यूनिवर्सिटीज़ ऑफ़ मिशिगन ऐंड वर्जिनिया
इंस्टिट्यूट फ़ॉर द स्टडी ऑफ़
लैंग्वजिज़ ऐंड कल्चर्ज़ ऑफ़
एशिया ऐंड ऐफ़्रिका
तोक्यो
यूनिवर्सिटी ऑफ़ फ़ॉरेन स्टडीज़
मल्हार - Mellonsite for
Advanced Levels of Hindi-Urdu Acquisition and Research
प्रेमचन्द
रचित
गोदान
(Devanagari text reconstituted from the roman transcription made under the
direction of Professors T. Nara and K. Machida of the Institute for Study of Languages and
Cultures of Asia and Africa at Tokyo University of Foreign Studies)
Chapter Two.
सेमरी औरर बेलारी दोनों
अवध-प्रान्त के गाँव हैं।
ज़िले का नाम बताने की कोई
ज़रूरत नहीं।
होरी बेलारी में रहता
है, राय साहब अमरपाल सिंह
सेमरी में।
दोनों गाँवों
में केवल पाँच मील का अन्तर है।
पिछले सत्याग्रह-संग्राम में राय साहब ने बड़ा
यश कमाया था।
कौंसिल की मेम्बरी छोड़कर
जेल चले गये थे।
तब से उनके इलाक़े के
असामियों को उनसे बड़ी श्रद्धा हो
गयी थी।
यह नहीं कि उनके इलाक़े
में असामियों के साथ कोई ख़ास
रियायत की जाती हो, या
डाँड़ औरर बेगार की कड़ाई कुछ कम हो;
मगर यह सारी बदनामी
मुख़्तारों के सिर जाती थी।
राय साहब की कीर्ति पर कोई कलंक न
लग सकता था।
वह बेचारे भी तो उसी व्यवस्था
के ग़ुलाम थे।
ज़ाब्ते का काम तो जैसे
होता चला आया है, वैसा ही होगा।
राय साहब की सज्जनता उस पर कोई असर न
डाल सकती थी; इसलिए आमदनी
औरर अधिकार में जौ-भर
की भी कमी न होने पर भी उनका यश मानो बढ़ गया
था।
असामियों से वह हँस कर
बोल लेते थे।
यही क्या कम है ?
सिंह का काम तो शिकार
करना है; अगर वह गरजने
औरर गुर्राने के बदले मीठी बोली
बोल सकता, तो उसे
घर बैठे मनमाना शिकार मिल जाता।
शिकार की खोज में जंगल
में न भटकना पड़ता।
राय साहब
राष्ट्रवादी होने पर भी हुक्काम से
मेल-जोल बनाये रखते
थे।
उनकी नज़रें औरर डालियाँ
औरर कर्मचारियों की दस्तूरियाँ
जैसी की तैसी चली आती थीं।
साहित्य औरर संगीत के प्रेमी
थे, ड्रामा के
शौक़ीन, अच्छे वक्ता
थे, अच्छे लेखक,
अच्छे निशाने-बाज़।
उनकी पत्नी को
मरे आज दस साल हो चुके थे;
मगर दूसरी शादी न की थी।
हँस-बोलकर
अपने विधुर जीवन को बहलाते रहते
थे।
होरी ड्योढ़ी पर पहुँचा तो देखा
जेठ के दशहरे के अवसर पर
होनेवाले धनुष-यज्ञ की
बड़ी ज़ोरों से तैयारियाँ हो रही
हैं: कहीं रंग-मंच
बन रहा था, कहीं
मंडप, कहीं
मेहमानों का आतिथ्य-गृह, कहीं
दूकानदारों के लिए दूकानें।
धूप तेज़ हो गयी थी;
पर राय साहब ख़ुद काम में
