यूनिवर्सिटी ऑफ़ मिशिगन
इन्स्टिट्यूट फ़ॉर द स्टडी ऑफ़ लैंग्वजिज़ ऐंड कल्चर्ज़ ऑफ़ एशिया ऐंड ऐफ़्रिका
तोक्यो यूनिवर्सिटी ऑफ़ फ़ाॅरेन स्टडीज़


Mellon Project


प्रेमचन्द
गोदान
(Devanagari text reconstituted from Professor K. Machida's roman transcription)

Chapter Fifteen.
(unparagraphed text)

        मालती बाहर से तितली है, भीतर से मधुमक्खी। उसके जीवन में हँसी ही हँसी नहीं है, केवल गुड़ खाकर कौन जी सकता है! औरर जिये भी तो वह कोई सुखी जीवन न होगा। वह हँसती है, इसलिए कि उसे इसके भी दाम मिलते हैं। उसका चहकना औरर चमकना, इसलिए नहीं है कि वह चहकने को ही जीवन समझती है, या उसने निजत्व को अपनी आँखों में इतना बढ़ा लिया है कि जो कुछ करे, अपने ही लिए करे। नहीं, वह क्योंकि चहकती है औरर विनोद करती है कि इससे उसके कर्तव्य का भार कुछ हलका हो जाता है। उसके बाप उन विचित्र जीवों में थे, जो केवल ज़बान की मदद से लाखों के वारे-न्यारे करते थे। बड़े-बड़े ज़मींदारों औरर रईसों की जायदादें बिकवाना, उन्हें क़रज़ दिलाना या उनके मुआमलों को अफ़सरों से मिलकर तय करा देना, यही उनका व्यवसाय था। दूसरे शब्दों में, दलाल थे। इस वर्ग के लोग बड़े प्रतिभावान होते हैं। जिस काम से कुछ मिलने की आशा हो, वह उठा लेंगे, किसी न किसी तरह उसे निभा भी देंगे। किसी राजा की शादी किसी राजकुमारी से ठीक करवा दी औरर दस-बीस हज़ार उसी में मार लिये। यही दलाल जब छोटे-छोटे सौदे करते हैं, तो टाउट कहे जाते हैं, औरर हम उनसे घृणा करते हैं। बड़े-बड़े काम करके वही टाउट राजाओं के साथ शिकार खेलता है औरर गवर्नरों की मेज़ पर चाय पीता है। मिस्टर कौल उन्हीं भाग्यवानों में से थे। उनके तीन लड़कियाँ ही लड़कियाँ थीं। उनका विचार था कि तीनों को इंगलैंड भेजकर शिक्षा के शिखर पर पहुँचा दें। अन्य बहुत से बड़े आदमियों की तरह उनका भी ख़याल था कि इंगलैंड में शिक्षा पाकर आदमी कुछ औरर हो जाता है। शायद वहाँ के जल-वायु में बुद्धि को तेज़ कर देने की कोई शक्ति है; मगर उनकी यह कामना एक-तिहाई से ज़्यादा पूरी न हुई। मालती इंगलैंड में ही थी कि उन पर फ़ालिज गिरा औरर बेकाम कर गया। अब बड़ी मुश्किल से दो आदमियों के सहारे उठते-बैठते थे। ज़बान तो बिलकुल बन्द ही हो गयी। औरर जब ज़बान ही बन्द हो गयी, तो आमदनी भी बन्द हो गयी। जो कुछ थी, ज़बान ही की कमाई थी। कुछ बचा रखने की उनकी आदत न थी। अनियमित आय थी औरर अनियमित ख़र्च था; इसलिए इधर कई साल से बहुत तंगहाल हो रहे थे। सारा दायित्व मालती पर आ पड़ा। मालती के चार-पाँच सौ रुपए में वह भोग-विलास औरर ठाट-बाट तो क्या निभता! हाँ, इतना था कि दोनों लड़कियों की शिक्षा होती जाती थी औरर भलेमानसों की तरह ज़िन्दगी बसर होती थी। मालती सुबह से पहर रात तक दौड़ती रहती थी। चाहती थी कि पिता सात्विकता के साथ रहें, लेकिन पिताजी को शराब-कवाब का ऐसा चस्का पड़ा था कि किसी तरह गला न छोड़ता था। कहीं से कुछ न मिलता, तो एक महाजन से अपने बँगले पर प्रोनोट लिखकर हज़ार दो हज़ार ले लेते थे। महाजन उनका पुराना मित्र था, जिसने उनकी बदौलत लेन-देन में लाखों कमाये थे, औरर मुरौवत के मारे कुछ बोलता न था। उसके पचीस हज़ार चढ़ चुके थे, औरर जब चाहता, क़ुर्क़ी करा सकता था; मगर मित्रता की लाज निभाता जाता था। आत्मसेवियों में जो निर्लज्जता आ जाती है, वह कौल में भी थी। तक़ाज़े हुआ करें, उन्हें परवा न थी। मालती उनके अपव्यय पर झुँझलाती रहती थी; लेकिन उसकी माता जो साक्षात्् देवी थीं औरर इस युग में भी पति की सेवा को नारी-जीवन का मुख्य हेतु समझती थीं, उसे समझाती रहती थी; इसलिए गृह-युद्ध न होने पाता था। सन्ध्या हो गयी थी। हवा में अभी तक गर्मी थी। आकाश में धुन्ध छाया हुआ था। मालती औरर उसकी दोनों बहनें बँगले के सामने घास पर बैठी हुई थीं। पानी न पाने के कारण वहाँ की दूब जल गयी थी औरर भीतर की मिट्टी निकल आयी थी। मालती ने पूछा -- माली क्या बिलकुल पानी नहीं देता? मँझली बहन सरोज ने कहा -- पड़ा-पड़ा सोया करता है सूअर। जब कहो, तो बीस बहाने निकालने लगता है। सरोज बी। ए। में पढ़ती थी, दुबली-सी, लम्बी, पीली, रूखी, कटु। उसे किसी की कोई बात पसन्द न आती थी। हमेशा ऐब निकालती रहती थी। डाक्टरों की सलाह थी कि वह कोई परिश्रम न करे, औरर पहाड़ पर