यूनिवर्सिटी ऑफ़ मिशिगन

शहनशाह मुहम्मद सिराजुद्दीन अबूज़फ़र बहादुरशाह ज़फ़र '
ग़ज़ल  in -आर

              न किसी का आँख का नूर हूँ
,  न किसी के दिल का क़रार हूँ
              जो किसी के काम न आ सके मैं वह एक मुश्त
--ग़ुबार हूँ         । ।  १ । ।
              मेरा रंग
-रूप बिगड़ गया,  मेरा यार मुझसे बिछूड़ गया
              जो चमन ख़िज़ाँ से उजड़ गया मैं उसकी फ़सल
--बहार हूँ    । ।  २ । ।
              पा
--फ़ातिहा कोई आए क्यों,  कोई चार फूल चढ़ाए क्यों
              कोई आगे शमा जलाए क्यों
,  मैं वह बेकसी का मज़ार हूँ       । ।  ३ । ।
              मैं नहीं हूँ नग़्मा
--जान-फ़ज़िा,  मुझे सुनके कोई गिरेगा क्या
              मैं बड़े बिरोग की हूँ सदा
,  मैं बड़े दुखी की पुकार हूँ            । ।  ४ । ।
              न
ज़फ़र '  किसी का हबीब हूँ,  ज़फ़र '  किसी का रक़ीब हूँ
              जो बिगड़ गया वह नसीब हूँ
,  जो उजड़ गया वह दयार हूँ     । ।  ५ । ।
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