लगे हुए थे।
अपने पिता से सम्पत्ति के
साथ-साथ उन्होंने राम की
भक्ति भी पायी थी औरर धनुष-यज्ञ
को नाटक का रूप देकर उसे शिष्ट मनोरंजन
का साधन बना दिया था।
इस अवसर पर उनके यार-दोस्त, हाकिम-हुक्काम सभी
निमंत्रित होते थे।
औरर दो-तीन
दिन इलाक़े में बड़ी चहल-पहल
रहती थी।
राय साहब का परिवार बहुत विशाल था।
कोई डेढ़ सौ सरदार एक साथ
भोजन करते थे।
कई चचा थे, दरजनों चचेरे भाई,
कई सगे भाई, बीसियों नाते के भाई।
एक चचा साहब राधा के अनन्य उपासक थे
औरर बराबर वृन्दाबन में रहते थे।
भक्ति-रस के
कितने ही कवित्त रच डाले थे औरर
समय-समय पर उन्हें छपवाकर
दोस्तों की भेंट कर देते थे।
एक दूसरे चचा थे, जो राम के परमभक्त थे औरर
फ़ारसी-भाषा में रामायण का
अनुवाद कर रहे थे।
रियासत से सबके वसीके
बँधे हुए थे।
किसी को कोई काम करने की ज़रूरत न
थी।
होरी
मंडप में खड़ा सोच रहा था कि अपने
आने की सूचना कैसे दे कि सहसा राय साहब
उधर ही आ निकले औरर उसे देखते ही
बोले --अरे !
तू आ गया होरी, मैं तो तुझे
बुलवानेवाला था।
देख, अबकी
तुझे राजा जनक का माली बनना पड़ेगा।
समझ गया न, जिस
वक़्त श्रीजानकी जई मन्दिर में पूजा करने
जाती हैं, उसी वक़्त तू
एक गुलदस्ता लिये खड़ा रहेगा औरर जानकी जी की
भेंट करेगा।
ग़लती न करना औरर देख, असामियों से ताकीद करके कह
देना कि सब-के-सब शगुन करने आयें।
मेरे साथ कोठी में
आ, तुझसे कुछ
बातें करनी हैं।
वह आगे-आगे कोठी की ओर
चले, होरी पीछे-पीछे चला।
वहीं एक घने वृक्ष की छाया
में एक कुरसी पर बैठ गये औरर
होरी को ज़मीन पर बैठने का इशारा करके
बोले -- समझ गया,
मैंने क्या कहा।
कारकुन को तो जो कुछ
करना है, वह करेगा ही,
लेकिन असामी जितने मन से
असामी की बात सुनता है, कारकुन की नहीं सुनता।
हमें इन्हीं पाँच-सात दिनों में बीस हज़ार का प्रबन्ध
करना है।
कैसे होगा, समझ में नहीं आता।
तुम सोचते
होगे, मुझ टके
के आदमी से मालिक क्यों अपना दुखड़ा
ले बैठे।
किससे अपने मन की कहूँ
?
न जाने क्यों तुम्हारे
ऊपर विश्वास होता है।
इतना जानता हूँ कि तुम मन
में मुझ पर हँसोगे नहीं।
औरर हँसो भी, तो तुम्हारी हँसी मैं वरदाश्त
कर सकूँगा।
नहीं सह सकता उनकी हँसी,
जो अपने बराबर के
हैं, क्योंकि उनकी
हँसी में ईष्र्या, व्यंग औरर जलन है।
औरर वे क्यों न
हँसेंगे।
मैं भी तो उनकी दुर्दशा
औरर विपत्ति औरर पतन पर हँसता
हूँ, दिल खोलकर,
तालियाँ बजाकर।
सम्पत्ति औरर सहृदयता में
वैर है।
हम भी दान देते हैं,
धर्म करते हैं।
लेकिन जानते हो,
क्यों ?