रहे; लेकिन घर की स्थिति ऐसी न थी कि उसे पहाड़ पर भेजा जा सकता। सबसे छोटी वरदा को सरोज से इसलिये द्वेष था कि सारा घर सरोज को हाथों-हाथ लिये रहता था; वह चाहती थी जिस बीमारी में इतना स्वाद है, वह उसे ही क्यों नहीं हो जाती। गोरी-सी, गर्वशील, स्वस्थ, चंचल आँखोंवाली बालिका थी, जिसके मुख पर प्रतिभा की झलक थी। सरोज के सिवा उसे सारे संसार से सहानुभूति थी। सरोज के कथन का विरोध करना उसका स्वभाव था। बोली-दिन-भर दादाजी बाज़ार भेजते रहते हैं, फ़ुरसत ही कहाँ पाता है। मरने को छुट्टी तो मिलती नहीं, पड़ा-पड़ा सोयेगा! सरोज ने डाँटा -- दादाजी उसे कब बाज़ार भेजते हैं री, झूठी कहीं की! ' रोज़ भेजते हैं, रोज़। अभी तो आज ही भेजा था। कहो तो बुलाकर पुछवा दूँ? ' ' पुछवायेगी, बुलाऊँ? ' मालती डरी। दोनों गुथ जायँगी, तो बैठना मुश्किल कर देंगी। बात बदलकर बोली -- अच्छा ख़ैर, होगा। आज डाक्टर मेहता का तुम्हारे यहाँ भाषण हुआ था, सरोज? सरोज ने नाक सिकोड़कर कहा -- हाँ, हुआ तो था; लेकिन किसी ने पसन्द नहीं किया। आप फ़रमाने लगे -- संसार में स्त्रियों का क्षेत्र पुरुषों से बिलकुल अलग है। स्त्रियों का पुरुषों के क्षेत्र में आना इस युग का कलंक है। सब लड़कियों ने तालियाँ औरर सीटियाँ बजानी शुरू कीं बेचारे लज्जित होकर बैठ गये। कुछ अजीब-से आदमी मालूम होते हैं। आपने यहाँ तक कह डाला कि प्रेम केवल कवियों की कल्पना है। वास्तविक जीवन में इसका कहीं निशान नहीं। लेडी हुक्कू ने उनका ख़ूब मज़ाक़ उड़ाया। मालती ने कटाक्ष किया -- लेडी हुक़्क़ू ने? इस विषय में वह भी कुछ बोलने का साहस रखती हैं! तुम्हें डाक्टर साहब का भाषण आदि से अन्त तक सुनना चाहिए था। उन्होंने दिल में लड़कियों को क्या समझा होगा? ' पूरा भाषण सुनने का सब्र किसे था? वह तो जैसे घाव पर नमक छिड़कते थे। ' ' फिर उन्हें बुलाया ही क्यों? आख़िर उन्हें औररतों से कोई वैर तो है नहीं। जिस बात को हम सत्य समझते हैं, उसी का तो प्रचार करते हैं। औररतों को ख़ुश करने के लिए वह उनकी-सी कहनेवालों में नहीं हैं औरर फिर अभी यह कौन जानता है कि स्त्रियाँ जिस रास्ते पर चलना चाहती हैं वही सत्य है। बहुत सम्भव है, आगे चल कर हमें अपनी धारणा बदलनी पड़े। ' उसने फ़्र:ांस, जर्मनी औरर इटली की महिलाओं के जीवन आदर्श बतलाये औरर कहा -- शीघ्र ही वीमेंस लीग की ओर से मेहता का भाषण होनेवाला है। सरोज को कुतूहल हुआ। ' मगर आप भी तो कहती हैं कि स्त्रियों औरर पुरुषों के अधिकार समान होने चाहिए। ' ' अब भी कहती हूँ; लेकिन दूसरे पक्षवाले क्या कहते हैं, यह भी तो सुनना चाहिए। सम्भव है; हमीं ग़लती पर हों। ' यह लीग इस नगर की नयी संस्था है औरर मालती के उद्योग से खुली है। नगर की सभी शिक्षित महिलाएँ उसमें शरीक हैं। मेहता के पहले भाषण ने महिलाओं में बड़ी हलचल मचा दी थी औरर लीग ने निश्चय किया था, कि उनका ख़ूब दन्दाशिकन जवाब दिया जाय। मालती ही पर यह भार डाल गया था। मालती कई दिन तक अपने पक्ष के समर्थन में युक्तियाँ औरर प्रमाण खोजती रही। औरर भी कई देवियाँ अपने भाषण लिख रही थीं। उस दिन जब मेहता शाम को लीग के हाल में पहुँचे, तो जान पड़ता था हाल फट जायगा। उन्हें गर्व हुआ। उनका भाषण सुनने के लिए इतना उत्साह! औरर वह उत्साह केवल मुख पर औरर आँखों में न था। आज सभी देवियाँ सोने औरर रेशम से लदी हुई थीं, मानो किसी बारात में आयी हों। मेहता को परास्त करने के लिए पूरी शक्ति से काम लिया था औरर यह कौन कह सकता है कि जगमगाहट शक्ति का अंग नहीं है। मालती ने तो आज के लिए नये फ़ैशन की साड़ी निकाली थी, नये काट के जम्पर बनवाये थे औरर रंग-रोगन औरर फूलों से ख़ूब सजी हुई थी, मानो उसका विवाह हो रहा हो। वीमेंस लीग में इतना समारोह औरर कभी न हुआ था। डाक्टर मेहता अकेले थे, फिर भी देवियों के दिल काँप रहे थे। सत्य की एक चिनगारी असत्य के एक पहाड़ को भस्म कर सकती है। सबसे पीछे की सफ़ में मिरज़ा औरर खन्ना औरर सम्पादकजी भी विराज रहे थे। राय-साहब भाषण शुरू होने के बाद आये औरर पीछे खड़े हो गये। मिरज़ा ने कहा -- आ जाइए आप भी, खड़े कब तक रहिएगा। राय साहब बोले -- नहीं भाई, यहाँ मेरा दम घुटने लगेगा। ' तो मैं खड़ा होता हूँ। आप बैठिए। ' राय साहब ने उनके कन्धे दबाये -- तकल्लुफ़ नहीं, बैठे रहिए। मैं थक जाऊँगा, तो