यूनिवर्सिटी ऑफ़ मिशिगन
ईदगाह: Part
Two
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नमाज़ ख़त्म हो गयी
है।
लोग आपस में गले मिल
रहे हैं।
तब मिठाई औरर खिलौने की
दूकानों पर धावा होता है।
ग्रामीण्ों का यह दल इस विषय
में
बालकों से कम उत्साही नहीं है।
यह देखो, हिंडोला
है।
[5]
एक पैसा दे कर चढ़ जाओ।
कभी आसमान पर जाते हुए
मालूम
होंगे, कभी जमीन पर
गिरते हुए।
यह चखीर् है, लकड़ी के हाथो, घोड़े, ऊँट
छड़ों से लटके हुए हैं।
एक पैसा दे कर बैठ जाओ
औरर पच्चीस चक्करों का मजा लो।
महमूद औरर मोहसिन औरर
नूरे औरर सम्मी इन घोड़ों औरर
ऊँटों पर बैठते हैं।
[10]
हामिद दूर खड़ा है।
तीन ही पैसे तो उसके
पास हैं।
अपने कोष का एक तिहाई
ज़रा-सा चक्कर
खाने के लिए नहीं दे सकता।
सब
चर्खियों से उतरते हैं।
अब खिलौने लेंगे।
[15]
इधर दूकानों की कतार लगी
हुई है।
तरह-तरह के
खिलौने हैं --- सिपाही
औरर गुजरिया; राजा औरर
वकील, भिश्ती औरर धोबिन
औरर साधु।
वाह !
कितने सुंदर
खिलौने हैं।
अब बोला ही
चाहते हैं।
[20]
महमूद सिपाही लेता है,
ख़ाकी वर्दी औरर लाल पगड़ी
वाला, कंधे पर
बंदूक रखे हुए; मालूम होता है अभी क़वायद किये
चला आ रहा है।
मोहसिन को भिश्ती पसंद आया।
कमर झुकी हुई है,
ऊपर मशक रखे हुए है।
मशक का मुँह एक हाथ से
पकड़े हुए है।
कितना प्रसन्न है।
[25]
शायद कोई गीत गा रहा है।
बस, मशक
से पानी उड़ेला ही चाहता
है।
नूरे को वकील से प्रेम
है।
कैसी विद्वत्ता है उसके
मुख पर !
काला चोग़ा,
नीचे सफ़ेद अचकन, अचकन के सामने की जेब में
घड़ी, सुनहरी जंजीर,
एक हाथ में कानून का
पोथा लिये हुए।
[30]
मालूम होता है,
अभी किसी अदालत से जिरह या बहस
किये चले आ रहे हैं।
यह सब दो-दो पैसे के खिलौने
हैं।
हामिद के पास कुल तीन
पैसे हैं, इतने महँगे खिलौने वह
कैसे ले ?
खिलौना कहीं हाथ
से छूट पड़े, तो
चूर-चूर हो जाय।
ज़रा पानी पड़े तो सारा रंग
घुल जाय।
[35]
ऐसे खिलौने ले कर
वह क्या करेगा, किस काम
के !
मोहसिन कहता है --- मेरा भिश्ती रोज़ पानी दे जायगा;
साँझ-सबेरे।
महमूद --- औरर
मेरा सिपाही घर का पहरा देगा।
कोई चोर आयेगा,
तो फ़ौरन बंदूक फ़ैर
कर देगा।
नूरे --- औरर
मेरा वकील ख़ूब मुकदमा लड़ेगा।
[40]
सम्मी --- औरर मेरी
धोबिन रोज़ कपड़े धोयेगी।
हामिद
खिलौनों की निंदा करता है --- मिट्टी ही के तो हैं,
गिरें तो चकनाचूर
हो जायँ; लेकिन
ललचायी हुई आँखों से
खिलौनों को देख रहा है।
औरर चाहता है कि ज़रा देर के
लिए उन्हें हाथ मेंलप् सकता।
उसके हाथ अनायास ही लपकते
हैं; लेकिन लड़के
इतने त्यागी नहीं होते हैं,
विशेष कर जब अभी नया शौक़
है।
हामिद ललचता रह जाता
है।
[45]
खिलौने के बाद मिठाइयाँ आती
हैं।
किसी ने रेवड़ियाँ ली
हैं, किसी ने
गुलाबजामुन, किसी ने
सोहनहलुआ।
मज़े से खा रहे हैं।
हामिद बिरादरी से पृथक् है।
अभागे के पास तीन पैसे
हैं।
[50]
क्यों नहीं कुछ ले कर
खाता ?