केवल अपने बराबरवालों
को नीचा दिखाने के लिए।
हमारा दान औरर धर्म कोरा
अहंकार है, विशुद्ध
अहंकार।
हम में से किसी पर डिग्री
हो जाय, क़ुर्क़ी आ
जाय, बक़ाया मालगुज़ारी की
इल्लत में हवालात हो जाय, किसी का जवान बेटा मर जाय, किसी की विधवा बहू निकल जाय, किसी के घर में आग लग जाय,
कोई किसी वेश्या के
हाथों उल्लू बन जाय, या अपने असामियों के
हाथों पिट जाय, तो
उसके औरर सभी भाई उस पर
हँसेंगे, बग़लें बजायेंगे,
मानो सारे संसार की सम्पदा
मिल गयी है।
औरर मिलेंगे तो
इतने प्रेम से, जैसे हमारे पसीने की जगह
ख़ून बहाने को तैयार हैं।
अरे, औरर तो औरर,
हमारे चचेरे, फुफेरे, ममेरे, मौसेरे भाई जो इसी रियासत की
बदौलत मौज उड़ा रहे हैं, कविता कर रहे हैं औरर जुए
खेल रहे हैं, शराबें पी रहे हैं औरर
ऐयाशी कर रहे हैं, वह भी मुझसे जलते हैं,
औरर आज मर जाऊँ तो घी
के चिराग़ जलायें।
मेरे दु:ख को दु:ख समझनेवाला कोई नहीं।
उनकी नज़रों में
मुझे दुखी होने का कोई अधिकार ही
नहीं है।
मैं अगर रोता हूँ,
तो दु:ख की हँसी उड़ाता
हूँ।
मैं अगर बीमार होता
हूँ, तो मुझे
सुख होता है।
मैं अगर अपना ब्याह करके घर
में कलह नहीं बढ़ाता तो यह मेरी नीच
स्वार्थपरता है; अगर ब्याह कर
लूँ, तो वह
विलासान्धता होगी।
अगर शराब नहीं पीता तो मेरी
कंजूसी है।
शराब पीने लगूँ,
तो वह प्रजा का रक्त होगा।
अगर ऐयाशी नहीं करता,
तो अरसिक हूँ,
ऐयाशी करने लगूँ,
तो फिर कहना ही क्या।
इन लोगों ने मुझे
भोग-विलास में
फँसाने के लिए कम चालें नहीं
चलीं औरर अब तक चलते जाते हैं।
उनकी यही इच्छा है कि मैं अन्धा
हो जाऊँ औरर ये लोग मुझे
लूट लें, औरर
मेरा धर्म यह है कि सब कुछ देखकर भी
कुछ न देखूँ।
सब कुछ जानकर भी गधा बना रहूँ।
राय साहब
ने गाड़ी को आगे बढ़ाने के लिए दो
बीड़े पान खाये औरर होरी के मुँह
की ओर ताकने लगे, जैसे उसके मनोभावों
को पढ़ना चाहते हों।
होरी
ने साहस बटोरकर कहा -- हम
समझते थे कि ऐसी बातें हमीं
लोगों में होती हैं,
पर जान पड़ता है, बड़े आदमियों में उनकी कमी
नहीं है।
राय साहब
ने मुँह पान से भरकर कहा -- तुम हमें बड़ा आदमी समझते
हो ?
