यूनिवर्सिटी ऑफ़ मिशिगन

  कफ़न

(glossed)

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          झोंपड़े के द्वार पर बाप औरर बेटा दोनों एक बुझे हुए अलाव के सामने चुपचाप बैठे हुए हैं औरर अन्दर बेटे की जवान बीबी बुधिया प्रसववेदना से पछाड़ खा रही थी  रह - रहकर उसके मुँह से ऐसी दिल हिला देने वाली आवाज़ निकलती थी,  कि दोनों कलेजा थाम लेते थे।  जाड़ों की रात थी,   प्रकृति सन्नाटे में डूबी हुई,   सारा गाँव अन्धकार में लय हो गया था
      घीसू ने कहा --  मालूम होता है,  बचेगी नहीं  सारा दिन दौड़ते हो गया,  जा देख तो आ।
            माधव चिढ़कर बोला -- मरना ही है तो जल्दी मर क्यों नहीं जाती ?   देखकर क्या करूँ ?
            तू बड़ा बेदर्द है बे।  सालभर जिसके साथ सुखचैन से रहा,  उसी के साथ इतनी बेवफ़ाई !
            तो मुझसे तो उसका तड़पना औरर हाथ - पाँव पटकना नहीं देखा जाता।
      चमारों का कुनबा था औरर सारे गाँव में बदनाम  घीसू एक दिन काम करता तो तीन दिन आराम करता।  माधव इतना कामचोर था कि आध घण्टे काम करता तो घंटेभर चिलम पीता।  इसलिए उन्हें कहीं मज़दूरी नहीं मिलती थी।  घर में मुट्ठीभर अनाज मौजूद हो,  तो उनके लिए काम करने की क़सम थी  जब दो - चार फ़ाक़े हो जाते तो घीसू पेड़ पर चढ़कर लकड़ियाँ तोड़ लाता औरर जब तक वह पैसे रहते,  दोनों इधरउधर मारेमारे फिरते  गाँव में काम की कमी न थी।  किसानों का गाँव था,  मेहनती आदमी के लिए पचास काम थे।  मगर इन दोनों को उसी वक़्त बुलाते,  जब दो आदमियों से एक का काम पाकर भी सन्तोष कर लेने के सिवा औरर कोई चारा न होता।  अगर दोनों साधू होते,  तो उन्हें सन्तोष औरर धैर्य के लिये,  संयम औरर नियम की बिलकुल ज़रूरत न होती।
Glossed 1 April 2001.