ललचायी आँखों से सबकी
ओर देखता है।
मोहसिन कहता है --- हामिद, रेउड़ी ले
जा, कितनी ख़ुशबूदार
है !
हामिद को
सन्देह हुआ, यह केवल
क्रूर विनोद है, मोहसिन इतना उदार नहीं है;
लेकिन यह जान कर भी वह उसके
पास जाता है।
मोहसिन दोने से एक
रेवड़ी निकाल कर हामिद की ओर बढ़ाता है।
हामिद हाथ फैलाता है।
[55]
मोहसिन रेवड़ी अपने
मुँह में रख लेता है।
महमूद, नूरे औरर सम्मी ख़ूब तालियाँ
बजा-बजा कर हँसते हैं।
हामिद खिसिया जाता है।
मोहसिन --- अच्छा,
अबकी ज़रूर देंगे,
हामिद, अल्ला
क़सम, ले जाव।
हामिद
--- रखे रहो।
[60]
क्या मेरे पास पैसे
नहीं हैं ?
सम्मी
--- तीन ही पैसे तो हैं।
तीन पैसे में
क्या-क्या लोगे ?
महमूद --- हमसे
गुलाबजामुन ले जाव हामिद।
मोहसिन बदमाश है।
[65]
हामिद
--- मिठाई कौन बड़ी नेमत है
?
किताब में इसकी कितनी
बुराइयाँ लिखी हैं।
मोहसिन --- लेफ़नि
दिल में कह रहे होगे कि मिले तो
खा लें।
अपने पैसे क्यों
नहीं निकालते ?
महमूद --- हम समझते
हैं, इसकी चालाकी।
[70]
जब हमारे सारे पैसे ख़र्च हो जायँगे,
तो हमें ललचा-ललचा कर खायेगा।
मिठाइयों के बाद कुछ
दूकानें लोहे की चीज़ों की,
कुछ गिलट औरर कुछ नकली
गहनों की।
लड़कों के लिए यहाँ कोई
आकर्षण न था।
वे सब आगे बढ़ जाते
हैं।
हामिद लोहे की दूकान पर रुक
जाता है।
[75]
कई चिमटे रखे हुए थे।
उसे ख़याल आया, दादी के पास चिमटा नहीं है।
तवे से रोटियाँ उतारती
हैं, तो हाथ जल जाता
है; अगर वह चिमटा ले जा कर
दादी को दे दे, तो
वह कितनी प्रसन्न होंगी !
फिर उनकी उँगलियाँ कभी न
जलेंगी।
घर में एक काम की चीज़ हो
जायगी।
[80]
खिलौने से क्या फ़ायदा।
व्यर्थ में पैसे ख़राब
होते हैं।
ज़रा देर ही तो ख़ुशी होती
है।
फिर तो खिलौनों को
कोई आँख उठा कर नहीं देखता।
या तो घर
पहुँचते-पहुँचते टूट-फूट बराबर हो जायँगे,
या छोटे बच्चे जो
मेले में नहीं आये
हैं, ज़िद करके ले
लेंगे औरर तोड़ डालेंगे।
[85]
चिमटा कितने काम की चीज़ है।
रोटियाँ तवे से उतार
लो, चूल्हे में
सेंक लो।
कोई आग माँगने आये
तो चटपट चूल्हे से आग निकाल कर उसे
दे दो।
अम्मी जान बेचारी को कहाँ
फ़ुरसत है कि बाज़ार आयें, औरर इतने पैसे ही कहाँ
मिलते हैं।
रोज़ हाथ जला लेती हैं।
[90]
हामिद के साथी
आगे बढ़ गये हैं।
सबील पर सब के सब शर्बत पी
रहे हैं।
देखो, सब कितने लालची हैं !
इतनी मिठाइयाँ
लीं, मुझे किसी ने
एक भी न दी।
उस पर कहते हैं,
मेरे साथ खेलो।
[95]
मेरा यह काम करो।
अब अगर किसी ने कोई काम करने
को कहा, तो
पूछूँगा।
खायें मिठाइयाँ,
आप मुँह सड़ेगा,
फोड़े-फुन्सियाँ निकलेंगी,
आप ही ज़बान चटोरा हो जायगी।
तब घर से पैसे
चुरायँगे औरर मार
खायँगे।
किताब में झूठी बातें
थोड़े ही लिखी हैं।
[100]
मेरी ज़बान क्यों ख़राब
होगी।
अम्मी जान चिमटा देखते ही दौड़
कर मेरे हाथ से ले लेंगी औरर
कहेंगी --- मेरा बच्चा अम्मी
के लिए चिमटा लाया है !