हमारे नाम बड़े हैं,
पर दर्शन थोड़े।
ग़रीबों में अगर ईष्र्या
या वैर है तो स्वार्थ के लिए या पेट
के लिए।
ऐसी ईष्र्या औरर वैर को
मैं क्षम्य समझता हूँ।
हमारे मुँह की रोटी कोई
छीन ले तो उसके गले में उँगली
डालकर निकालना हमारा धर्म हो जाता है।
अगर हम छोड़ दें, तो देवता हैं।
बड़े आदमियों की ईष्र्या
औरर वैर केवल आनन्द के लिए है।
हम इतने बड़े आदमी हो गये
हैं कि हमें नीचता औरर कुटिलता
में ही नि:स्वार्थ औरर परम आनन्द मिलता
है।
हम देवतापन के उस दर्जे पर
पहुँचन् गये हैं जब हमें
दूसरों के रोने पर हँसी आती
है।
इसे तुम छोटी साधना मत
समझो।
जब इतना बड़ा कुटुम्ब है,
तो कोई-न-कोई तो हमेशा
बीमार रहेगा ही।
औरर बड़े आदमियों के
रोग भी बड़े होते हैं।
वह बड़ा आदमी ही क्या, जिसे कोई छोटा रोग हो।
मामूली ज्वर भी आ जाय, तो हमें सरसाम की दवा दी जाती
है, मामूली फुंसी
भी निकल आये, तो वह
ज़हरबाद बन जाती है।
अब छोटे सर्जन औरर
मझोले सर्जन औरर बड़े सर्जन तार
से बुलाये जा रहे हैं,
मसीहुलमुल्क को लाने
के लिए दिल्ली आदमी भेजा जा रहा है, भिषगाचार्य को लाने के लिए
कलकत्ता।
उधर देवालय में
दुर्गापाठ हो रहा है औरर
ज्योतिषाचार्य कुंडली का विचार कर रहे
हैं औरर तन्त्र के आचार्य अपने
अनुष्ठान में लगे हुए हैं।
राजा साहब को यमराज के
मुँह से निकालने के लिए दौड़ लगी
हुई है।
वैद्य औरर डाक्टर इस ताक में
रहते हैं कि कब सिर में दर्द हो
औरर कब उनके घर में सोने की
वर्षा हो।
औरर ये रुपए तुमसे औरर
तुम्हारे भाइयों से वसूल किये
जाते हैं, भाले की नोक पर।
मुझे तो यही आश्चर्य
होता है कि क्यों तुम्हारी आहों का
दावानल हमें भस्म नहीं कर
डालता; मगर नहीं,
आश्चर्य करने की कोई बात
नहीं।
भस्म होने में तो
बहुत देर नहीं लगती, वेदना भी थोड़ी ही देर की होती
है।
हम जौ-जौ
औरर अंगुल-अंगुल
औरर पोर-पोर भस्म हो
रहे हैं।
उस हाहाकार से बचने के लिए हम
पुलिस की, हुक्काम की,
अदालत की, वकीलों की शरण लेते हैं।
औरर रूपवती स्त्री की भाँति सभी के
हाथों का खिलौना बनते हैं।
दुनिया समझती है, हम बड़े सुखी हैं।
हमारे पास इलाक़े, महल, सवारियाँ, नौकर-चाकर,
क़रज़, वेश्याएँ, क्या
नहीं हैं, लेकिन
जिसकी आत्मा में बल नहीं, अभिमान नहीं, वह
औरर चाहे कुछ हो, आदमी नहीं है।
जिसे दुश्मन के भय के
मारे रात को नींद न आती हो, जिसके दु:ख पर सब हँसें
औरर रोनेवाला कोई न हो, जिसकी चोटी दूसरों के
पैरों के नीचे दबी हो,
जो भोग-विलास के नशे में अपने
को बिलकुल भूल गया हो, जो हुक्काम के तलवे चाटता हो
औरर अपने अधीनों का ख़ून चूसता
हो, उसे मैं सुखी नहीं कहता।
वह तो संसार का सबसे अभागा
प्राणी है। .ल्त्ऌ साहब शिकार खेलने
आयें या दौरे पर,
मेरा कर्तव्य है कि उनकी दुम के पीछे
लगा रहूँ।
उनकी भौंहों पर शिकन पड़ी
औरर हमारे प्राण सूखे।
उन्हें प्रसन्न करने के लिए हम
क्या नहीं करते।
