनी-सी बात समझ सकता है;  लेकिन इन अध्यापकों को इतनी तमीज भी नहीं। उस पर दावा है कि हम अध्यापक हैं। मेरे दरजे में आओगे लाला,  तो ये सारे पापड़ बेलने पड़ेंगे औरर तब आटे-दाल का भाव मालूम होगा। इस दरजे में अव्वल आ गये हो,  तो जमीन पर पाँव नहीं रखते।  [150] इसलिए मेरा कहना मानिए। लाख फेल हो गया हूँ,  लेकिन तुमसे बड़ा हूँ,  संसार का मुझे तुमसे कहीं ज्यादा अनुभव है। जो कुछ कहता हूँ,  उसे गिरह बाँधिए,  नहीं पछताइयेगा।
    स्कूल का समय निकट था,  नहीं ईश्वर जाने यह उपदेश-माला कब समाप्त होती। भोजन आज मुझे नि:स्वाद-सा लग रहा था।  [155] जब पास होने पर यह तिरस्कार हो रहा है,  तो फेल हो जाने पर तो शायद प्राण ही ले लिये जायँ। भाई साहब ने अपने दरजे की पढ़ाई का जो भयंकर चित्र खींचा था;  उसने मुझे भयभीत कर दिया। स्कूल छोड़कर घर नहीं भागा,  यही ताज्जुब है;  लेकिन इतने तिरस्कार पर भी पुस्तकों में मेरी अरुचि ज्यों-की-त्यों बनी रही। खेल-कूद का कोई अवसर हाथ से न जाने देता। पढ़ता भी;  मगर बहुत कम,  बस इतना कि रोज का टास्क पूरा हो जाय औरर दरजे में जलील न होना पड़े। अपने ऊपर जो विश्वास पैदा हुआ था,  वह फिर लुप्त हो गया औरर फिर चोरों का-सा जीवन कटने लगा।

3


फिर सालाना इम्तहान हुआ,  औरर कुछ ऐसा संयोग हुआ कि मैं फिर पास हुआ औरर भाई साहब फेल हो गये। मैंने बहुत मेहनत नहीं की;  पर न जाने कैसे दरजे में अव्वल आ गया। मुझे खुद अचरज हुआ। भाई साहब ने प्राणांतक परिश्रम किया था।  [165] कोर्स का एक-एक शब्द चाट गये थे,  दस बजे रात तक इधर,  चार बजे भोर से उधर,  छ: से साढ़े नौ तक स्कूल जाने के पहले। मुद्रा कान्तिहीन हो गयी थी;  मगर बेचारे फेल हो गये। मुझे उन पर दया आती थीनतीजा सुनाया गया,  तो वह रो पड़े औरर मैं भी रोने लगा। अपने पास होने की खुशी आधी हो गयी !  [170] मैं भी फेल हो गया होता,  तो भाई साहब को इतना दु:ख न होता,  लेकिन विधि की बात कौन टाले।
    मेरे औरर भाई साहब के बीच में अब केवल एक दरजे का अन्तर औरर रह गया। मेरे मान में एक कुटिल भावना उदय हुई कि कहीं भाई साहब एक साल औरर फेल हो जायँ,  तो मैं उनके बराबर हो जाऊँ,  फिर वह किस आधार पर मेरी फजीहत कर सकेंगे,  लेकिन मैंने इस कमीने विचार को दिल से बलपूर्वक निकाल डाला। आखिर वह मुझे मेरे हित के विचार से ही तो डाँटते हैं। मुझे इस वक्त अप्रिय लगता है अवश्य,  मगर यह शायद उनके उपदेशों का ही असर हो कि मैं दनादन पास हो जाता हूँ औरर इतने अच्छे नम्बरों से।
    अब भाई साहब बहुत कुछ नर्म पड़ गये थे।  [175] कई बार मुझे डाँटने का अवसर पाकर भी उन्होंने धीरज से काम लिया। शायद अब वह खुद समजने लगे थे कि मुझे डाँटने का अधिकार उन्हें नहीं रहा,  या रहा भी,  तो बहुत कम। मेरी स्वच्छन्दता भी बढ़ी। मैं उनकी सहिष्णुता का अनुचित लाभ उठाने लगा। मुझे कुछ ऐसी धारणा हुई कि मैं पास ही हो जाऊँगा,  पढ़ँू या न पढ़ूँ,  मेरी तकदीर बलवान है;  इसलिए भाई साहब के डर से जो थोड़ा-बहुत पढ़ लिया करता था,  वह भी बन्द हुआ।  [180] मुझे कनकीए उड़ाने का नया शौक पैदा हो गया था औरर अब सारा समय पतंगबाजी की ही भेट होता था;  फिर भी मैं भाई साहब का अदब करता था,  औरर उनकी नजर बचाकर कनकौए उड़ाता था। माँझा देना,  कने बाँधना,  पतंग टूरनामेंट की तैयारियाँ आदि समस्याएँ सब गुप्त रूप से हल की जाती थीं। मैं भाई साहब को यह सन्देह न करने देना चाहता था कि उनका सम्मान औरर लिहाज मेरी नजरों में कम हो गया है।