हज़ारों दुआएँ
देंगी।
फिर पड़ोस की औररतों
को दिखायँगी।
सारे गाँव में चरचा
होने लगेगी, हामिद
चिमटा लाया है।
[105]
कितना अच्छा लड़का है।
इन लोगों के
खिलौनों पर कौन इन्हें
दुआएँ देगा।
बड़ों की दुआएँ सीधे
अल्लाह के दरबार में पहुँचती
हैं, औरर तुरंत
सुनी जाती हैं।
मेरे पास पैसे नहीं
हैं।
तभी तो मोहसिन औरर
महमूद यों मिज़ाज दिखाते हैं।
[110]
मैं भी इनसे मिज़ाज
दिखाऊँगा।
खेलें खिलौने
औरर खायँ मिठाइयाँ।
मैं नहीं खेलता
खिलौने, किसी का मिज़ाज
क्यों सहूँ।
मैं ग़रीब सही, किसी से कुछ माँगने तो
नहीं जाता।
आख़िर अब्बाजान कभी-न-कभी आयँगे।
[115]
अम्माँ भी आयँगी ही।
फिर इन लोगों से
पूछूँगा, कितने
खिलौने लोगे ?
एक-एक
को टोकरियों खिलौने दूँ
औरर दिखा दूँ कि दोस्तों के साथ
इस तरह सूक किया जाता है।
यह नहीं कि एक पैसे की
रेवड़ियाँ लीं तो चिढ़ा-चिढ़ा कर खाने लगे।
सब-के-सब हँसेंगे कि हामिद ने चिमटा
लिया है।
[120]
हँसें !
मेरी बला से
!
उसने दूकानदार
से पूछा --- यह चिमटा कितने
का है ?
; दूकानदार
ने उसकी ओर देखा औरर कोई आदमी साथ न
देख कर कहा --- तुम्हारे काम का
नहीं है जी !
" बिकाऊ है
कि नहीं ?"
[125]
" बिकाऊ
क्यों नहीं है।
औरर यहाँ क्यों लाद
लाये हैं ?"
" तो
बताते क्यों नहीं, कै पैसे का है ?"
" छै
पैसे लगेंगे। "
हामिद का दिल
बैठ गया।
[130]
" ठीक ठीक
बताओ !"
" ठीक-ठीक पाँच पैसे
लगेंगे, लेना
हो लो, नहीं
चलते बनो ! "
हामिद ने
कलेजा मज़बूत करके कहा --- तीन पैसे लोगे ?
यह कहता
हुआ वह आगे बढ़ गया कि दूकानदार की
घुड़कियाँ न सुने।
लेकिन दूकानदार ने
घुड़कियाँ नहीं दीं।
[135]
बुला कर चिमटा दे दिया।
हामिद ने उसे इस तरह कंधे
पर रखा, मानो बंदूक
है औरर शान से अकड़ता हुआ
संगियों के पास आया।
ज़रा सुनें, सब के सब क्या-क्या
आलोचनाएँ करते हैं।
मोहसिन
ने हँस कर कहा --- यह चिमटा
क्यों लाया, पगले ? इसे क्या
करेगा ?
हामिद ने
चिमटे को ज़मीन पर पटक कर कहा --- ज़रा अपना भिश्ती ज़मीन पर गिरा दो।
[140]
सारी पसलियाँ चूर-चूर हो जायँ बचा की।
महमूद
बोला --- तो यह चिमटा कोई
खिलौना है ?
हामिद
--- खिलौना क्यों नहीं
है ?
अभी कंधे पर रखा, बंदूक हो गयी।
हाथ में ले लिया,
फ़कीरों का चिमटा हो
गया, चाहूँ तो
इससे मजीरे का काम ले सकता हूँ।
[145]
एक चिमटा जमा दूँ, तो तुम लोगों के
सारे खिलौनों की जान निकल जाय।
तुम्हारे खिलौने कितना ही
ज़ोर लगायें, मेरे चिमटे का बाल भी बाँका
नहीं कर सकते।
मेरा बहादुर शेर है
--- चिमटा।
सम्मी ने
खँजरी ली थी।
प्रभावित हो कर बोला --- मेरी खँजरी से बदलोगे
?