आपको उठा दूँगा औरर बैठ जाऊँगा, अच्छा मिस मालती सभानेत्री हुईं। खन्ना साहब कुछ इनाम दिलवाइए। खन्ना ने रोनी सूरत बनाकर कहा -- अब मिस्टर मेहता पर ही निगाह है। मैं तो गिर गया। मिस्टर मेहता का भाषण शुरू हुआ -- ' देवियो, जब मैं इस तरह आपको सम्बोधित करता हूँ, तो आपको कोई बात खटकती नहीं। आप इस सम्मान को अपना अधिकार समझती हैं; लेकिन आपने किसी महिला को पुरुषों के प्रति ' देवता ' का व्यवहार करते सुना है? उसे आप देवता कहें, तो वह समझेगा, आप उसे बना रही हैं। आपके पास दान देने के लिए दया है, श्रद्धा है, त्याग है। पुरुष के पास दान के लिए क्या है? वह देवता नहीं, लेवता है। वह अधिकार के लिए हिंसा करता है, संग्राम करता है, कलह करता है ।।। ' तालियाँ बजीं। राय साहब ने कहा -- औररतों को ख़ुश करने का इसने कितना अच्छा ढंग निकाला। ' बिजली ' सम्पादक को बुरा लगा -- कोई नयी बात नहीं। मैं कितनी ही बार यह भाव व्यक्त कर चुका हूँ। मेहता आगे बढ़े -- इसलिए जब मैं देखता हूँ, हमारी उन्नत विचारोंवाली देवियाँ उस दया औरर श्रद्धा औरर त्याग के जीवन से असन्तुष्ट होकर संग्राम औरर कलह औरर हिंसा के जीवन की ओर दौड़ रही हैं औरर समझ रही हैं कि यही सुख का स्वर्ग है, तो मैं उन्हें बधाई नहीं दे सकता। मिसेज़ खन्ना ने मालती की ओर सगर्व नेत्रों से देखा। मालती ने गर्दन झुका ली। खुर्शेद बोले -- अब कहिए। मेहता दिलेर आदमी है। सच्ची बात कहता है औरर मुँह पर। ' बिजली ' सम्पादक ने नाक सिकोड़ी -- अब वह दिन लद गये, जब देवियाँ इन चकमों में आ जाती थीं। उनके अधिकार हड़पते जाओ औरर कहते जाओ, आप तो देवी हैं, लक्षमी हैं, माता हैं। मेहता आगे बढ़े -- स्त्री को पुरुष के रूप में, पुरुष के कर्म में, रत देखकर मुझे उसी तरह वेदना होती है, जैसे पुरुष को स्त्री के रूप में, स्त्री के कर्म करते देखकर। मुझे विश्वास है, ऐसे पुरुषों को आप अपने विश्वास औरर प्रेम का पात्र नहीं समझती औरर मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ, ऐसी स्त्री भी पुरुष के प्रेम औरर श्रद्धा का पात्र नहीं बन सकती। खन्ना के चेहरे पर दिल की ख़ुशी चमक उठी राय साहब ने चुटकी ली -- आप बहुत ख़ुश हैं खन्नाजी! खन्ना बोले -- मालती मिलें, तो पूछूँ, अब कहिए। मेहता आगे बढ़े -- मैं प्राणियों के विकास में स्त्री के पद को पुरुषों के पद से श्रेष्ठ समझता हूँ, उसी तरह जैसे प्रेम औरर त्याग औरर श्रद्धा को हिंसा औरर संग्राम औरर कलह से श्रेष्ठ समझता हूँ। अगर हमारी देवियाँ सृष्टि औरर पालन के देव-मन्दिर से हिंसा औरर कलह के दानव-क्षेत्र में आना चाहती हैं, तो उससे समाज का कल्याण न होगा। मैं इस विषय में दृढ़ हूँ। पुरुष ने अपने अभिमान में अपनी दानवी कीर्ति को अधिक महत्व दिया। वह अपने भाई का स्वत्व छीनकर औरर उसका रक्त बहाकर समझने लगा, उसने बहुत बड़ी विजय पायी। जिन शिशुओं को देवियों ने अपने रक्त से सिरजा औरर पाला उन्हें बम औरर मशीनगन औरर सहं:ों टैंकों का शिकार बनाकर वह अपने को विजेता समझता है। औरर जब हमारी ही मातायें उसके माथे पर केसर का तिलक लगाकर औरर उसे अपनी असीसों का कवच पहनाकर हिंसा-क्षेत्र में भेजती हैं, तो आश्चर्य है कि पुरुष ने विनाश को ही संसार के कल्याण की वस्तु समझा औरर उसकी हिंसा-प्रवृत्ति दिन-दिन बढ़ती गयी औरर आज हम देख रहे हैं कि यह दानवता प्रचंड होकर समस्त संसार को रौंदती, प्राणियों को कुचलती, हरी-भरी खेतियों को जलाती औरर गुलज़ार बस्तियों को वीरान करती चली जाती है। देवियो, मैं आप से पूछता हूँ, क्या आप इस दानवलीला में सहयोग देकर, इस संग्राम-क्षेत्र में उतरकर संसार का कल्याण करेंगी? मैं आपसे विनती करता हूँ, नाश करनेवालों को अपना काम करने दीजिए, आप अपने धर्म का पालन किये जाइए। खन्ना बोले -- मालती की तो गर्दन नहीं उठती। राय साहब ने इन विचारों का समर्थन किया -- मेहता कहते तो यथार्थ ही हैं। ' बिजली ' सम्पादक बिगड़े -- मगर कोई नयी बात तो नहीं कही। नारी-आन्दोलन के विरोधी इन्हीं उट-पटाँग बातों की शरण लिया करते हैं। मैं इसे मानता ही नहीं कि त्याग औरर प्रेम से संसार ने उन्नति की। संसार ने उन्नति की पौरुष से, पराक्रम से, बुद्धि-बल से, तेज से। खुर्शेद ने कहा -- अच्छा, सुनने दीजिएगा या अपनी ही गाये जाइएगा? मेहता का भाषण जारी