    एक दिन संध्या समय
,  होस्टल से दूर मैं एक कनकौआ लूटने बेतहाशा दौड़ा जा रहा था। आँखें आसमान की ओर थीं औरर मन उस आकाशगामी पथिक की ओर,  जो मन्द गति से झूमता पतन की ओर चला आ रहा था,  मानो कोई आत्मा स्वर्ग से निकलकर विरक्त मन से नये संस्कार ग्रहण करने आ रही हो।  [185] बालकों की पूरी सेना लग्गे औरर झाड़दार बाँस लिये इनका स्वागत करने को दौड़ी आ रही थी। किसी को अपने आगे-पीछे की खबर न थी। सभी मानो उस पतंग के साथ ही आकाश में उड़ रहे थे,  जहाँ सब-कुछ समतल है,  न मोटरकारें हैं,  ट्राम,  न गाड़ियाँ।
    सहसा भाई साहब से मेरी मुठभेड़ हो गयी,  जो शायद बाज़ार से लौट रहे थे। उन्होंने वहीं हाथ पकड़ लिया औरर उग्र भाव से बोले --  इन बाजारी लौंड़ों के साथ धेले के कनकौए के लिए दौड़ते तुम्हें शर्म नहीं आती ?   [190] तुम्हें इसका भी कुछ लिहाज नहीं कि अब नीची जमाअत में नहीं हो;  बल्कि आठवीं जमाअत में आ गये हो औरर मुझसे केवल एक दरजा नीचे हो। आखिर आदमी को कुछ तो अपने पोजीशन का खयाल करना चाहिए। एक जमाना था कि लोग आठवाँ दरजा पास करके नायब तहसीलदार हो जाते थे। मैं कितनी ही मिडिलचियों को जानता हूँ,  जो आज अव्वल दरजे के डिप्टी मैजिस्टे्रट या सुपरिटेण्डेट हैं। कितने ही आठवीं जमाअतवाले हमारे लीडर औरर समाचारपत्रों के सम्पादक हैं।  [195] बड़े-बड़े विद्वान उनकी मातहती में काम करते हैं। औरर तुम उसी आठवें दरजे में आकर बाजारी लौंडों के साथ कनकौए के लिए दौड़ रहे हो। मुझे तुम्हारी इस कमअकली पर दु:ख होता है। तुम जहीन हो,  इसमें शक नहीं,  लेकिन वह जेहन किस काम का,  जो हमारे आत्म-गौरव की हत्या कर डाले। तुम अपने दिल मे समझते होगे,  मैं भाई साहब से महज एक दरजा नीचे हूँ,  औरर अब उन्हें मुझको कुछ कहने का हक नहीं है;  लेकिन यह तुम्हारी गलती है।  [200] तुमसे पाँच साल बड़ा हूँ औरर चाहे आज तुम मेरी ही जमाअत में आ जाओ--  औरर परीक्षकों का यही हाल है,  तो निस्सन्देह अगले साल तुम मेरी समकक्ष हो जाओगे औरर शायद एक साल बाद मुझसे आगे भी निकल जाओ--  लेकिन मुझमें औरर तुममें जो पाँच साल का अन्तर है;  उसे तुम क्या;  खुदा भी नहीं मिटा सकता। मैं तुमसे पाँच साल बड़ा हूँ औरर हमेशा रहूँगा। मुझे दुनिया का औरर जिन्दगी का जो तजरबा है,  तुम उसकी बराबरी नहीं कर सकते,  चाहे तुम एम.ाम्प्ऌ ए.ाम्प्ऌ औरर डी.ाम्प्ऌ फिल.