[150]
दो आने की
है।
हामिद ने
खँजरी की ओर उपेक्षा से देखा ---
मेरा चिमटा चाहे तो तुम्हारी
खँजरी का पेट फाड़ डाले।
बस एक चमड़े की झिल्ली लगा दी,
ढ़ब-ढ़ब
बोलने लगी।
ज़रा-सा पानी लग
जाय तो ख़तम हो जाय।
मेरा बहादुर चिमटा आग
में, पानी
में, आँधी
में, तूफ़ान
में बराबर डटा खड़ा रहेगा।
[155]
चिमटे
ने सभी को मोहित कर लिया, लेकिन अब पैसे किसके पास धरे
हैं।
फिर मेले से दूर निकल
आये हैं, नौ कब
के बज गये, धूप
तेज़ हो रही है।
घर पहुँचने की जल्दी हो रही
है।
बाप से ज़िद भी करें,
तो चिमटा नहीं मिल सकता।
हामिद है बड़ा चालाक।
[160]
इसीलिए बदमाश ने अपने
पैसे बचा रखे थे।
अब
बालकों के दो दल हो गये
हैं।
मोहसिन, महमूद, सम्मी
औरर नूरे एक तरफ़ हैं, हामिद ेला दूसरी तरफ़।
शास्त्रार्थ हो रहा है।
सम्मी तो विधमीर् हो
गया।
[165]
दूसरे पक्ष में जा
मिला; लेकिन
मोहसिन, महमूद औरर
नूरे भी, हामिद से
एक-एक, दो-दो साल बड़े
होने पर भी हामिद के आघातों से
आतंकित हो उठे हैं।
उसके पास न्याय का बल है औरर
नीति की शक्ति।
एक ओर मिट्टी है, दूसरी ओर लोहा, जो इस वक़्त अपने को फ़ौलाद कह रहा
है।
वह अजेय है, घातक है।
अगर कोई शेर आ जाय,
मियाँ भिश्ती के छक्के छूट
जायँ, मियाँ सिपाही
मिट्टी की बंदूक छोड़ कर भागें,
वकील साहब की नानी मर जाय, चुगे में मुँह छिपा कर
ज़मीन पर लेट जायँ।
[170]
मगर यह चिमटा, यह बहादुर; यह
रुस्तम-ए-हिंद
लपक कर शेर की गरदन पर सवार हो जायगा औरर उसकी
आँखें निकाल लेगा।
मोहसिन
ने एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा कर
कहा --- अच्छा, पानी तो नहीं भर सकता।
हामिद ने
चिमटे को सीधा खड़ा करके कहा --- भिश्ती को एक डाँट बतायेगा तो
दौड़ा हुआ पानी ला कर उसके द्वार पर छिड़कने
लगेगा।
मोहसिन
परास्त हो गया; पर महमूद
ने कुमुक पहुँचायी --- अगर बचा पकड़ जायँ तो अदालत में
बँधे-बँधे
फिरेंगे।
तब तो वकील साहब के
पैरों पड़ेंगे।
[175]
हामिद इस प्रबल
तर्क का जवाब न दे सका।
उसने पूछा --- हमें पकड़ने कौन आयगा ?
नूरे
ने अकड़ कर कहा --- यह सिपाही
बंदूक वाला।
हामिद ने
मुँह चिढ़ा कर कहा --- यह
बेचारे हम बहादुर रुस्तम-ए-हिंद को
पकड़ेंगे !
अच्छा लाओ, अभी ज़रा कुश्ती हो जाय।
[180]
इसकी सूरत देख कर दूर से
भागेंगे।
पकड़ेंगे क्या
बेचारे !
मोहसिन
को एक नयी चोट सूझ जयी --- तुम्हारे चिमटे का मुँह रोज़
आग में जलेगा।
उसने
समझा था कि हामिद लाजवाब हो जायगा; लेकिन यह बात न हुई।
हामिद ने तुरंत जवाब
दिया --- आग में बहादुर ही
कूदते हैं, जनाब, तुम्हारे
यह वकील, सिपाही औरर भिश्ती
लेडियों की तरह घर में घुस
जायँगे।
[185]
आग में कूदना वह काम
है, जो यह रुस्तम-ए-हिंद ही कर सकता
है।
महमूद
ने एक ज़ोर लगाया --- वकील
साहब कुरसी-मेज़ पर
बैठेंगे, तुम्हारा चिमटा तो बावरचीख़ाने
में ज़मीन पर पड़ा रहेगा।
इस तर्क
ने सम्मी औरर नूरे को भी सजीव कर दिया।
कितने ठिकाने की बात कही है
पट्ठे ने।
चिमटा बावरचीख़ाने में पड़ा
रहने के सिवा औरर क्या कर सकता है ?