था -- देवियो, मैं उन लोगों में नहीं हूँ, जो कहते हैं, स्त्री औरर पुरुष में समान शक्तियाँ हैं, समान प्रवृत्तियाँ हैं, औरर उनमें कोई विभिन्नता नहीं है; इससे भयंकर असत्य की मैं कल्पना नहीं कर सकता। यह वह असत्य है, जो युग-युगान्तरों से संचित अनुभव को उसी तरह ढँक लेना चाहता है, जैसे बादल का एक टुकड़ा सूर्य को ढँक लेता है। मैं आपको सचेत किये देता हूँ कि आप इस जाल में न फँसें। स्त्री पुरुष से उतनी ही श्रेष्ठ है, जितना प्रकाश अँधेरे से। मनुष्य के लिए क्षमा औरर त्याग औरर अहिंसा जीवन के उच्चतम आदर्श हैं। नारी इस आदर्श को प्राप्त कर चुकी है। पुरुष धर्म औरर अध्यात्म औरर ऋषियों का आश्रय लेकर उस लक्ष्य पर पहुँचने के लिए सदियों से ज़ोर मार रहा है; पर सफल नहीं हो सका। मैं कहता हूँ, उसका सारा अध्यात्म औरर योग एक तरफ़ औरर नारियों का त्याग एक तरफ़। तालियाँ बजीं। हाल हिल उठा। राय साहब ने गद्गद होकर कहा -- मेहता वही कहते हैं, जो इनके दिल में है। ओंकारनाथ ने टीका की -- लेकिन बातें सभी पुरानी हैं, सड़ी हुईं। ' पुरानी बात भी आत्मबल के साथ कही जाती है, तो नयी हो जाती है। ' जो एक हज़ार रुपए हर महीने फटकारकर विलास में उड़ाता हो, उसमें आत्मबल जैसी वस्तु नहीं रह सकती। यह केवल पुराने विचार की नारियों औरर पुरुषों को प्रसन्न करने के ढंग हैं। ' खन्ना ने मालती की ओर देखा -- यह क्यों फूली जा रही हैं? इन्हें तो शरमाना चाहिए। खुर्शेद ने खन्ना को उकसाया -- अब तुम भी एक तक़रीर कर डालो खन्ना, नहीं मेहता तुम्हें उखाड़ फेंकेगा। आधा मैदान तो उसने अभी मार लिया है। खन्ना खिसियाकर बोले -- मेरी न कहिए, मैंने ऐसी कितनी चिड़ियाँ फँसाकर छोड़ दी हैं। राय साहब ने खुर्शेद की तरफ़ आँख मारकर कहा -- आजकल आप महिला-समाज की तरफ़ आते-जाते हैं। सच कहना, कितना चन्दा दिया? खन्ना पर झेंप छा गयी -- मैं ऐसे समाजों को चन्दे नहीं दिया करता, जो कला का ढोंग रचकर दुराचार फैलाते हैं। मेहता का भाषण जारी था -- ' पुरुष कहता है, जितने दार्शनिक औरर वैज्ञानिक आविष्कारक हुए हैं, वह सब पुरुष थे। जितने बड़े-बड़े महात्मा हुए हैं, वह सब पुरुष थे। सभी योद्धा, सभी राजनीति के आचार्य, बड़े-बड़े नाविक, बड़े-बड़े सब कुछ पुरुष थे; लेकिन इन बड़ों-बड़ों के समूहों ने मिलकर किया क्या? महात्माओं औरर धर्म-प्रवर्तकों ने संसार में रक्त की नदियाँ बहाने औरर वैमनस्य की आग भड़काने के सिवा औरर क्या किया, योद्धाओं ने भाइयों की गरदनें काटने के सिवा औरर क्या यादगार छोड़ी, राजनीतिज्ञ:ों की निशानी अब केवल लुप्त साम्राज्यों के खंडहर रह गये हैं, औरर आविष्कारकों ने मनुष्य को मशीन का ग़ुलाम बना देने के सिवा औरर क्या समस्या हल कर दी? पुरुषों की रची हुई इस संस्कृति में शान्ति कहाँ है? सहयोग कहाँ है? ओंकारनाथ उठकर जाने को हुए -- विलासियों के मुँह से बड़ी-बड़ी बातें सुनकर मेरी देह भस्म हो जाती है। खुर्शेद ने उनका हाथ पकड़कर बैठाया -- आप भी सम्पादकजी निरे पोंगा ही रहे। अजी यह दुनिया है, जिसके जी में जो आता है, बकता है। कुछ लोग सुनते हैं औरर तालियाँ बजाते हैं। चलिए क़िस्सा ख़तम। ऐसे-ऐसे बेशुमार मेहते आयेंगे औरर चले जायेंगे। औरर दुनिया अपनी रफ़्तार से चलती रहेगी। यहाँ बिगड़ने की कौन-सी बात है? ' असत्य सुनकर मुझसे सहा नहीं जाता! ' राय साहब ने उन्हें औरर चढ़ाया -- कुलटा के मुँह से सतियों की-सी बात सुनकर किसका जी न जलेगा! ओंकारनाथ फिर बैठ गये। मेहता का भाषण जारी था -- ' मैं आपसे पूछता हूँ, क्या बाज़ को चिड़ियों का शिकार करते देखकर हंस को यह शोभा देगा कि वह मानसरोवर की आनन्दमयी शान्ति को छोड़कर चिड़ियों का शिकार करने लगे? औरर अगर वह शिकारी बन जाय, तो आप उसे बधाई देंगी? हंस के पास उतनी तेज़ चोंच नहीं है, उतने तेज़ चंगुल नहीं हैं, उतनी तेज़ आँखें नहीं हैं, उतने तेज़ पंख नहीं हैं औरर उतनी तेज़ रक्त की प्यास नहीं है। उन अस्त्रों का संचय करने में उसे सदियाँ लग जायँगी, फिर भी वह बाज़ बन सकेगा या नहीं, इसमें सन्देह है; मगर बाज़ बने या न बने, वह हंस न रहेगा -- वह हंस जो मोती चुगता है। ' खुर्शेद ने टीका की -- यह तो शायरों की-सी दलीलें हैं। मादा बाज़ भी उसी तरह शिकार करती है, जैसे, नर बाज़। ओंकारनाथ प्रसन्न हो गये -- उस पर आप फ़लिासफ़र