यूनिवर्सिटी ऑफ़ मिशिगन
Dialogue dn: चोरी औरर
पुलिस
by कुसुम
जैन
(used with the author's permission)
To glossed version.
( सुबह ५
बजे )
समीर : सीमा,
उठो !
उठो ! जल्दी से
उठो !
सीमा :
( हड़बड़ा कर उठती
है ) क्या हुआ ?
इतने घबराये क्यों
हो ?
समीर : उठ कर बाहर
तो आओ। चोरी हो गई है घर
में।
सीमा : क्या ? (
बाहर लॉबी में आती
है ) कहाँ ?
समीर :
ड्रॉइंग रूम में देखो।
वी॰ सी॰ आर॰ ग़ायब है। टी॰ वी॰ का रिमोट भी
नहीं है।
सीमा : तो टी॰ वी॰ क्यों
छोड़ गये ?
समीर : बड़ा औरर
भारी-भरकम होगा। उठा कर ले
जा नहीं पाए होंगे।
सीमा : हाँ, इतनी बड़ी चीज़ छुपा कर कैसे ले
जाते ? देखो,
सारी चीनी खाने की मेज़ पर
बिखरी पड़ी
है। लगता है चाँदी के टी सैट की
चीनीदानी में से चीनी बाहर निकाल कर
ले
गये हैं। दूधदानी भी।
समीर : मेरे कमरे
में मेरी दोनों घड़ियाँ नहीं
हैं। रोलैक्स वाली औरर टाईटन वाली।
बटुआ भी
नहीं है।
सीमा : दोनों
घड़ियाँ मैंने तुम्हें दिलवाई
थीं। एक लंदन से, दूसरी दिल्ली से। तुम बड़ी
लापरवाही से रखते हो मेरी दिलवाई
चीज़ें। क़द्र नहीं करते।
समीर : सब कमरों में
अल्मारियों के दरवाज़े औरर दराज़ें
खुली पड़ी हैं।
सीमा : सारी चीज़ें
उथल-पुथल हो रही हैं।
चोर घर में घुसे
कैसे ?
समीर : यह देखो
न। दरवाज़े के साथ वाली लकड़ी की दीवार
में से शीशा निकाला। फिर ग्रिल
निकाली टेढ़ी करके। बस अंदर आ गये।
सीमा : तो चोर कोई
पतला सा छोटा सा होगा जो इतनी छोटी सी
जगह में से निकल आया।
समीर : औरर अंदर घुस कर
उसने दरवाज़े की चटखनी खोल दी। तब बाक़ी भी
अंदर।
सीमा : इसका मतलब है कि
उनके पास औरज़ार होंगे। पूरी
तैयारी से आये थे। आप
बाल-बाल बच गए। जैसे
आप निकले थे तो आप पर ही वार कर देते।
समीर : औरर हाँ, बैडरूम की चटखनी भी तो अन्दर से
बंद नहीं थी। कहीं वो खोलते
तो सीधे
अंदर ही आ
गये होते औरर दोनों को ही
मार दिया होता।
सीमा : अच्छा, पहले पुलिस को फ़ोन कर दो।
समीर : १॰॰ नंबर पर पहले ही
फ़ोन कर दिया है।
सीमा : यह छोटू कहाँ था
रात भर ? वो ऊपर
सीढ़ियों पर ही सोता है।
समीर : वो तो सो ही रहा
है। लो, पुलिस आ
गयी। --- आइए इन्स्पैक्टर
साहब।
इंस्पैक्टर : बताइये क्या हुआ ?
समीर : ( सारा बयान करता हुआ ) सुबह उठा तो देखा कि बाहर का दरवाज़ा
खुला पड़ा है।
शीशा, ग्रिल
निकले हुए हैं। औरर सारे घर
में चीज़ें इधर-उधर पड़ी
हैं।
इंस्पैक्टर : आपका क्या सामान चोरी
हुआ है ? क्या
गहने, सोना चोरी
हुआ है ?
समीर : जी नहीं।
सामान में वी॰ सी॰ आर॰, घड़ियाँ ( दो ), चाँदी
के बर्तन, रिमोट,
५ हज़ार के
लगभग रुपए। अभी तो ये ही चीज़ें ध्यान
में आई हैं।
इंस्पैक्टर : आपकी इंश्योरैंस
है क्या ?
समीर : जी नहीं।
सीमा : इंस्पैक्टर साहब, आपको तो चोर का औरर सामान का
पता करना है। क्या पुलिस
इंश्योरैंस देती है ?
इंस्पैक्टर : जी नहीं।
ऐसे ही पूछा था कि आपको
इंश्योरैंस से पैसा तो मिल
ही जाएगा। आपके
नुक्सान की भरपाई हो जाएगा।
सीमा : सामान की भरपाई से ज़्यादा
चिंता है कि इस तरह चोरियाँ होने
लगीं तो लोगों को
पुलिस
की सुरक्षा कहाँ ? क्या आप
हाथों के निशान नहीं
लेंगे ?
इंस्पैक्टर : नहीं,
लकड़ी लोहे वग़ैरा पर निशान
आते नहीं।
सीमा : तो शीशे पर से
ले लीजिए। यह शीशा चोरों ने
कितनी सफ़ाई से निकाला है। बड़े
कुशल तरखान होंगे।
इंस्पैक्टर : अच्छा, कांस्टेबल, ज़रा
यह शीशा काग़ज़ में लपेट कर ले चलो।
निशान देख लेना।
सीमा : आपको तो पता
होगा कि कौन कौन से गैंग इस तरह की
चोरी करते हैं ?
इंस्पैक्टर : अब तो
कोई चोर पकड़ा गया औरर उसके पास आपका
सामान मिला तभी हो सकता है।
सीमा : अगर आप
उँगलियों के निशान नहीं
लेंगे तो आगे कैसे
चोरियाँ रोकेंगे औरर
चोरों का
पता करेंगे ?
इंस्पैक्टर : क्या आपको
किसी पर शक है ?
सीमा : शक तो
आपको करना चाहिये। आसपास सबसे
पूछताछ, तहक़ीक़ात करनी
चाहिये।
इंस्पैक्टर : देखेंगे।
अच्छा, यह रिपोर्ट लिख
ली है। थाने आकर एफ़॰ आई॰ आर॰ की कापी ले
जाना।
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Composed 21-22 May 2001. Posted 23 May 2001.