यूनिवर्सिटी ऑफ़ मिशिगन
ईदगाह: Part
Three
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ग्यारह बजे
गाँव में हलचल मच गयी।
मेलेवाले आ गये।
मोहसिन की छोटी बहन ने
दौड़ कर भिश्ती उसके हाथ से छीन लिया औरर
मारे खुशी के
जो
उछली, तो मियाँ
भिश्ती
नीचे आ रहे औरर सुरलोक सिधारे।
इस पर भाई बहन में
मार-पीट हुई।
दोनों ख़ूब
रोये।
[5]
उनकी अम्माँ यह शोर सुन
कर
बिगड़ी औरर दोनों को ऊपर से
दो-दो चाँटे
औरर
लगाये।
मियाँ नूरे
के वकील का अंत उनके प्रतिष्ठानुकूल
इससे ज़्यादा गौरवमय हुआ।
वकील ज़मीन पर या ताक पर तो
नहीं बैठ सकता।
उसकी मर्यादा का विचार तो
करना ही
होगा।
दीवार में दो
खूँटियाँ गाड़ी गयीं।
[10]
उन पर लकड़ी का एक पटरा रखा गया।
पटरे पर काग़ज़ का कालीन बिछाया
गया।
वकील साहब राजा भोजकी
भाँति
सिंहासन पर विराजे।
नूरे ने उन्हें
पंखा झलना शुरू किया।
अदालतों में खस की
टट्टियाँ औरर बिजली के पंखे
रहते
हैं।
[15]
क्या यहाँ मामूली पंखा
भी न
हो !
कानून की
गमीर् दिमाग़ पर चढ़ जायगी कि नहीं।
बाँस का पंखा आया औरर
नूरे हवा करने लगे।
मालूम नहीं, पंखे की हवा से, या पंखे की चोट से वकील
साहब स्वर्गलोक से मृत्युलोक
में आ रहे औरर उनका माटी का चोला
माटी
में मिल गया !
फिर बड़े
ज़ोर-शोर से मातम
हुआ
औरर वकील साहब की अस्थि घूरे पर डाल दी
गयी।
[20]
अब रहा महमूद का
सिपाही।
उसे चटपट गाँव का पहरा
देने का चार्ज मिल गया; लेकिन पुलिस का सिपाही कोई
साधारण
व्यक्ति तो नहीं, जो अपने पैरों
चले।
वह पालकी पर चलेगा।
एक टोकरी आयी, उसमें कुछ लाल रंग के
फटे-पुराने चिथड़े
बिछाये गये; जिसमें सिपाही साहब आराम से
लेटे।
नूरे ने यह टोकरी
उठायी
औरर अपने द्वार का चक्कर लगाने लगे।
[25]
उनके दोनों
छोटे
भाई सिपाही की तरह से ' छोनेवाले, जागते लहो ' पुकारते चलते हैं।
मगर रात तो अँधेरी
होनी
चाहिए; महमूद को
ठोकर
लग जाती है।
टोकरी उसके हाथ से छूट
कर
गिर पड़ती है औरर मियाँ सिपाही अपनी
बंदूक लिये ज़मीन पर आ जाते
हैं
औरर उनकी एक टाँग में विकार आ जाता
है।
महमूद को आज ज्ञात
हुआ कि वह अच्छा डाक्टर है।
उसको ऐसा मरहम मिल गया
है
जिससे वह टूटी टाँग को आनन-फ़ानन जोड़ सकता है।
[30]
केवल गूलर का दूध चाहिए।
गूलर का दूध आता है।
टाँग जोड़ दी जाती
है;
लेकिन सिपाही को
ज्यों
ही खड़ा किया जाता है, टाँग
जवाब दे देती है।
शल्यक्रिया असफल हुई,
तब उसकी दूसरी टाँग भी तोड़ दी
जाती
है।
अब कम से कम एक जगह आराम से
बैठ तो सकता है।
[35]
एक टाँग से तो न चल
सकता
था; न बैठ सकता था।
अब वह सिपाही संन्यासी हो
गया
है।
अपनी जगह पर बैठा-बैठा पहरा देता है।
कभी-कभी
देवता
भी बन जाता है।
उसके सिर का झालरदार साफा
खुरच
दिया गया है।
[40]
अब उसका जितना रूपांतर
चाहो, कर सकते
हो।
कभी-कभी तो
उससे बाट का काम भी लिया जाता है।
अब
मियाँ
हामिद का हाल सुनिए।
अमीना उसकी आवाज़ सुनते ही
दौड़ी औरर उसे गोद में उठा कर
प्यार
करने लगी।
सहसा उसके हाथ में चिमटा
देख कर वह चौंकी।
[45]
' यह चिमटा कहाँ
था ?'
' मैंने
मोल लिया
है। '
' कै
पैसे
में ?'
' तीन पैसे
दिये। '
अमीना ने छाती पीट
ली।
[50]
यह कैसा बेसमझ लड़का है
कि
दोपहर हुआ, कुछ
खाया
न पिया।
लाया क्या, चिमटा !
सारे
मेले
में तुझे औरर कोई चीज़ न
मिली, जो यह
लोहे का
चिमटा उठा लाया ?
हामिद
ने अपराधी-भाव से
कहा ---
तुम्हारी उँगलियाँ
तवे
से जल जाती थीं ; इसलिए
मैंने उसे लिया।
बुढ़िया का क्रोध
तुरंत स्नेह में बदल गया,
औरर स्नेह भी वह
नहीं,
जो प्रगल्भ होता है
औरर
अपनी सारी कसक शब्दों में बिखेर
देता
है।
[55]
यह मूक स्नेह था,
ख़ूब ठोस, रस
औरर स्वाद से भरा हुआ।
बच्चे में कितना
त्याग,
कितना सद्भाव औरर कितना
विवेक है !
दूसरों
को
खिलौने लेते औरर मिठाई खाते
देख कर इसका मन कितना ललचाया होगा !
इतना ज़ब्त इससे
हुआ कैसे ?
वहाँ भी इसे
अपनी
बुढ़िया दादी की याद बनी रही।
[60]
अमीना का मन गद्गद हो
गया।
औरर
अब एक बड़ी विचित्र बात हुई।
हामिद के इस चिमटे से भी
विचित्र।
बच्चे हामिद ने बूढ़े
हामिद
का पार्ट खेला था।
बुढ़िया अमीना बालिका अमीना बन
गयी।
[65]
वह रोने लगी।
दामन फैला कर हामिद को
दुआएँ देती जाती थी औरर आँसू की
बड़ी-बड़ी बूँदें
गिराती
जाती थी।
हामिद इसका रहस्य क्या समझता !
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Keyed in by विवेक अगरवाल
June 2001. Posted 12 Oct 2001. Proofed and corrected
12-13 Oct 2001. Quintilineated by विवेक अगरवाल 8-9 July 2002.