यूनिवर्सिटी ऑफ़ मिशिगन

Dialogue dp:  चोरी  (5):  सच का झूठ
by  कुसुम जैन
(used with author's permission)

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glossed version.
                    ( घंटी की आवाज़ सुनकर सीमा दरवाज़ा खोलती है। )
इंस्पैक्टर :  जी,  हम क्राइम ब्रांच से आये हैं।  मैं इंस्पैक्टर ईश्वर सिंह हूँ,  ये हैं हवालदार ज़िल्ले सिंह।
   सीमा :  आइए।  अन्दर आइए।
इंस्पैक्टर :  हमें कमिश्नर साहब का हुकम हुआ है कि आपके यहाँ की चोरी का पता करें।  आप हमें
            सब खुलकर बताइये कि क्या हुआ था।
           
सीमा कुछ कहने जा रही है कि इंस्पैक्टर फिर बीच में बोलता है। )
इंस्पैक्टर :  आपने कमिश्नर साहब को बताया कि आपके नौकर को सब मालूम है।  उसका भी हाथ
            था।
   सीमा :  जी नहीं।  उस बेचारे को तो फंसाया गया है।  हाँ
,  उसे चोरों का मालूम ज़रूर है।  छोटू,
                    आओ,  इधर आकर इंस्पैक्टर साहब को सब सचसच बताओ।
   छोटू :  जी वो एक रात को आए थे।  सब देख गए थे
. . .
इंस्पैक्टर :  अच्छा,  ऐसा है,  मिसेज़ मेहरा।  इसको तो हम अपने साथ ले जाकर सारी पूछ-ताछ
            औरर जाँच
-पड़ताल करेंगे।
   सीमा :  आपको यह सब बता तो रहा है।  यहीं पूछ लीजिए।
इंस्पैक्टर :  जी इतनी बड़ी चोरी है।  गैंग का पता भी करना है।  इसका वहाँ जाना ज़रूरी है।
   सीमा :  आप इसका ख़्याल रखना।  कब वापिस लाएँगे
?
इंस्पैक्टर :  यही कोई एकाध दिन में।  आप इत्मीनान रखिये।
   सीमा :  यह बड़ा बहादुर है।  इसकी मदद से पुलिस सारे गिरोह का पता कर सकती है।  औरर
            आपको इसको इनाम देना होगा।
इंस्पैक्टर :  लगता तो बहादुर ही है।  हमारा रिकार्ड भी अभी तक ९५ फ़ीसदी है केस की छानबीन
            करने का।
   सीमा :  यहाँ के थाने वाले भी ले गये थे
,  कुछ नहीं किया।  उग्रवादियों का नाम लगा दिया केस
            सॉल्व करने के लिए।  औरर इसे वापिस बुलाने के लिए हैडक्वाटर्स जाकर कमिश्नर
            साहब से कहना पड़ा।
इंस्पैक्टर :  आप हम पर भरोसा कीजिये।  हमारा तो काम ही यही है।  क्राइम की तह तक जाकर
            पता लगाना।  फिर छोटू जो मदद करेगा
,  हम किसी को छोड़ेंगे नहीं।
   सीमा :  ठीक है।  अच्छा
,  छोटू।  इनका पूरा साथ देना सचाई का पता लगाने में ---  शाबाश।
           
पाँच दिन बाद क्राइम ब्रांच वाले इंस्पैक्टर छोटू को लाते हैं। )
इंस्पैक्टर :  हम आपके छोटू ले आए हैं।
   सीमा :  इतने दिनों बाद
!  जब भी मैं फ़ोन करती तो कोई ठीक जवाब ही नहीं देता।  कह देते
            कि अभी जाँच
-पड़ताल चल रही होगी।
इंस्पैक्टर :  आपका केस तो सुलझ गया।  आपके पति नहीं आए अभी
?  उन्हें भी बुला लीजिए।
   सीमा :  उनकी क्या ज़रूरत है आज
?
इंस्पैक्टर :  उनके सामने ही सब बात हो जाती।
          
दफ़्तर फ़ोन करके घर आने के लिये कहती है। )
     सीमा :  अभी थोड़ी देर में आ रहे हैं।
इंस्पैक्टर :  आपका छोटू सचमुच बहादुर निकला।
   सीमा :  वो आपने सब पता लगा लिया इसकी मदद से।
इंस्पैक्टर :  उसने सब सच बता दिया।
   सीमा :  जी हाँ।  वो तो हमें कब से बता रहा था।  पुलिस वालों के यहाँ कोई सुनवाई ही नहीं
            हो रही थी।  हमारा तो विश्वास ही टूट चुका था।  लगा कि हम भरम में जी रहे हैं।
इंस्पैक्टर :  भरम तो आपको इसका था
,  छोटू का।
   सीमा :  क्या मतलब
?   ( समीर अन्दर आता है। )  लीजिए,  साहब भी आ गए।
हवालदार :  जी मैडेम
,  आपके छोटू से जब हमने पूछ-ताछ की तो उसने कहा कि उसे तो कुछ
            पता ही नहीं।  इसने कुछ देखा ही नहीं।
   सीमा :  यह आप क्या कह रहे हैं
?
हवालदार :  छोटू,  इधर आ।  सीधा खड़ा हो।  छोटू के पेट में हाथ मारते हुए )  मैडेम की तरफ़
            नहीं
,  मेरी तरफ़ देख।  अब बोल,  तूने क्या देखा था ?
      छोटू :  कराहते हुए,  धीमी आवाज़ में )  जी,  कुछ नहीं।
   सीमा :  तो इंस्पैक्टर साहब
,  आपने इसे थाने में ५ दिन सच का झूठ करवाने के लिए रखा था।
            आप इसीलिये इसे ले गए थे
?
इंस्पैक्टर :  आप इतना गरम क्यों हो रही हैं ?
     सीमा :  आप अपनी इसी कारीगरी की बात कर रहे थे केसों को सुलझाने की।
इंस्पैक्टर :  देखिये
,  आपको ब्लड प्रैशर न हो जाए।  मेहरा साहब,  आप तो बिज़नेस करते हैं,  न।
            ध्यान रखिये।
   समीर :  तो क्या आप धमकी दे रहे हैं
?
                      (to be continued)
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Drafted 2-5 June 2001. Posted 6 June 2001.