[190]
हामिद को
कोई पकड़ता हुआ जवाब न सूझा तो उसने
धाँधली शुरू की --- मेरा
चिमटा बाबरचीख़ाने में नहीं रहेगा।
वकील साहब कुरसी पर
बैठेंगे, तो
जा कर उन्हें ज़मीन पर पटक देगा औरर उनका
क़ानून उनके पेट में डाल देगा।
बात कुछ
बनी नहीं।
ख़ाली गाली-गलौज थी; लेकिन क़ानून को पेट में
डालने वाली बात छा गयी।
ऐसी छा गयी कि तीनों
सूरमा मुँह ताकते रह गये,
मानो कोई धेलचा
कंकौआ किसी गंडेवाले कंकौए
को काट गया हो।
[195]
क़ानून मुँह से बाहर
निकालनेवाली चीज़ है।
उसको पेट के अंदर डाल दिया
जाना, बेतुकी-सी बात होने पर भी कुछ नयापन रखती
है।
हामिद ने मैदान मार लिया।
उसका चिमटा रुस्तमे-हिंद है।
अब इसमें मोहसिन,
महमूद, नूरे, सम्मी किसी
को भी आपत्ति नहीं हो सकती।
[200]
विजेता
को हारनेवालों से जो सत्कार मिलना
स्वाभाविक है, वह हामिद को
भी मिला।
औररों ने तीन-तीन, चार-चार आने पैसे ख़र्च
किये, पर कोई काम की चीज़ न
ले सके।
हामिद ने तीन पैसे
में रंग जमा लिया।
सच ही तो है, खिलौनों का क्या भरोसा ?
टूट-फूट जायँगे।
[205]
हामिद का चिमटा तो बना रहेगा
बरसों !
संधि की
शर्तें तय होने लगीं।
मोहसिन ने कहा --- ज़रा अपना चिमटा दो हम भी देखें।
तुम हमारा भिश्ती ले कर
देखो।
महमूद
औरर नूरे ने भी अपने अपने
खिलौने पेश किये।
[210]
हामिद को
इन शर्तों के मानने में कोई
आपत्ति न थी।
चिमटा बारी-बारी
से सबके हाथ में गया; औरर उनके खिलौने बारी-बारी से हामिद के हाथ में आये।
कितने ख़ूबसूरत
खिलौने हैं !
हामिद ने
हारने वालों के आँसू
पोंछे --- मैं
तुम्हें चिढ़ा रहा था, सच !
यह चिमटा भला इन
खिलौनों की क्या बराबरी करेगा;
मालूम होता है,
अब बोले, अब बोले।
[215]
लेकिन
मोहसिन की पाटीर् को इस दिलासे से
संतोष नहीं होता।
चिमटे का सिक्का ख़ूब बैठ गया
है।
चिपका हुआ टिकट अब पानी से
नहीं छूट रहा है।
मोहसिन --- लेकिन
इन खिलौनों के लिए कोई हमें
दुआ तो न देगा ?
महमूद --- दुआ को
लिए फिरते हो।
[220]
उलटे मार न पड़े।
अम्माँ जरूर कहेंगी कि
मेले में यही मिट्टी के
खिलौने तुम्हें मिले ?
हामिद को
स्वीकार करना पड़ा कि खिलौनों को देख कर
किसी की माँ इतनी खुश न होगी, जितनी दादी चिमटे को देख कर
होंगी।
तीन पैसों ही में
तो उसे सब-कुछ करना था
औरर उन पैसों के इस उपयोग पर
पछतावे की बिलकुल जरूरत न थी।
फिर अब तो चिमटा रुस्तमे-हिंद है औरर सभी खिलौनों
का बादशाह !
[225]
रास्ते
में महमूद को भूख लगी।
उसके बाप ने केले
खाने को दिये।
महमूद ने केवल हामिद को
साझी बनाया।
उसके अन्य मित्र मुँह ताकते रह गये।
यह उस चिमटे का प्रसाद था।
[230]
To Part Three.
To index of texts.
To index of मल्हार.
Keyed in by विवेक अगरवाल
June 2001. Posted 27 Sep 2001. Proofed and corrected 11 Oct
2001. Quintilineated by विवेक
अगरवाल in July 2002.