ाम्प्ऌ ही क्यों न हो जाओ। समझ किताबें पढ़ने से नहीं आती,  दुनिया देखने से आती है। हमारी अम्माँ ने कोई दरजा नहीं पास किया,  औरर दादा भी शायद पाँचवी छठी जमाअत के आगे नहीं गये;  लेकिन हम दोनों चाहे सारी दुनिया की विद्या पढ़ लें,  अम्माँ औरर दादा को हमें समझाने औरर सुधारने का अधिकार हमेशा रहेगा। केवल इसलिए नहीं कि वे हमारे जन्मदाता हैं;  बल्कि इसलिए कि उन्हें दुनिया का हमसे ज्यादा तजरबा है औरर रहेगा। अमेरिका में किस तरह राज-व्यवस्था है,  औरर आठवें हेनरी ने कितने ब्याह किये औरर आकाश में कितने नक्षत्र हैं,  यह बातें चाहे उन्हें न मालूम हों;  लेकिन हजारों ऐसी बातें हैं,  जिनका ञ्:ान उन्हें हमसे औरर तुमसे ज्यादा है।  [205] दैव न करे,  आज मै बीमार हो जाऊँ,  तो तुम्हारे हाथ-पाँव फूल जायेंगे। दादा को तार देने के सिवा तुम्हें औरर कुछ न सूझेगा;  लेकिन तुम्हारी जगह दादा हों,  तो किसी को तार न दें,  न घबरायें,  न बदहवास हों। पहले खुद मरज पहचानकर इलाज करेगे,  उसमे सफल न हुए,  तो किसी डाक्टर को बुलायेंगे। बीमारी तो खैर बड़ी चीज़ है। हम तुम तो इतना भी नहीं जानते कि महीने-भर का खर्च महीना-भर कैसे चले।  [210] जो कुछ दादा भेजते हैं,  उसे हम बीस-बाईस तक खर्च कर डालते हैं,  औरर फिर पैसे-पैसे को मुहताज हो जाते हैं। नाश्ता बन्द हो जाता है,  धोबी औरर नाई से मुँह चुराने लगते हैं,  लेकिन जितना आज हम औरर तुम खर्च कर रहे हैं,  उसके आधे में दादा ने अपनी उम्र बड़ा भाग इज्जत औरर नेकनामी के साथ निभाया है औरर एक कुटुम्ब का पालन किया है जिसमें सब मिलाकर नौ आदमी थे। अपने हेडमास्टर साहब ही को देखो। एम.ाम्प्ऌ ए.ाम्प्ऌ हैं कि नहीं;  औरर यहाँ के एम.ाम्प्ऌ ए.ाम्प्ऌ नहीं आक्सफोर्ड के। एक हज़ार रुपये पाते हैं;  लेकिन उनके घर का इन्तजाम कौन करता है ?  [215] उनकी बूढ़ी माँ। हेडमास्टर साहब की डिग्री यहाँ बेकार हो गयी। पहले खुद घर का इन्तजाम करते थे। खर्च पूरा न पड़ता था। करजदार रहते थे।  [220] जब से उनकी माताजी ने प्रबन्ध अपने हाथ में ले लिया है,  जैसे घर में लक्ष्मी आ गयी है। तो भाई जान,  यह जरूर दिल से निकाल डालो कि तुम मेरे समीप आ गये हो औरर अब स्वतन्त्र हो। मेरे देखते तुम बेराह न चलने पाओगे। अगर तुम यों न मानोगे तो मैं ( थप्पड़ दिखाकर ) इसका प्रयोग भी कर सकता हूँ। मैं जानता हूँ,  तुम्हें मेरी बातें जहर लग रही हैं।.ाम्प्ऌ.ाम्प्ऌ.ाम्प्ऌ  [225]
    मैं उनकी इस नयी युक्ति से नत-मस्तक हो गया। मुझे आज सच-मुच अपनी लघुता का अनुभव हुआ औरर भाई साहब के प्रति मेरे मन में श्रद्धा उत्पन्न हुई। मैंने सजल आँखों से कहा--  हरगिज नहीं। आप जो कुछ फरमा रहे हैं,  वह बिलकुल सच है औरर आपको उसके कहने का अधिकार है।
    भाई साहब ने मुझे गले से लगा लिया औरर बोले--  मैं कनकौए उड़ाने को मना नहीं करता।  [230] मेरा भी जी ललचता है;  लेकिन करूँ क्या,  खुद बेराह चलूँ,  तो तुम्हारी रक्षा कैसे करूँयह कर्तव्य भी तो मेरे सिर है !
    संयोग से उसी वक्त एक कटा हुआ कनकौआ हमारे ऊपर से गुजरा। उसकी डोर लटक रही थी। लड़कों का एक गोल पीछे-पीछे दौड़ा चला आता था।  [235] भाई साहब लम्बे हैं ही। उछलकर उसकी डोर पकड़ ली औरर बेतहाशा होस्टल की तरफ दौड़े। मैं पीछे-पीछे दौड़ रहा था !
To
index of  मल्हार.
Index to works of Pre-Independence prose.
Coded in March 2004 by विवेक अगरवाल. Posted 30 Mar 2004.