बनते हैं, इसी तर्क के बल पर! खन्ना ने दिल का गुबार निकाला -- फ़लिासफ़र की दुम हैं। फ़लिासफ़र वह है, जो ।।। ओंकारनाथ ने बात पूरी की -- जो सत्य से जौ-भर भी न टले। खन्ना को यह समस्या पूर्ति नहीं रुची -- मैं सत्य-वत्य नहीं जानता। मैं तो फ़लिासफ़र उसे कहता हूँ, जो फ़लिासफ़र हो सच्चा! खुर्शेद ने दाद दी -- फ़लिासफ़र की आपने कितनी सच्ची तारीफ़ की है। वाह सुभानल्ला। फ़लिासफ़र वह है, जो फ़लिासफ़र हो। क्यों न हो। मेहता आगे चले -- मैं नहीं कहता, देवियों को विद्या की ज़रूरत नहीं है। है औरर पुरुषों से अधिक। मैं नहीं कहता, देवियों को शक्ति की ज़रूरत नहीं है। है औरर पुरुषों से अधिक; लेकिन वह विद्या औरर वह शक्ति नहीं, जिससे पुरुष ने संसार को हिंसाक्षेत्र बना डाला है अगर वही विद्या औरर वही शक्ति आप भी ले लेंगी, तो संसार मरुस्थल हो जायगा। आपकी विद्या औरर आपका अधिकार हिंसा औरर विध्वंस में नहीं, सृष्टि औरर पालन में है। क्या आप समझती हैं, वोटों से मानव-जाति का उद्धार होगा, या दफ़्तरों में औरर अदालतों में ज़बान औरर क़लम चलाने से? इन नक़ली, अप्राकृतिक, विनाशकारी अधिकारों के लिए आप वह अधिकार छोड़ देना चाहती हैं, जो आपको प्रकृति ने दिये हैं? सरोज अब तक बड़ी बहन के अदब से ज़ब्त किये बैठी थी। अब न रहा गया। पुकार उठी -- हमें वोट चाहिए, पुरुषों के बराबर। औरर कई युवतियों ने हाँक लगायी -- वोट! वोट! ओंकारनाथ ने खड़े होकर ऊँचे स्वर से कहा -- नारीजाति के विरोधियों की पगड़ी नीची हो। मालती ने मेज़ पर हाथ पटककर कहा -- शान्त रहो, जो लोग पक्ष या विपक्ष में कुछ कहना चाहेंगे, उन्हें पूरा अवसर दिया जायगा। मेहता बोले -- वोट नये युग का मायाजाल है, मरीचिका है, कलंक है, धोखा है; उसके चक्कर में पड़कर आप न इधर की होंगी, न उधर की। कौन कहता है कि आपका क्षेत्र संकुचित है औरर उसमें आपको अभिव्यक्ति का अवकाश नहीं मिलता। हम सभी पहले मनुष्य हैं, पीछे औरर कुछ। हमारा जीवन हमारा घर है। वहीं हमारी सृष्टि होती है वहीं हमारा पालन होता है, वहीं जीवन के सारे व्यापार होते हैं; अगर वह क्षेत्र परिमित है, तो अपरिमित कौन-सा क्षेत्र है? क्या वह संघर्ष, जहाँ संगठित अपहरण है? जिस कारख़ाने में मनुष्य औरर उसका भाग्य बनता है, उसे छोड़कर आप उन कारखानों में जाना चाहती हैं, जहाँ मनुष्य पीसा जाता है, जहाँ उसका रक्त निकाला जाता है? मिरज़ा ने टोका -- पुरुषों के ज़ुल्म ने ही तो उनमें बगावत की यह स्पिरिट पैदा की है। मेहता बोले -- बेशक, पुरुषों ने अन्याय किया है; लेकिन उसका यह जवाब नहीं है। अन्याय को मिटाइए; लेकिन अपने को मिटाकर नहीं। मालती बोली -- नारियाँ इसलिए अधिकार चाहती हैं कि उनका सदुपयोग करें औरर पुरुषों को उनका दुरुपयोग करने से रोकें। मेहता ने उत्तर दिया -- संसार में सबसे बड़े अधिकार सेवा औरर त्याग से मिलते हैं औरर वह आपको मिले हुए हैं। उन अधिकारों के सामने वोट कोई चीज़ नहीं। मुझे खेद है, हमारी बहनें पश्चिम का आदर्श ले रही हैं, जहाँ नारी ने अपना पद खो दिया है औरर स्वामिनी से गिरकर विलास की वस्तु बन गयी है। पश्चिम की स्त्री स्वच्छन्द होना चाहती है; इसीलिए कि वह अधिक से अधिक विलास कर सके। हमारी माताओं का आदर्श कभी विलास नहीं रहा। उन्होंने केवल सेवा के अधिकार से सदैव गृहस्थी का संचालन किया है। पश्चिम में जो चीज़ें अच्छी हैं, वह उनसे लीजिए। संस्कृति में सदैव आदान-प्रदान होता आया है; लेकिन अन्धी नक़ल तो मानसिक दुर्बलता का ही लक्षण है! पश्चिम की स्त्री आज गृह-स्वामिनी नहीं रहना चाहती। भोग की विदग्ध लालसा ने उसे उच्छृखल बना दिया है। वह अपनी लज्जा औरर गरिमा को जो उसकी सबसे बड़ी विभूति थी, चंचलता औरर आमोद-प्रमोद पर होम कर रही है। जब मैं वहाँ की सुशिक्षित बालिकाओं को अपने रूप का, या भरी हुई गोल बाँहों या अपनी नग्नता का प्रदर्शन करते देखता हूँ, तो मुझे उन पर दया आती है। उनकी लालसाओं ने उन्हें इतना पराभूत कर दिया है कि वे अपनी लज्जा की भी रक्षा नहीं कर सकतीं। नारी की इससे अधिक औरर क्या अधोगति हो सकती है? राय साहब ने तालियाँ बजायीं। हाल तालियों से गूँज उठा, जैसे पटाखों की टट्टियाँ छूट रही हों। मिरज़ा साहब ने सम्पादक जी से कहा -- इसका जवाब तो आपके पास भी न होगा? सम्पादक जी ने विरक्त मन से कहा -- सारे व्याख्यान में इन्होंने यही एक बात सत्य कही है। ' तब तो आप भी मेहता के मुरीद हुए। ' ' जी नहीं, अपने लोग किसी के मुरीद नहीं होते। मैं इसका जवाब ढूँढ़ निकालूँगा, ' बिजली ' में देखिएगा। ' ' इसके माने यह है कि आप हक़ की तलाश नहीं करते, सिफऱ् अपने पक्ष के लिए लड़ना चाहते हैं। ' राय साहब ने आड़े हाथों लिया -- इसी पर आपको अपने सत्य-प्रेम का अभिमान है। सम्पादकजी अविचल रहे -- वकील का काम अपने मुअक्किल का हित देखना है, सत्य या असत्य का निराकरण नहीं। ' तो यों कहिए कि आप औररतों के वकील हैं। ' ' मैं उन सभी लोगों का वकील हूँ, जो निर्बल हैं, निस्सहाय हैं, पीड़ित हैं। ' ' बड़े बेहया हो यार। ' मेहताजी कह रहे थे -- औरर यह पुरुषों का षडयन्त्र है। देवियों को ऊँचे शिखर से खींचकर अपने बराबर बनाने के लिए, उन पुरुषों का, जो कायर हैं, जिनमें वैवाहिक जीवन का दायित्व सँभालने की क्षमता नहीं है, जो स्वच्छन्द काम-क्रीड़ा की तरंगों में साँड़ों की भाँति दूसरों की हरी-भरी खेती में मुँह डालकर अपनी कुत्सित लालसाओं को तृप्त करना चाहते हैं। पश्चिम में इनका षडयन्त्र सफल हो गया औरर देवियाँ तितलियाँ बन गयीं। मुझे यह कहते हुए शर्म आती है कि इस त्याग औरर तपस्या की भूमि भारत में भी कुछ वही हवा चलने लगी है। विशेषकर हमारी शिक्षित बहनों पर वह जादू बड़ी तेज़ी से चढ़ रहा है। वह गृहिणी का आदर्श त्यागकर तितलियों का रंग पकड़ रही हैं। सरोज उत्तेजित होकर बोली -- हम पुरुषों से सलाह नहीं माँगतीं। अगर वह अपने बारे में स्वतन्त्र हैं, तो स्त्रियाँ भी अपने विषय में स्वतन्त्र हैं। युवतियाँ अब विवाह को पेशा नहीं बनाना चाहतीं। वह केवल प्रेम के आधार पर विवाह करेंगी। ज़ोर से तालियाँ बजीं, विशेषकर अगली पंक्तियों में जहाँ महिलाएँ थीं। मेहता ने जवाब दिया -- जिसे तुम प्रेम कहती हो, वह धोखा है, उद्दीप्त लालसा का विकृत रूप, उसी तरह जैसे संन्यास केवल भीख माँगने का संस्कृत रूप है। वह प्रेम अगर वैवाहिक जीवन में कम है, तो मुक्त विलास में बिलकुल नहीं है। सच्चा आनन्द, सच्ची शान्ति केवल सेवा-व्रत में है। वही अधिकार का ं:ोत है, वही शक्ति का उद्गम है। सेवा ही वह सीमेंट है, जो दम्पति को जीवनपर्यन्त स्नेह औरर साहचर्य में जोड़े रख सकता है, जिसपर बड़े-बड़े आघातों का भी कोई असर नहीं होता। जहाँ सेवा का अभाव है, वहीं विवाह-विच्छेद है, परित्याग है, अविश्वास है। औरर आपके ऊपर, पुरुष-जीवन की नौका का कर्णधार होने के कारण ज़िम्मेदारी ज़्यादा है। आप चाहें तो नौका को आँधी औरर तूफ़ानों में पार लगा सकती हैं। औरर आपने असावधानी की तो नौका डूब जायगी औरर उसके साथ आप भी डूब जायँगी। भाषण समाप्त हो गया। विषय विवाद-ग्रस्त था औरर कई महिलाओं ने जवाब देने की अनुमति माँगी; मगर देर बहुत हो गयी थी। इसलिए मालती ने मेहता को धन्यवाद देकर सभा भंग कर दी हाँ, यह सूचना दे दी गयी कि अगले रविवार को इसी विषय पर कई देवियाँ अपने विचार प्रकट करेंगी। राय साहब ने मेहता को बधाई दी -- आपने मन की बातें कहीं मिस्टर मेहता। मैं आपके एक-एक शब्द से सहमत हूँ। मालती हँसी -- आप क्यों न बधाई देंगे, चोर-चोर मौसेरे भाई जो होते हैं; न मगर यह सारा उपदेश ग़रीब नारियों ही के सिर क्यों थोपा जाता है, उन्हीं के सिर क्यों आदर्श औरर मर्यादा औरर त्याग सब कुछ पालन करने का भार पटका जाता है? मेहता बोले -- इसलिए कि वह बात समझती हैं। खन्ना ने मालती की ओर अपनी बड़ी-बड़ी आँखों से देख कर मानो उसके मन की बात समझने की चेष्टा करते हुए कहा -- डाक्टर साहब के ये विचार मुझे तो कोई सौ साल पिछड़े हुए मालूम होते हैं। मालती ने कटु होकर पूछा -- कौन से विचार? ' यही सेवा औरर कर्तव्य आदि। ' ' तो आपको ये विचार सौ साल पिछड़े हुए मालूम होते हैं! तो कृपा करके अपने ताज़े विचार बतलाइए। दम्पति कैसे सुखी रह सकते हैं, इसका कोई ताज़ा नुसख़ा आपके पास है? ' खन्ना खिसिया गये। बात कही मालती को ख़ुश करने के लिए, वह औरर तिनक उठी। बोली -- यह नुसख़ा तो मेहता साहब को मालूम होगा। ' डाक्टर साहब ने तो बतला दिया औरर आपके ख़्याल में वह सौ साल पुराना है, तो नया नुसख़ा आपको बतलाना चाहिए। आपको ज्ञात नहीं कि दुनिया में ऐसी बहुत सी बातें हैं, जो कभी पुरानी हो ही नहीं सकतीं। समाज में इस तरह की