यूनीवर्सिटी ऑफ़ मिशिगन
Dialogue ez: आँखें
झुक जायेंगी (1)
by कुसुम जैन
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( )
सुमन : आपने ये आज
का जनसत्ता देखा था ? इस
ख़बर ने तो झकझोर ही दिया मुझे।
प्रणेश : क्या ख़बर है ?
सुमन : राणा ताप बाग़ में
एक स्कूल में एक वाइस- प्रिंसिपल ने १३ साल के लड़के को
नंगा
घुमाया सारे स्कूल के सामने
औरर मारा। मुझसे तो यह पढ़ा भी
नहीं जा रहा।
ये बर्बरता देश की
राजधानी में, वो भी
बच्चों पर !
प्रणेश : बिल्कुल अँधेरा
हो रहा है। जैसे रोज़मर्रा की
ही बात हो गई। तुम इतने साल से
बच्चों की मार-पिटाई को रोकने की कोशिश
में लगी हो । । ।
सुमन : लेकिन कहीं कोई सुनवाई ही
नहीं। सब - टीचर,
अधिकारी - बच्चों पर हिंसा जन्मसिद्ध
अधिकार समझते हैं।
हर्षवर्धन, प्रीतम
सिंह जैसे नेताओं को दिल्ली
में औरर केन्द्र में
इन समस्याओं से
जैसे कोई लेना-देना ही नहीं।
प्रणेश : औरर लोग भी चुपचाप
देखते रहते हैं।
सुमन : लेकिन ये तो हद ही पार हो गई। उस बच्चे की
क्या हालत होगी। उस पर व उसके
घर वालों पर क्या बीत
रही होगी ? पता करती
हूँ अभी। जो उसके घर के पास
रहते हैं
हैं उन्हें फ़ोन
करती हूँ।
( थोड़ी देर बाद )
सुमन : कोई तैयार ही
नहीं कुछ करने को। किसी के पास समय
ही नहीं है।
प्रणेश : तुम्हें ख़ुद ही जाकर देखना
होगा।
सुमन : कल किशन लाल आएगा तो उसके
साथ जाऊँगी। पहले अख़बार को फ़ोन
करके रिपोर्टर
से उसके बारे
में पता करती हूँ। उसको शायद घर का
अता-पता भी मालूम हो।
प्रणेश : फिर वकील साहब भारत जी को बताना।
सूमन : वो तो मालती के केस
को ह्यूमन राईट्स कमीशन में
डलवाते समय कह रहे थे कि हमें
हाई कोर्ट जाना चाहिये
स्कूलों में बच्चों पर हो
रहे इन ज़ुल्मों को लेकर।
प्रणेश : भारत जी जैसे लोग कम ही
होते हैं।
सुमन : ऐसे लोगों
के दम पर ही दुनिया चलती है।
(to be continued)
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Drafted 17-18 June 2001. Posted 20 June 2001.