मगर वह पचड़ा सुनाने लगूँ
तो शायद तुम्हें विश्वास न आये।
डालियों औरर
रिश्वतों तक तो ख़ैर ग़नीमत है,
हम सिजदे करने को भी
तैयार रहते हैं।
मुफ़्तख़ोरी ने हमें
अपंग बना दिया है, हमें अपने पुरुषार्थ पर
लेशमात्र भी विश्वास नहीं, केवल अफ़सरों के सामने
दुम हिला-हिलाकर किसी तरह उनके
कृपापात्र बने रहना औरर उनकी सहायता से अपनी
प्रजा पर आतंक ज़माना ही हमारा उद्यम है।
पिछलगुओं की ख़ुशामद
ने हमें इतना अभिमानी औरर तुनकमिज़ाज
बना दिया है कि हममें शील, विनय औरर सेवा का लोप हो गया
है।
मैं तो कभी-कभी सोचता हूँ कि अगर सरकार हमारे
इलाक़े छीनकर हमें अपनी रोज़ी के लिए
मेहनत करना सिखा दे तो हमारे साथ महान
उपकार करे, औरर यह तो
निश्चय है कि अब सरकार भी हमारी रक्षा न करेगी।
हमसे अब उसका कोई स्वार्थ
नहीं निकलता।
लक्षण कह रहे हैं कि बहुत जल्द
हमारे वर्ग की हस्ती मिट जानेवाली है।
मैं उस दिन का स्वागत करने
को तैयार बैठा हूँ।
ईश्वर वह दिन जल्द लाये।
वह हमारे उद्धार का दिन होगा।
हम परिस्थितियों के शिकार
बने हुए हैं।
यह परिस्थिति ही हमारा सर्वनाश कर रही
है औरर जब तक सम्पत्ति की यह बेड़ी हमारे
पैरों से न निकलेगी, जब तक यह अभिशाप हमारे सिर पर मँडराता
रहेगा, हम मानवता का वह पद न पा सकेंगे
जिस पर पहुँचना ही जीवन का अन्तिम लक्ष्य है।
राय साहब
ने फिर गिलौरी-दान निकाला
औरर कई गिलौरियाँ निकालकर मुँह
में भर लीं।
कुछ औरर कहने वाले थे कि
एक चपरासी ने आकर कहा -- सरकार
बेगारों ने काम करने से इनकार कर
दिया है।
कहते हैं, जब तक हमें खाने को न
मिलेगा हम काम न करेंगे।
हमने धमकाया, तो सब काम छोड़कर अलग हो गये।
राय साहब
के माथे पर बल पड़ गये।
आँखें निकालकर बोले
--चलो, मैं इन दुष्टों को ठीक
करता हूँ।
जब कभी खाने को नहीं
दिया, तो आज यह नयी बात
क्यों ?
एक आने रोज़ के हिसाब से
मजूरी मिलेगी, जो
हमेशा मिलती रही है; औरर इस मजूरी पर उन्हें काम करना
होगा, सीधे करें
या टेढ़े।
फिर होरी
की ओर देखकर बोले --
तुम अब जाओ होरी,
अपनी तैयारी करो।
जो बात मैंने कही
है, उसका ख़याल रखना।
तुम्हारे गाँव से
मुझे कम-से-कम पाँच सौ
की आशा है।
राय साहब
झल्लाते हुए चले गये।
होरी ने मन में
सोचा, अभी यह
कैसी-कैसी नीति औरर धरम की
बातें कर रहे थे औरर एकाएक इतने गरम
हो गये!
सूर्य सिर पर आ गया था।
उसके तेज से अभिभूत
होकर वृक्षों ने अपना पसार समेट
लिया था।
आकाश पर मटियाला गर्द छाया हुआ था
औरर सामने की पृथ्वी काँपती हुई जान
पड़ती थी।
होरी ने अपना डंडा उठाया औरर घर चला।
शगून के रुपये कहाँ से
आयेंगे, यही चिन्ता
उसके सिर पर सवार थी।
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Recoded: 20 Sept. 1999 to 6 Oct 1999.
Chapter two posted: 7 Oct.
1999.
Paragraphed: 9 Oct 1999.
Updated: 18 Oct. 1999, 26 Oct
1999, 8-10 Mar 2002.