समस्याएँ हमेशा उठती रहती हैं औरर हमेशा उठती रहेंगी। ' मिसेज़ खन्ना बरामदे में चली गयी थीं। मेहता ने उनके पास जाकर प्रणाम करते हुए पूछा -- मेरे भाषण के विषय में आपकी क्या राय है? मिसेज़ खन्ना ने आँखें झुकाकर कहा -- अच्छा था, बहुत अच्छा; मगर अभी आप अविवाहित हैं, सभी नारियाँ देवियाँ हैं, श्रेष्ठ हैं, कर्णधार हैं। विवाह कर लीजिए तो पूछूँगी, अब नारियाँ क्या हैं? औरर विवाह आपको करना पड़ेगा; क्योंकि आप विवाह से मुँह चुरानेवाले मर्दों को कायर कह चुके हैं। मेहता हँसे -- उसी के लिए तो ज़मीन तैयार कर रहा हूँ। ' मिस मालती से जोड़ा भी अच्छा है। ' ' शर्त यही है कि वह कुछ दिन आपके चरणों में बैठकर आपसे नारी-धर्म सीखें। ' ' वही स्वार्थी पुरुषों की बात! आपने पुरुष-कर्तव्य सीख लिया है? ' ' यही सोच रहा हूँ, किससे सीखूँ। ' ' मिस्टर खन्ना आपको बहुत अच्छी तरह सिखा सकते हैं। ' मेहता ने क़हक़हा मारा -- नहीं, मैं पुरुष-कर्तव्य भी आप ही से सीखूँगा। ' अच्छी बात है, मुझी से सीखिए। पहली बात यही है कि भूल जाइए कि नारी श्रेष्ठ है औरर सारी ज़िम्मेदारी उसी पर है, श्रेष्ठ पुरुष है औरर उसी पर गृहस्थी का सारा भार है। नारी में सेवा औरर संयम औरर कर्तव्य सब कुछ वही पैदा कर सकता है; अगर उसमें इन बातों का अभाव है, तो नारी में भी अभाव रहेगा। नारियों में आज जो यह विद्रोह है, इसका कारण पुरुष का इन गुणों से शून्य हो जाना है। ' मिरज़ा साहब ने आकर मेहता को गोद में उठा लिया औरर बोले -- मुबारक! मेहता ने प्रश्न की आँखों से देखा -- आपको मेरी तक़रीर पसन्द आयी? ' तक़रीर तो ख़ैर जैसी थी, वैसी थी; मगर कामयाब ख़ूब रही। आपने परी को शीशे में उतार लिया। अपनी तक़दीर सराहिए कि जिसने आज तक किसी को मुँह नहीं लगाया, वह आपका कलमा पढ़ रही है। ' मिसेज़ खन्ना दबी ज़बान से बोली -- जब नशा ठहर जाय, तो कहिए। मेहता ने विरक्त भाव से कहा -- मेरे जैसे किताब कीड़ों को कौन औररत पसन्द करेगी देवीजी! मैं तो पक्का आदर्शवादी हूँ। मिसेज़ खन्ना ने अपने पति को कार की तरफ़ जाते देखा, तो उधर चली गयीं। मिरज़ा भी बाहर निकल गये। मेहता ने मंच पर से अपनी छड़ी उठायी औरर बाहर जाना चाहते थे कि मालती ने आकर उनका हाथ पकड़ लिया औरर आग्रह-भरी आँखों से बोली -- आप अभी नहीं जा सकते। चलिए, पापा से आपकी मुलाक़ात कराऊँ औरर आज वहीं खाना खाइए। मेहता ने कान पर हाथ रखकर कहा -- नहीं, मुझे क्षमा कीजिए। वहाँ सरोज मेरी जान खायगी। मैं इन लड़कियों से बहुत घबराता हूँ। ' नहीं-नहीं, मैं ज़िम्मा लेती हूँ जो वह मुँह भी खोले। ' ' अच्छा आप चलिए, मैं थोड़ी देर में आऊँगा। ' ' जी नहीं, यह न होगा। मेरी कार सरोज को लेकर चल दी। आप मुझे पहुँचाने तो चलेंगे ही। ' दोनों मेहता की कार में बैठे। कार चली। एक क्षण के बाद मेहता ने पूछा -- मैंने सुना है, खन्ना साहब अपनी बीबी को मारा करते हैं। तब से मुझे इनकी सूरत से नफ़रत हो गयी। जो आदमी इतना निर्दयी हो, उसे मैं आदमी नहीं समझता। उस पर आप नारी जाति के बड़े हितैषी बनते हैं। तुमने उन्हें कभी समझाया नहीं? मालती उद्विग्न होकर बोली -- ताली हमेशा दो हथेलियों से बजती है, यह आप भूल जाते हैं। ' मैं तो ऐसे किसी कारण की कल्पना ही नहीं कर सकता कि कोई पुरुष अपनी स्त्री को मारे। ' ' चाहे स्त्री कितनी ही बदज़बान हो? ' ' हाँ, कितनी ही। ' ' तो आप एक नये क़िस्म के आदमी हैं। ' ' अगर मर्द बदमिज़ाज है, तो तुम्हारी राय में उस मर्द पर हंटरों की बौछार करनी चाहिए, क्यों? ' ' स्त्री जितनी क्षमाशील हो सकती है पुरुष नहीं हो सकता। आपने ख़ुद आज यह बात स्वीकार की है। ' ' तो औररत की क्षमाशीलता का यही पुरस्कार है। मैं समझता हूँ, तुम खन्ना को मुँह लगाकर उसे औरर भी शह देती हो। तुम्हारा वह जितना आदर करता है, तुमसे उसे जितनी भक्ति है, उसके बल पर तुम बड़ी आसानी से उसे सीधा कर सकती हो; मगर तुम उसकी सफ़ाई देकर स्वयम् उस अपराध में शरीक हो जाती हो। ' मालती उत्तेजित होकर बोली -- तुमने इस समय यह प्रसंग व्यर्थ ही छेड़ दिया। मैं किसी की बुराई नहीं करना चाहती; मगर अभी आपने गोविन्दी देवी को पहचाना नहीं? आपने उनकी भोली-भाली शान्त-मुद्रा देखकर समझ लिया, वह देवी हैं। मैं उन्हें इतना ऊँचा स्थान नहीं देना चाहती। उन्होंने मुझे बदनाम करने का जितना प्रयत्न किया है, मुझ पर जैसे-जैसे आघात किये हैं, वह बयान करूँ, तो आप दंग रह जायँगे औरर तब आपको मानना पड़ेगा कि ऐसी औररत के साथ यही व्यवहार होना चाहिए। ' आख़िर उन्हें आपसे इतना द्वेष है, इसका कोई कारण तो होगा? ' ' कारण उनसे पूछिए। मुझे किसी के दिल का हाल क्या मालूम? ' ' उनसे बिना पूछे भी अनुमान किया जा सकता है औरर वह यह है -- अगर कोई पुरुष मेरे औरर मेरी स्त्री के बीच में आने का साहस करे, तो मैं उसे गोली मार दूँगा, औरर उसे न मार सकूँगा, तो अपनी छाती में मार लूँगा। इसी तरह अगर मैं किसी स्त्री को अपने औरर अपनी स्त्री के बीच में लाना चाहूँ, तो मेरी पत्नी को भी अधिकार है कि वह जो चाहे, करे। इस विषय में मैं कोई समझौता नहीं कर सकता। यह अवैज्ञानिक मनोवृत्ति है जो हमने अपने बनैले पूर्वजों से पायी है औरर आजकल कुछ लोग इसे असभ्य औरर असामाजिक व्यवहार कहेंगे; लेकिन मैं अभी तक उस मनोवृति पर विजय नहीं पा सका औरर न पाना चाहता हूँ। इस विषय में मैं क़ानून की परवाह नहीं करता। मेरे घर में मेरा क़ानून है। ' मालती ने तीव्र स्वर में पूछा -- लेकिन आपने यह अनुमान कैसे कर लिया कि मैं आपके शब्दों में खन्ना औरर गोविन्दी के बीच आना चाहती हूँ। आप ऐसा अनुमान करके मेरा अपमान कर रहे हैं। मैं खन्ना को अपनी जूतियों की नोक के बराबर भी नहीं समझती। मेहता ने अविश्वास-भरे स्वर में कहा -- यह आप दिल से नहीं कह रही हैं मिस मालती! क्या आप सारी दुनिया को बेवक़ूफ़ समझती हैं? जो बात सभी समझ रहे हैं, अगर वही बात मिसेज़ खन्ना भी समझें, तो मैं उन्हें दोष नहीं दे सकता। मालती ने तिनककर कहा -- दुनिया को दूसरों को बदनाम करने में मज़ा आता है। यह उसका स्वभाव है। मैं उसका स्वभाव कैसे बदल दूँ; लेकिन यह व्यर्थ का कलंक है। हाँ, मैं इतनी बेमुरौवत नहीं हूँ कि खन्ना को अपने पास आते देखकर दुत्कार देती। मेरा काम ही ऐसा है कि मुझे सभी का स्वागत औरर सत्कार करना पड़ता है। अगर कोई इसका कुछ औरर अर्थ निकालता है, तो वह . . . वह . . . मालती का गला भर्रा गया औरर उसने मुँह फेरकर रूमाल से आँसू पोंछे। फिर एक मिनट बाद बोली -- औररों के साथ तुम भी मुझे . . . मुझे . . . इसका दुख है . . . मुझे तुमसे ऐसी आशा न थी। फिर कदाचित्् उसे अपनी दुर्बलता पर खेद हुआ। वह प्रचंड होकर बोली -- आपको मुझ पर आक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है; अगर आप भी उन्हीं मर्दों में हैं, जो किसी स्त्री-पुरुष को साथ देखकर उँगली उठाये बिना नहीं रह सकते, तो शौक़ से उठाइए। मुझे रत्ती-भर परवा नहीं; अगर कोई स्त्री आपके पास बार-बार किसी न किसी बहाने से आये, आपको अपना देवता समझे, हर-एक बात में आपसे सलाह ले, आपके चरणों के नीचे आँखें बिछाये, आपका इशारा पाते ही आग में कूदने को तैयार हो, तो मैं दावे से कह सकती हूँ, आप उसकी उपेक्षा न करेंगे; अगर आप उसे ठुकरा सकते हैं, तो आप मनुष्य नहीं हैं। उसके विरुद्ध आप कितने ही तर्क औरर प्रमाण लाकर रख दें; लेकिन मैं मानूँगी नहीं। मैं तो कहती हूँ, उपेक्षा तो दूर रही, ठुकराने की बात ही क्या, आप उस नारी के चरण धो-धोकर पियेंगे, औरर बहुत दिन गुज़रने के पहले वह आपकी हृदयेश्वरी होगी। मैं आपसे हाथ जोड़कर कहती हूँ, मेरे सामने खन्ना का कभी नाम न लीजिएगा। मेहता ने इस ज्वाला में मानो हाथ सेंकते हुए कहा -- शर्त यही है कि मैं खन्ना को आपके साथ न देखूँ। ' मैं मानवता की हत्या नहीं कर सकती। वह आयेंगे तो मैं उन्हें दुर-दुराऊँगी नहीं। ' ' उनसे कहिए, अपनी स्त्री के साथ सज्जनता से पेश आयें। ' ' मैं किसी के निजी मुआमले में दख़ल देना उचित नहीं समझती। न मुझे इसका अधिकार है! ' ' तो आप किसी की ज़बान नहीं बन्द कर सकतीं। ' मालती का बँगला आ गया। कार रुक गयी। मालती उतर पड़ी औरर बिना हाथ मिलाये चली गयी। वह यह भी भूल गयी कि उसने मेहता को भोजन की दावत दी है। वह एकान्त में जाकर ख़ूब रोना चाहती है। गोविन्दी ने पहले भी आघात किये हैं; पर आज उसने जो आघात किया है, वह बहुत गहरा, बड़ा चौड़ा औरर बड़ा मर्मभेदी है।
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Chapter Sixteen.
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Recoded: 20 Sept. 1999 to 6 Oct 1999.
Chapter Fifteen posted: 13 Oct. 1999.